पढ़ाई और जीवन में क्या अंतर है? स्कूल में आप को पाठ सिखाते हैं और फिर परीक्षा लेते हैं. जीवन में पहले परीक्षा होती है और फिर सबक सिखने को मिलता है. - टॉम बोडेट

Friday, May 22, 2009

अंतरिम जमानत पर उच्चतम न्यायालय ने दी व्यवस्था

किसी व्यक्ति को पर्याप्त कारण के बिना जेल में रखे जाने से उसकी प्रतिष्ठा को पहुंचने वाली अपूर्णीय क्षति की ओर ध्यान दिलाते हुए उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि नियमित जमानत के अनुरोध पर विचार करने के दौरान आरोपी को अंतरिम जमानत प्रदान की जानी चाहिए। 
शीर्ष न्यायालय ने कहा जब कोई व्यक्ति नियमित जमानत के लिए आवेदन करता है तो संबद्ध अदालत आम तौर पर अर्जी को सुनवाई के लिए कुछ दिन बाद सूचीबद्ध कर देती है ताकि वह केस डायरी पर विचार कर सके जिसें पुलिस अधिकारियों से हासिल करना होता है और इस बीच अर्जी देने वाले को जेल जाना पड़ता है।
न्यायमूर्ति मार्कन्डेय काटजू और न्यायमूर्ति दीपक वर्मा ने एक आदेश में कहा भले ही अर्जी देने वाला इसके बाद जमानत पर छूट जाये तो भी समाज में उसकी प्रतिष्ठा को अपूर्णीय क्षति पहुंचती है। किसी भी व्यक्ति की प्रतिष्ठा उसकी मूल्यवान संपत्ति होती है और यह संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत उसके अधिकार का एक पहलू है। 
शीर्ष न्यायालय ने यह आदेश सुखवंत सिंह द्वारा दायर की गयी अपील पर सुनाया। सिंह ने पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय द्वारा उन्हें अग्रिम जमानत नहीं दिये जाने के आदेश को चुनौती दी थी।

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