पढ़ाई और जीवन में क्या अंतर है? स्कूल में आप को पाठ सिखाते हैं और फिर परीक्षा लेते हैं. जीवन में पहले परीक्षा होती है और फिर सबक सिखने को मिलता है. - टॉम बोडेट

Friday, October 30, 2009

गवाही के लिए अदालत में हाजिर न होने वाले एसपी तीन घंटे न्यायिक हिरासत में।


गिरफ्तारी वारन्ट एवं वेतन रोकने का आदेश होने के बावजूद गवाही के लिए अदालत में हाजिर न होने वाले बनारस के पुलिस अधीक्षक नगर विजय भूषण को गुरुवार को फास्ट ट्रैक कोर्ट के अपर सत्र न्यायाधीश राहुल कुमार ने तीन घंटे तक न्यायिक हिरासत में रखा। बाद में क्षमा याचना करने पर उन्हे अभिरक्षा से छोड़ा गया।

एसपी विजय भूषण जब एसटीएफ लखनऊ में थे तो उन्होंने 10 अगस्त 2005 की रात्रि में वेव सिनेमा के पास मुठभेड में मुन्ना उर्फ फिरोज तथा डा. अजय सक्सेना उर्फ अजय त्रिपाठी को गिरफ्तार किया था। इस मामले में वादी स्वयं विजय भूषण है। अदालत के समक्ष उन्होंने 27 जनवरी 2007 को गवाही दी थी परन्तु बचाव पक्ष ने जिरह नहीं की। 30 मई 2009 को पुन: बचाव पक्ष की अर्जी को मंजूर कर जिरह के लिए विजय भूषण को अदालत ने तलब किया।

30 मई के बाद से करीब एक दर्जन बार अदालत ने सख्त से सख्त आदेश पारित किए। नोटिस, गिरफ्तारी वारन्ट व वेतन रोकने के आदेश हुए जिनका पालन करने के लिए अदालत ने बनारस के पुलिस उपमहानिरीक्षक को भी कई पत्र लिखे। लेकिन हर बार पुलिस महानिरीक्षक ने अदालत को सूचित किया कि कानून व्यवस्था कायम रखने की जरूरतों के चलते अगली तिथि पर विजय भूषण को गवाही के लिए जरूर भेजा जाएगा।

अदालत ने अपने अन्तिम पत्र में डीआईजी बनारस को लिखा कि विजय भूषण के अदालत में न आने से मुकदमे की कार्यवाही नहीं हो पा रही है। ऐसा प्रतीत होता है कि विजय भूषण वाराणसी की पूरी कानून व्यवस्था संभाले हुए हैं। यह स्थिति न्यायिक प्रक्रिया में बाधा पहुंचाने वाली है, जो उचित नहीं है। अदालत ने काफी समय विजय भूषण को न्यायिक अभिरक्षा में रखने के बाद उनके द्वारा दिए गए प्रार्थना पत्र पर वारन्ट निरस्त करने का आदेश पारित किया। इस आदेश के बाद मुकदमें की गवाही प्रक्रिया प्रारम्भ हुई।

वकील ने किया कोर्ट को गुमराह।


जेल में बंद अभियुक्त की जमानत के लिए पेश अर्जी में तथ्य छुपा कर अदालत को गुमराह करने के मामले को गंभीरता से लेते हुए सेशन अदालत ने गुरुवार को एक वकील को नोटिस जारी किया है। मामला सेशन अदालत में वकील गणोश जोशी की ओर से अभियुक्त श्रीगंगानगर पुरानी आबादी निवासी हीरालाल पुत्र पन्नालाल की जमानत के लिए पेश की गई अर्जी से जुड़ा है। जोशी ने अर्जी में यह जानकारी नहीं अंकित की कि अभियुक्त की जमानत के लिए पहले सेशन और बाद में हाईकोर्ट में जमानत अर्जी लगाई गई थी, जो कि खारिज हो गईं। अदालत की कार्रवाई के दौरान ही हाईकोर्ट में पूर्व में अभियुक्त की खारिज की गई जमानत अर्जी के आदेश भी आ गए।

कार्यवाहक सेशन जज सुशीलकुमार बागड़ी ने आदेश में उल्लेख किया है कि पूर्व में लगाई गई जमानत अर्जी का हवाला नहीं देना व्यावसायिक दुराचरण के साथ अदालत को गुमराह करने की श्रेणी में आता है, क्यों नहीं इस मामले में बार कौंसिल को कार्रवाई के लिए चिट्ठी लिखी जाए। मालूम हो कि अभियुक्त हीरालाल एक मामले में 13 साल से फरार चल रहा था। उसे पुलिस ने इसी महीने गिरफ्तार कर जेल भेजा था।

जमीन हथियाने के मामले में घिरे दिनकरण।


तमिलनाडु के एक गांव के कुछ लोगों ने कर्नाटक उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश पीडी दिनकरण के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज कराई है कि उन्होंने सरकारी जमीन की घेराबंदी के लिए लगाई गई बाढ़ को हटा दिया है ताकि इस बात के "सबूत नष्ट" हो जाएं कि वह उनके कब्जे में है।

कावेरीराजापुरम गांव के शिकायतकर्ता 66 ग्रामीणों में से एक वीएम रमन ने बताया कि उन्होंने बुधवार को शिकायत दर्ज कराई। इसमें कहा गया है कि दिनकरण ने जमीन पर कब्जा कर लिया है और बाढ़ हटा दी है। इस बीच, पुलिस ने बताया कि नियम के तहत शिकायत दर्ज होने की रसीद ग्रामीणों को दी गई है। जांच की जाएगी। गांव वालों ने पुलिस से संरक्षण भी मांगा है। शिकायत की प्रति जिला कलेक्टर और पुलिस अधीक्षक को भी भेजी गई है।

टिप्पणी से इनकार 

दिनकरण के खिलाफ जमीन हथियाने के आरोप के चलते तिरूवल्लूर जिले के कलेक्टर वी पलानीकुमार ने पहले एक रिपोर्ट भेजी थी । समझा जाता है कि उसमें कहा गया है कि केवल कावेरीराजापुरम में ही दिनकरण के पास तकरीबन 500 एकड़ जमीन है। दिनकरण ने इस मुद्दे पर बोलने से इनकार करते हुए चुप्पी साध रखी है।

सर्वोच्च न्यायालय का बाटला हाऊस एनकाउंटर की न्यायिक जांच से इंकार


सर्वोच्च न्यायालय ने पिछले वर्ष दिल्ली के जामिया नगर के बटला हाउस इलाके में हुई मुठभेड़ की स्वतंत्र न्यायिक जांच कराने की मांग करने वाली याचिका शुक्रवार को खारिज कर दी। पुलिस के साथ हुई इस मुठभेड़ में दो युवकों की मौत हो गई थी।प्रधान न्यायधीश न्यायमूर्ति के. जी. बालाकृष्णन और न्यायधीश न्यायमर्ति पी. सथशिवम व न्यायमूर्ति बी. एस. चौहान की खंडपीठ ने यह कहते हुए इस याचिका को खारिज कर दिया कि पुलिस पर फायरिंग करने वाले सशस्त्र युवक निर्दोष नहीं हो सकते।

गैर सरकारी संगठन 'ऐक्ट नाउ फॉर हारमनी एंड डेमोक्रेसी' (अनहद) की ओर से दायर इस याचिका में दिल्ली उच्च न्यायालय के उस फैसले को भी चुनौती दी गई थी जिसमें इस मामले में दिल्ली पुलिस को क्लीन चिट दी गई थी।

गौरतलब है कि 19 सितम्बर, 2008 को बटला हाउस में मुठभेड़ में दो संदिग्ध आतंकवादी मारे गए थे। इस मुठभेड़ में दिल्ली पुलिस के निरीक्षक मोहन चंद शर्मा भी शहीद हो गए थे।

गरीबी कोई अपराध नहीं , भिखारियों की भी है दिल्लीः दिल्ली उच्च न्यायालय


हाई कोर्ट ने भिखारियों के मुद्दे पर दिल्ली सरकार के रुख की तुलना महाराष्ट्र में एमएनएस के रवैये से की है। दिल्ली सरकार की खिंचाई करते हुए कोर्ट ने कहा कि सरकार राजधानी के भिखारियों को अपने राज्य में वापस लौट जाने के लिए कैसे दबाव डाल सकती है। हाई कोर्ट ने कहा कि यह तो वैसा ही है, जैसा कि एमएनएस मुंबई में रह रहे दूसरे राज्यों के लोगों के साथ कर रही है। हाई कोर्ट ने भिखारियों के साथ किए जाने वाले ऐसे बर्ताव को मानवता के खिलाफ बताया।

हाई कोर्ट ने जोर देकर कहा कि गरीबी कोई अपराध नहीं है और भिखारियों को राजधानी छोड़ने पर मजबूर नहीं किया जा सकता। यह मानवता के खिलाफ है और अगर ऐसा होता है तो महाराष्ट्र में राज ठाकरे की अगुआई वाली पार्टी और दिल्ली सरकार में क्या अंतर रह जाएगा।

अदालत ने कहा कि विभिन्न राज्यों के भिखारियों के साथ ऐसा बर्ताव बंद होना चाहिए। हाई कोर्ट ने कहा कि यह काफी परेशान करने वाली बात है कि राजधानी में कई अपराधी आराम से रह रहे हैं, लेकिन जो कुछ लोग मांग कर गुजारा कर रहे हैं तो उन्हें बाहर निकालने की तैयारी है। गौरतलब है कि भीख मांगना बॉम्बे प्रिवेंशन ऑफ बैगिंग एक्ट के तहत अपराध है।

इस मामले को अपराध की श्रेणी में रखने अथवा नहीं रखने के मामले में हाई कोर्ट ने अटॉर्नी जनरल से सलाह मांगी है। इस एक्ट के तहत पहली बार पकड़े गए अपराधी को तीन साल तक कैद हो सकती है, जबकि दूसरी बार पकड़े जाने पर 10 साल तक कैद की सजा का प्रावधान है।

इस बाबत एक सामाजिक कार्यकर्ता ने हाई कोर्ट में अजीर् दाखिल कर कहा था कि भीख मांगने के लिए सजा देना सही नहीं है क्योंकि गरीबी कहीं से भी अपराध नहीं है। इस तरह एक्ट के वैधता को चुनौती भी दी गई है। अर्जी में कहा गया था कि भिखारियों के खिलाफ कार्रवाई के बजाय उनका पुनर्वास होना चाहिए। मुंबई बैगिंग एक्ट में संशोधन होना चाहिए क्योंकि भिखारी अगर भीख मांगते हैं तो वह मजबूरी में होता है। इस अर्जी पर सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार से राय मांगी थी।

याचिका में कहा गया है कि मुंबई बैगिंग एक्ट में बदलाव की जरूरत है क्योंकि अगर कोई भीख मांगता है तो वह उसकी आथिर्क मजबूरी हो सकती है इसके लिए उसे सजा दिया जाना कहीं से भी ठीक नहीं है। इस पर दिल्ली सरकार ने अपने जवाब में सहमति जाहिर की थी कि भिखारियों का पुनर्वास किया जाना चाहिए। इस पर हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार से इस बाबत अपना सुझाव देने को कहा है। साथ ही सरकार से पूछा है कि फिलहाल राजधानी में कितनी संख्या में भिखारी हैं और उनके बच्चों की शिक्षा आदि के लिए क्या किया जा रहा है। मामले की अगली सुनवाई के लिए अदालत ने 9 नवंबर की तारीख तय की है।

Thursday, October 29, 2009

आपरेशन दुर्योधन के आरोपी सांसदों को जमानत।


दिल्ली की एक अदालत ने संसद में सवाल पूछने के एवज में धन लेने के मामले में संलिप्त सात सांसदों को बुधवार को जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया।

अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश राकेश सिद्धार्थ ने पूर्व सांसदों छत्रपाल सिंह लोढा, अन्ना साहेब एमके पाटिल, वाईजी महाजन, एनके कुशवाहा, लालचंद कोल, रामसेवक सिंह और सीपी सिंह को 25 हजार के मुचलके और इतनी ही अन्य राशि के अन्य मुचलके पर रिहा करने का आदेश दिया।

एक निजी चैनल के स्टिंग आपरेशन दुर्योधन के वर्ष 2005 में 11 सांसदों को संसद में सवाल पूछने के एवज में पैसे लेते हुए कैमरे में कैद कर लिया गया था। मामला प्रकाश में आने के बाद इन सभी को संसद से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। इनमें से दस सांसद लोकसभा के और एक सांसद राज्यसभा से था।

सेक्रटरी के लिए 'सेक्सी ऐड' देकर फंसा वकील


सेक्रटरी के लिए ऐसी ऐड ना तो आपने देखी होगी और ना ही सुनी होगी। शिकॉगो में भारतीय मूल के एक वकील ने सेक्रटरी के लिए अखबार में दिए ऐड में कहा था कि सेक्रटरी को काम के अलावा उसके और लॉ फर्म में उसके पार्टनर के साथ सेक्स भी करना होगा। इस मामले में वकील के खिलाफ जांच शुरू हो गई है और उसका वकालत का लाइसेंस तक रद्द हो सकता है।

ब्रिटिश अखबार सन् के मुताबिक वकील समीर चौहान शादीशुदा हैं और दो बच्चों का पिता है। उन्होंने सेक्रटरी के पोस्ट के लिए अप्लाई करने वाली युवतियों से बायोडाटा और फोटो के अलावा फिगर का ब्यौरा भी मांगा था। एक लड़की ने इसके लिए जब रुचि दिखाई तो जवाबी मेल में चौहान ने लिखा ऑफिस के काम के अलावा आपको हम दोनों पार्टनरों के साथ अकेले और कभी-कभी एक साथ सेक्स भी करना होगा। चौहान ने उससे यह भी कहा कि ऑफिस उसे उत्तेजक कपड़े पहनकर आने होंगे और कामुक अंदाज में बातचीत करनी होगी।

वकील की इस विश लिस्ट को जानने के बाद लड़की ने इंटरव्यू के लिए पहुंचने के बजाय अटॉर्नी रजिस्ट्रेशन ऐंड डिसिप्लिनरी कमिशन में शिकायत कर दी। एजेंसी अब पूरे मामले की जांच कर रही है और आरोप सही पाए गए तो समीर चौहान का वकालत करने का लाइसेंस तक रद्द हो सकता है।

Wednesday, October 28, 2009

आरजेएस परीक्षा में स्कैलिंग अवैध- राजस्थान हाईकोर्ट


राजस्थान हाई कोर्ट ने आरजेएस परीक्षा 2005 में स्कैलिंग प्रणाली को संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत अवैधानिक मानते हुए उसे आरजेएस नियमों के विपरीत करार दिया है। न्यायाधीश प्रेम शंकर आसोपा एवं न्यायाधीश गुमान सिंह की खंडपीठ ने यह आदेश मंगलवार को सरिता नौशाद एवं 17 अन्य की याचिकाओं का निस्तारण करते हुए दिया।

खंडपीठ ने आदेश में कहा है कि जिन याचिकाकर्ता अभ्यर्थियों के रॉ मार्क्‍स (स्कैलिंग से पूर्व के मार्क्‍स) चयनित आरजेएस अभ्यर्थियों के प्राप्तांक से अधिक हैं उन्हें आरजेएस परीक्षा 08—09 में साक्षात्कार के लिए बुलाया जाए। साथ ही 2005 की परीक्षा में प्राप्त किए उनके प्राप्तांकों और साक्षात्कार के अंकों को मिलाकर मेरिट लिस्ट बनाई जाए। यदि वे मेरिट लिस्ट में उनकी श्रेणी के चयनित अभ्यर्थी से अधिक अंक लाएं तो वे नियुक्ति के पात्र माने जाएं और उन्हे नियुक्ति दी जाए।

इसके अलावा ऐसे अभ्यर्थी जिनके साक्षात्कार हो चुके हैं उनके रॉ मार्क्‍स (स्कैलिंग से पूर्व के मार्क्‍स) व साक्षात्कार के मार्क्‍स को जोड़ा जाए और यदि उनके अंक चयनित आरजेएस अभ्यर्थी से अधिक हों तो उन्हें और भविष्य में होने वाली रिक्तियों में नियुक्त किया जाए। आदेश में राज्य सरकार को निर्देश दिया कि आरजेएस परीक्षा 08 की चयन व नियुक्ति प्रक्रिया याचिकाकर्ता अभ्यर्थियों को नियुक्ति देने के बाद ही की जाए। हाई कोर्ट ने आदेश में कहा कि पूर्व में चयनित आरजेएस को नौकरी करते हुए डेढ़ साल से ज्यादा समय हो गया है। इसलिए उन्हें उनके पदों से नहीं हटाया जाए। क्योंकि यदि उन्हें हटाया गया तो पूरी परीक्षा की पूरी प्रक्रिया ही डिस्टर्ब हो जाएगी।

याचिकाकर्ताओं के अधिवक्ता एस.पी.शर्मा ने बताया कि आरजेएस परीक्षा 05 में आरपीएससी ने स्कैलिंग की प्रणाली अपनाई। इस फार्मूले के कारण कई अभ्यर्थियों के अंकों को कम ज्यादा कर दिया गया। इससे कुछ अभ्यर्थी अधिक अंक लाने के बाद भी साक्षात्कार में शामिल नहीं हो पाए जबकि कुछ अभ्यर्थी साक्षात्कार देने के बाद भी नियुक्त नहीं हो सके। आरजेएस परीक्षा में इस प्रणाली को हाई कोर्ट में चुनौती दी गई। याचिकाओं में कहा कि आरजेएस परीक्षा में स्कैलिंग की प्रणाली आरजेएस नियम 1955 का उल्लंघन है क्योंकि उसमें ऐसा कोई प्रावधान ही नहीं है और सभी परीक्षार्थी समान ही प्रoपत्र देते हैं।

जयपुर- रूल ऑफ लॉ सोसायटी के प्रदेश प्रतिनिधि नीलाम्बर झा के अनुसार न्यायिक सेवा में स्कैलिंग का विवाद कोई नया नहीं है। इससे पहले भी उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग के एक मामले में सुप्रीम कोर्ट में स्कैलिंग को लेकर सवाल खड़े किए थे।

वर्ष 2007 में सुप्रीम कोर्ट ने संजय सिंह बनाम उत्तर प्रदेश के मामले में न्यायिक सेवा में स्कै लिंग को जायज नहीं ठहराया था। कोर्ट ने स्पष्ट किया था कि न्यायिक सेवा की परीक्षा में सिर्फ एक विषय होता है, इसलिए स्कै लिंग ठीक नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा था कि न्यायिक सेवा में माडरेशन किया जा सकता है। इसका तरीका क्या होगा, इसकी गाइड लाइन भी निर्णय में दी गई है।

Tuesday, October 27, 2009

पिता के पितृत्व से इंकार पर ही बच्चे का डीएनए परीक्षण।


उच्चतम न्यायालय ने आज एक महत्वपूर्ण व्यवस्था देते हुए कहा कि तलाक के मामले में किसी बच्चे के डीएनए परीक्षण के आदेश तब तक नहीं दिये जा सकते जब तक पति उसे अपना बच्चा नहीं होने का निश्चित आरोप नहीं लगाता।
दूसरे शब्दों में, बच्चे के असल माता-पिता का पता लगाने के लिये उसका डीएनए परीक्षण तभी किया जा सकता है जब पति यह निश्चित आरोप लगाए वह बच्चा किसी दूसरे आदमी का है। हालांकि वह इस बात को तलाक के आधार के तौर पर इस्तेमाल नहीं कर सकता।
उच्चतम न्यायालय ने कहा कि वैवाहिक सम्बन्ध होने के दौरान बच्चे का जन्म होने की स्थिति में उसकी वैधता की धारणा काफी हद तक इस बात पर निर्भर करती है कि तलाक की अर्जी दायर होने के वक्त विवाह के दोनों पक्षों का एक दूसरे से जरूरी वास्ता था। खासकर तब जब पति इस बात को जोर देकर ना कहे कि उसकी पत्नी का बच्चा किसी दूसरे मर्द से अवैध सम्बन्धों का नतीजा है। न्यायाधीश न्यायमूर्ति तरुण चटर्जी तथा न्यायमूर्ति आर. एम. लोढ़ा की पीठ ने अपने निर्णय में पति भरतराम द्वारा दायर याचिका पर बच्चे का डीएनए परीक्षण कराने के मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के निर्देश को चुनौती देने वाली रामकन्या बाई द्वारा दायर अपील को बरकरार रखा।
उच्च न्यायालय ने पति द्वारा सत्र न्यायालय में तलाक के मुकदमे की कार्यवाही के दौरान बच्चे की वैधता पर सवाल नहीं उठाए जाने के बावजूद उसका डीएनए परीक्षण कराने का निर्देश दिया था।

बिना रिकॉर्ड 47 साल चला मुकदमा !


राजस्थान उच्च न्यायालय ने एक मामले में 47 साल पुराने मुकदमें की कार्रवाई निरस्त कर दी है। अधिवक्ता अनूप ढंड ने बताया कि सन् 1962 में पुलिस थाना सीकर पर परिवादी निसार अहमद ने छह व्यक्तियों के विरुद्ध पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराई थी। न्यायालय में अधिवक्ता ढंड ने तर्क दिया कि मामला 47 वर्ष पहले दर्ज हुआ और अब इस मामले से संबंधित कोई भी एफआईआर, चार्जशीट अन्य दस्तावेज कहीं भी उपलब्ध नहीं है।

ऐसी स्थिति में अन्वीक्षा किया जाना संभव नहीं है। अधिवक्ता ढंड ने न्यायालय को बताया कि इन हालातों में मामला जारी रखना, प्रार्थी के मौलिक जीवन जीने के अधिकार का घोर उल्लंघन है। समस्त तर्को व तथ्यों को ध्यान में रखते हुए न्यायाधिपति करणीसिंह राठौड़ ने याचिका मंजूर कर अन्वीक्षा को प्रार्थी के मौलिक जीवन जीने के अधिकार का उल्लंघन मानते हुए 47 वर्ष पुराने मामले की कार्रवाई को निरस्त करने के आदेश पारित किए।

वकीलों के लिए प्रैक्टिस से पहले ट्रेनिंग पर विचार-वीरप्पा मोइली


आने वाले दिनों में विधि स्नातक कालेज से निकलते ही सीधे कोर्ट में वकालत शुरु नहीं कर पाएंगे। इसके लिए उन्हें पहले किसी वरिष्ठ अधिवक्ता के अंडर में एक साल की अप्रेंटिसशिप करना आवश्यक होगी। इसके बाद वह बार कौंसिल में पंजीकरण करा अदालतों में वकालत कर सकेंगे।

विधि मंत्री वीरप्पा मोइली ने कहा है कि वह एडवोकेट एक्ट, 1961 में संशोधन करवाएंगे ताकि प्री रजिस्ट्रेशन अप्रेंटिसशिप के प्रावधान को बहाल किया जा सके। यह बात उन्होंने एक अंग्रेजी अखबार के संवाददाताओं से बातचीत करते हुए कही। वैसे इस प्रावधान को बहाल करने की मांग सुप्रीम कोर्ट से ही आई है। सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठतम जज तथा मुख्य न्यायाधीश इन वेटिंग जस्टिस एसएच कपाड़िया ने कहा कि वैश्विक अर्थ व्यवस्था और प्रतिस्पर्धा के दौर में दक्ष प्रोफेशनलों की आवश्कता है।

वकीलों को अर्थ व्यवस्था, निवेश प्रणाली और वित्तीय मसलों की जानकारी होना आवश्यक है। क्योंकि ये चीजें हर क्षेत्र पर प्रभाव डाल रही हैं। लेकिन देखा जा रहा है कि कुछ वकीलों को छोड़कर अधिकतर वकील इससे वाकिफ नहीं हैं। उन्होंने बार कौंसिल से कहा कि वह वकालत की पढ़ाई में अर्थव्यवस्था के अध्याय भी जोड़े। आने वाले दस वर्ष इसी व्यवस्था को समर्पित हैं। इस दौरान देश की अर्थव्यवस्था तरक्की करेगी और इससे जुड़े मुकदमे कोर्ट में आएंगे।

सरकार की छोटे-छोटे मुकदमें में सुप्रीम कोर्ट जाने की आदत पर सुप्रीम कोर्ट की फटकार।


मुकदमों की संख्या कम करने के लिए आयोजित राष्ट्रीय विचार का सरकारों पर कोई फर्क नहीं पड़ा है। वह अब भी छोटे-मोटे केसों पर भारी खर्च कर उन्हें सुप्रीम कोर्ट तक ले आती है। यही वजह है कि देश की अदालतों में लंबित तीन करोड़ मुकदमों में से 30 फीसदी हिस्सा सरकारों का है। लेकिन मुख्य न्यायाधीश ने इस पर काम करना शुरू कर दिया है।

सोमवार को एक मामले में उन्होंने एक चौकीदार को स्थायी करने के आदेश को चुनौती देने पर मध्य प्रदेश सरकार को खूब फटकार लगाई और अपील खारिज कर दी। मुख्य न्यायाधीश जस्टिस केजी बालाकृष्णन की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने कहा कि सरकार बिना वहज की अपीलें करके कोर्ट का ही समय नष्ट नहीं करती बल्कि जनता का पैसा भी व्यर्थ ही बहाती हैं। उन्होंने कहा, ‘समय आ गया है कि ऐसे मुकदमों को हतोत्साहित किया जाए। हम ऐसे मुकदमों पर बिल्कुल सुनवाई नहीं करेंगे जिसमें सिर्फ एक व्यक्ति शामिल हो।

सरकार को कम से कम ऐसे केसों में अपीलें नही करनी चाहिए। यह एक चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी (गरीब चौकीदार) को स्थायी करने का मामला है। वह 1991 से काम कर रहा है। उसे स्थायी न कर सरकार उसके मानवाधिकार का उल्लंघन भी कर रही है। क्योंकि वह सुप्रीम कोर्ट के स्तर तक अपने केस की पैरवी नहीं कर सकता है। यदि इस मामले में बड़ी संख्या में कर्मचारी शामिल होते तो बात समझ में आती लेकिन एक व्यक्ति के लिए सरकार सुप्रीम कोर्ट तक आ जाए यह गलत है।’ यह कह कर सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश सरकार की एक चौकीदार को स्थायी करने के आदेश के खिलाफ की अपील खारिज कर दी।

क्यों न खत्म हो 2010 के बाद आरक्षण? - राजस्थान हाईकोर्ट


आरक्षण की नीति को 10 और वर्ष का विस्तार देने के लिए संविधान में हुए 109वें संशोधन को चुनौती देती एक याचिका पर राजस्थान हाईकोर्ट ने सोमवार को केंद्र और राज्य सरकार को नोटिस जारी कर दिया।
न्यायमूर्ति आरसी गांधी और न्यायमूर्ति जीएस सराफ की खंडपीठ ने सामाजिक कार्यकर्ता अमरनाथ वैश्य की याचिका पर यह आदेश जारी किए। याचिकाकर्ता के वकील अरूणेश्वर गुप्ता के मुताबिक, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़े वर्ग को आरक्षण मुहैया कराने वाला संशोधन बीते 60 साल में इन जाति और वर्गों के कल्याण में दु:खद रूप से नाकाम रहा है।
उन्होंने कहा कि बीते 60 वर्ष में आरक्षण की कोई उपयोगिता नहीं रही है। आरक्षण नीति को शिक्षा तथा सेवा क्षेत्र में 10 जनवरी 2010 से अगले 10 वर्ष के लिए बढ़ाया जाना निरर्थक है। गुप्ता ने आरोप लगाया कि इस नीति से जातिगत टकराव भी पैदा हुआ है।

Saturday, October 24, 2009

पेंशन नहीं देने पर सचिव न्यायिक हिरासत में ।


इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को कोर्ट द्वारा पारित आदेश का पालन न करने एवं गलत शपथपत्र प्रस्तुत करने को गंभीरता से लेते हुए सिंचाई विभाग के सचिव एम.ए.ए. खान को कुछ समय के लिए न्यायिक हिरासत में लेने का मौखिक आदेश दिया। उन्हें सजा दिए जाने के मामले पर सुनवाई शनिवार को होगी। यह आदेश न्यायमूर्ति डी. पी. सिंह ने सिंचाई विभाग में कार्यरत सहायक अभियन्ता की पत्नी कविता कुमार की अवमानना याचिका पर पारित किया।

याचिका के अनुसार, कविता का पति सिंचाई विभाग में सहायक इंजीनियर के पद पर कार्यरत था। उसके निधन के बाद जब पेंशन का भुगतान नहीं किया गया तब हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की गई थी। कविता के अधिवक्ता को सुनने के बाद न्यायालय ने उन्हें पेंशन का ब्याज सहित भुगतान करने का निर्देश दिया था। विभाग की तरफ से पेंशन भुगतान को लेकर दाखिल अलग-अलग शपथपत्रों में अलग-अलग जानकारी दी गई थी एवं पूरी धनराशि का भुगतान नहीं किया गया। इसपर हाईकोर्ट में अवमानना याचिका दाखिल की गई थी। कोर्ट के आदेश पर सिंचाई विभाग के सचिव कोर्ट में उपस्थित थे। कुछ समय के लिए उन्हें न्यायिक हिरासत में ले लिया गया था। आगे की सुनवाई शनिवार को होगी।

अब तक के ऐसे मामले : इसके पूर्व भी न्यायालय ने अवमानना मामले में वरिष्ठ आईएएस अधिकारी अनिरुद्ध पाण्डे एवं इलाहाबाद में शिक्षा विभाग में तत्कालीन डीडीआर श्रीमती माया निरंजन को भी सजा सुनाई थी। बाद में अपील पर इसी न्यायालय की खण्डपीठ ने उस आदेश पर रोक लगा दी थी। इसके अलावा पूर्व में अवमानना मामले में कई वकीलों को भी सजा सुनाई जा चुकी है।

अब अत्याचारी गुरुजी की खैर नहीं।


स्कूलों में शिक्षकों के अत्याचार से छात्रों को बचाने के लिए अब शिकायत बॉक्स लगाए जाएंगे। राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के फरमान पर अमल करते हुए दिल्ली शिक्षा निदेशालय ने सभी स्कूलों को आदेश दिया है कि वह अपने यहां शिकायत बॉक्स लगाएं, जिनकी मदद से छात्र अपनी शिकायत बिना किसी डर के कर सकें। शिक्षा निदेशालय ने अपने आदेश में साफ कर दिया है कि इस सुविधा के तहत छात्र को अपनी पहचान सार्वजनिक करने की कोई जरूरत नहीं होगी यानी अब अत्याचारी गुरुजी की खैर नहीं है।

शिक्षा निदेशालय की ओर से जारी आदेश में स्कूल प्रमुखों को कहा गया है कि वह अपने यहां छात्रों को शिक्षकों द्वारा दिए जाने वाले दंड पर अंकुश लगाएं। इसके लिए न सिर्फ स्कूलों में नियमित तौर पर अभिभावकों के साथ बैठकर छात्र अधिकारों के प्रति जागरूकता फैलाने की बात की जाए बल्कि छात्रों को भी उनके अधिकारों से अवगत कराया जाए।

इसके अलावा पीटीए सदस्यों, उपशिक्षा अधिकारी, शिक्षा अधिकारी, उपशिक्षा निदेशक के नाम व नंबर भी स्कूल के नोटिस बोर्ड पर सार्वजानिक किए जाएं ताकि शिकायत की प्रक्रिया और उसकी सुनवाई आसान हो सके। अतिरिक्त शिक्षा निदेशक (स्कूल) डॉ. सुनीता कौशिक के मुताबिक स्कूलों में शिक्षकों के अत्याचार से छात्रों को बचाने के लिए नए दिशा-निर्देश जारी किए हैं जिनके तहत स्कूलों में छात्रों के प्रति होने वाली हिंसा से निपटने के उपाय स्पष्ट किए गए हैं। इन गाइडलाइन के तहत अव्वल तो शिक्षकों की शिकायत करने के लिए सुबह होने वाली प्रार्थना सभा में छात्रों को खुले तौर पर शिकायत का मौका दिया गया है।

ऐसा न करने वाले छात्र-छात्राओं के लिए पहचान गुप्त रखते हुए शिकायत करने के लिए बॉक्स का इंतजाम किया जा रहा है। डॉ. सुनीता कौशिक के अनुसार स्कूल प्रमुखों को कहा गया है कि वे अपनी बैठकों में शिक्षकों को इस बात से अवगत कराएं कि छात्रों के साथ गलत व्यवहार का क्या परिणाम हो सकता है।

Friday, October 23, 2009

बार काउंसिल ऑफ राजस्थान मतो की गिनती शुक्रवार से शुरू होगी।


बार काउंसिल ऑफ राजस्थान के 25 सदस्यों के लिए 9 अक्टूबर को हुए चुनाव के तहत मतों की गिनती शुक्रवार से शुरू होगी। मतगणना का कार्य हाईकोर्ट स्थित बार कौंसिल के सभा भवन में सुबह 11 बजे शुरू होगा।
बार काउंसिल के सचिव तथा रिटर्निग अधीकारी राजेन्द्र पाल मलिक के अनुसार 186 मतदान केन्द्रों से 266 मतपेटियां बुधवार को ही जोधपुर पहुंच गई थी। मतदान के दौरान डाले गए 32 हजार वोटों की गिनती करीब डेढ़ माह तक चलेगी। यह कार्य काउंसिल के सभा भवन में सुबह 11 बजे से शाम 6 बजे तक होगा।

विद्यार्थी मित्र शिक्षकों की समान काम-समान वेतन की मांग खारिज ।


राजस्थान हाईकोर्ट ने वेतन के मामले में संविदा कर्मियों को नियमित कर्मचारियों के समान मानने से इनकार कर दिया है। न्यायालय ने विद्यार्थी मित्र शिक्षकों की समान काम-समान वेतन की मांग वाली 126 अपीलों को खारिज करते हुए यह आदेश दिया। इन अपीलों में विद्यार्थी मित्र शिक्षकों को नियमित शिक्षकों के समान वेतन व ग्रीष्मकालीन अवकाश का वेतन दिलाने की मांग की गई थी। राजेन्द्र कुमार सैनी व अन्य की इन अपीलों में एकलपीठ के इन मांगों पर उनके पक्ष में आदेश नहीं देने को चुनौती दी थी।

मुख्य न्यायाधीश जगदीश भल्ला व न्यायाधीश मनीष भण्डारी की खण्डपीठ ने कहा कि विद्यार्थी मित्र शिक्षक नियमित शिक्षकों की भर्ती के लिए बने नियमों के तहत नहीं लगे। इनकी नियुक्ति निर्धारित प्रक्रिया अपनाने के बजाए पूर्णत: संविदा पर हुई, इसलिए नियमित नहीं हो सकते।  नियमित कर्मचारी व संविदाकर्मी समान नहीं हैं, इसलिए तुलना नहीं हो सकती। तीन-चार वर्ष पद खाली रहने पर अस्थाई तौर पर यह नियुक्ति की जाती है, अगले शिक्षा सत्र के लिए पुन: नियुक्ति होती है। इसलिए विद्यार्थी मित्र शिक्षकों को ग्रीष्मकाल का वेतन नहीं मिल सकता।

जयपुर में साफ पानी की क्या है व्यवस्था? -राजस्थान हाई कोर्ट


राजस्थान हाई कोर्ट ने शहर में दूषित पानी से मौतों के मामले पर राज्य सरकार से पूछा है कि वह स्वच्छ पानी की आपूर्ति के लिए वह क्या कर रही है। हाई कोर्ट ने इस संबंध में राज्य के मुख्य सचिव एवं जलदाय व सिंचाई विभाग के प्रमुख शासन सचिव को कारण बताओ नोटिस जारी कर उन्हें निर्देश दिया है कि वह 28 अक्टूबर को हाई कोर्ट में पेश होकर स्पष्टीकरण दें।

न्यायाधीश आरएस चौहान ने यह आदेश शहर में गंगापोल की चौधरी कॉलोनी में दूषित पानी से हुई मासूम एवं पूर्व में दूषित पानी से हुई मौतों पर स्वप्रेरित प्रसंज्ञान लेते हुए दिया। न्यायाधीश ने राज्य सरकार से पूछा है कि वह बताएं कि शहर में शुद्ध पानी की आपूर्ति की क्या व्यवस्था है और वह पानी की जांच कैसे करते हैं।

इन अफसरों को यह भी बताने के लिए कहा है कि जब पानी की पाइप लाइनों में खराब पानी आता है तो वे उसकी टेस्टिंग कैसे करते हैं और और टेंस्टिंग में पानी दूषित पाने पर क्या करते हैं। इसके अलावा पानी की पाइप लाइन जब टूट जाती है तो उसके लिए क्या करते है।

गौरतलब है कि मंगलवार को गंगापोल की चौधरी कॉलोनी में दूषित पानी की आपूर्ति से दो साल के आजम की मौत हो गई थी और उसके परिवार के तीन अन्य बच्चे भी अस्पताल में भर्ती हो गए थे। इसमें जलदाय विभाग को तीन जगहों पर पेयजल की पाइप लाइनों में लीकेज मिला था। इससे पहले भी चारदीवारी, शास्त्रीनगर एवं सांगानेर में दूषित पानी से मौत हो चुकी हैं।

Thursday, October 22, 2009

सिरोही जिला एवं सत्र न्यायाधीश निशा गुप्ता का जयपुर तबादला।


राजस्थान उच्च न्यायालय प्रशासन ने बुधवार को एक आदेश जारी कर उच्च न्यायिक सेवा की अधिकारी निशा गुप्ता को जयपुर में जिला एवं सत्र न्यायाधीश के पद पर नियुक्त किया है। वे न्यायिक सेवा के अधिकारी अशोक कुमार त्यागी का स्थान लेंगी। गुप्ता अब तक सिरोही में जिला एवं सत्र न्यायाधीश के पद पर कार्यरत थीं। इधर, जयपुर जिला एवं सत्र न्यायाधीश त्यागी को फिलहाल पदस्थापन की प्रतीक्षा में रखा गया है। इससे पूर्व कल राजस्थान उच्च न्यायालय ने एक आदेश जारी कर उच्च न्यायिक सेवा के पांच अधिकारियों के स्थानान्तरण किए । उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार (प्रशासन) सत्यदेव टाक द्वारा जारी आदेश के अनुसार अमरचंद सिंघल अब प्रतापगढ के नए जिला एवं सत्र न्यायाधीश होंगे। प्रतापगढ में जिला एवं सत्र न्यायाधीश का पद लम्बे समय से खाली था। तीन माह पूर्व तत्कालीन जिला एवं सत्र न्यायाधीश उमाकांत अग्रवाल को निलम्बित किए जाने के कारण यह पद खाली पडा था। वहां के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट जिला एवं सत्र न्यायाधीश के पद के साथ तीन अदालतों का कार्य देख रहे थे।

आदेश के अनुसार प्रकाशचन्द्र जैन को जिला एवं सत्र न्यायाधीश झुंझुनूं, विनय कुमार गोस्वामी को जयपुर में श्रम न्यायाधीश (द्वितीय), हिमाशु राय नागौरी को श्रम एवं औद्योगिक मामलात न्यायालय जोधपुर में विशिष्ट न्यायाधीश तथा चन्द्रभान को विधि विभाग में संयुक्त विधि परामर्शी (प्रथम) नियुक्त किया गया है।

सौ में से 27 को ही मिल पाती है सूचना, गलतियां कर दी जाती है माफ।


देश भर के सूचना आयोगों का प्रदर्शन जानने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर हुआ एक अध्ययन कहता है कि आयोगों का दरवाजा खटखटाने वाले 100 में से महज 27 लोगों को ही चाही गई जानकारी मिल पाती है और अपीलकर्ता के पक्ष में जारी होने वाले 39 फीसदी आदेश ही लागू हो पाते हैं।

मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित अरविंद केजरीवाल ने वर्ष 2008 के आरटीआई पुरस्कारों के लिए अपने गैर सरकारी संगठन ‘पब्लिक कॉज रिसर्च फाउंडेशन’ के अध्ययन के बारे में बुधवार को यहाँ कहा कि सूचना आयोगों में अपील करने वाले महज 27 फीसदी लोगों को ही सूचना मिल पाती है।

उन्होंने कहा कि वर्ष 2008 में देश भर के 28 सूचना आयोगों और एक केंद्रीय आयोग ने 51128 आदेश जारी किए। इनमें से 34980 मामलों में आदेश सूचना का खुलासा करने के पक्ष में जारी हुए।

केजरीवाल ने कहा कि ऐसे 34980 अपीलकर्ताओं से हमने यह बुनियादी सवाल किया कि क्या उन्हें चाही गई सूचना मिली, इसमें से छह हजार लोगों की प्रतिक्रिया जानने के बाद हम इस निष्कर्ष पर पहुँचे की सूचना का खुलासा करने के पक्ष में जारी होने वाले कुल आदेशों में से महज 39 फीसदी मामलों में ही अपीलकर्ता को चाही गई सूचना मिल पाई।

उन्होंने कहा कि अपीलकर्ताओं की नजर में जिन आयोगों का कामकाज सबसे ज्यादा संतुष्टि देने वाला रहा है, उसमें कर्नाटक राज्य सूचना आयोग शीर्ष पर है जहां अपील करने वाले 55 फीसदी लोगों ने कहा कि उन्हें चाही गयी सूचना मिली।

उन्होंने कहा कि देश भर में जन सूचना अधिकारी [पीआईओ] के तौर पर काम कर रहे सरकारी अफसरों की सौ में से 98 गलतियां चुपचाप माफ कर दी जाती हैं।

इनके खिलाफ सुनवाई करने वाले सूचना आयुक्त इन्हें सिर्फ अपनी गलती सुधार लेने भर को कहते हैं। यह खुलासा सूचना आयुक्तों के फैसलों के एक व्यापक अध्ययन में हुआ है।

अध्ययन के मुताबिक केंद्र और राज्यों के मौजूदा सूचना आयुक्त सरकारी अफसरों से इस कानून का पालन करवा पाने में असरदार साबित नहीं हो रहे। इसकी वजह भी ये आयुक्त खुद ही हैं। दरअसल, लगभग सभी मामलों में ये उल्लंघन करने वालों को कोई सजा ही नहीं देते। जन सूचना अधिकारी के तौर पर काम कर रहा अफसर अगर तीस दिन के अंदर मांगी गई सूचना नहीं देता तो कानूनन उस पर हर दिन की देरी के लिए जुर्माना लगना चाहिए।

लेकिन जिन मामलों में सूचना आयुक्त यह मान भी लेते हैं कि आवेदनकर्ता सही है और उसे सूचना उपलब्ध करवाई जानी चाहिए, उनमें भी वो उल्लंघन करने वाले अधिकारी को दंडित नहीं करते।

उच्च न्यायालय ने अपने आदेश की अनदेखी पर न्यायिक मजिस्ट्रेट को व्यक्तिश: हाजिर होने का आदेश दिया।


राजस्थान उच्च न्यायालय ने आदेश की अनदेखी की शिकायत पर जयपुर शहर में कार्यरत न्यायिक मजिस्ट्रेट सरिता स्वामी को व्यक्तिश: हाजिर होने को कहा है। मुख्य न्यायाधीश जगदीश भल्ला व न्यायाधीश मनीष भण्डारी की खण्डपीठ ने रूप्पल खुल्लर की अवमानना याचिका पर बुधवार को यह अंतरिम आदेश दिया।


प्रार्थीपक्ष की ओर से अधिवक्ता अजय कुमार जैन ने न्यायालय को बताया कि उच्च न्यायालय ने 27 जुलाई 09 को ट्रायल कोर्ट को उसके यहां लम्बित इस प्रकरण से सम्बन्धित भरण पोषण मामले में दो माह में फैसला करने का आदेश दिया, ट्रायल कोर्ट को उच्च  न्यायालय के आदेश की जानकारी भी दे दी, लेकिन ट्रायल कोर्ट ने 24 सितम्बर को सुनवाई 24 अक्टूबर तक टाल दी।

अवमानना याचिका में यह भी बताया कि प्रार्थीपक्ष ने ट्रायल कोर्ट में सुनवाई लम्बी टालने पर आपत्ति की तो उसे यह कहकर अनदेखा कर दिया कि इस अवधि में कार्य दिवस कम हैं और कार्य अधिक है। साथ ही, ट्रायल कोर्ट ने यह कहा कि प्रार्थीपक्ष के अधिवक्ता को आपत्ति है तो मामला किसी अन्य न्यायालय में स्थानान्तरित करवा सकते हैं।

देश का पहला एडवोकेट ट्रेनिंग सेंटर ग्वालियर में।


अभिभाषकों को प्रेक्टिस के दौरान आने वाली कठिनाइयों को दूर करने के लिए बार कौंसिल ऑफ इंडिया ने अभिनव पहल की है। इसके चलते देश का पहला एडवोकेट ट्रेनिंग सेंटर ग्वालियर में खुलने जा रहा है। इसमें अभिभाषकों को प्रेक्टिस के दौरान की जाने वाली बहस, न्यायालय में उपस्थित होने और प्रकरणों का अध्ययन करने की बारीकियां सिखरई जाएंगी।

अभिभाषकों को प्रेक्टिस की बारीकियां सिखाने के लिए मप्र उच्चन्यायालय, बार कौंसिल ऑफ इंडिया और मप्र राज्य अधिवक्ता परिषद द्वारा इस ट्रेनिंग सेंटर की स्थापना की जा रही है। सेंटर कंपू स्थित पुराने फैमिली कोर्ट के परिसर में अपना काम करेगा। यहां चल रही तैयारियां अंतिम चरण में हैं। अगले कुछ दिनों में यह पूरी हो जाएंगी। इस सेंटर में देशभर के अभिभाषक वकालत व्यवसाय से जुड़ी बारीकियां सीख सकेंगे। बताया गया है कि अभिभाषकों को ट्रेनिंग न्यायिक अधिकारी एवं वरिष्ठ अभिभाषकों द्वारा दी जाएगी। इसका सबसे अधिक लाभ नए अभिभाषकों को होगा। अभी कई नए अभिभाषकों को शुरुआती दौर में कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है, लेकिन यहां ट्रेनिंग लेने के बाद ऐसा नहीं होगा।

ट्रेनिंग सेंटर में निर्माण कार्य अंतिम चरण में चल रहा है और 31 अक्टूबर को इसका शुभारंभ सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायमूर्ति एपी मिश्रा करेंगे। इस कार्यक्रम में मप्र के मुख्य न्यायाधिपति न्यायमूर्ति एके पटनायक, बार कौंसिल ऑफ इंडिया के चेयरमैन एसएनपी सिन्हा और मप्र राज्य अधिवक्ता परिषद के अध्यक्ष रामेश्वर नीखरा प्रमुख रूप से मौजूद रहेंगे।

सुप्रीम कोर्ट जस्टिस पर चप्पल फेंकने के आरोप में तीन माह की सजा।


सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक जस्टिस की ओर चप्पल फेंकने के मामले में मुंबई स्थित विवादास्पद 'बॉस स्कूल ऑफ म्यूजिक' की चार महिला सदस्यों को तीन महीने कैद की सजा सुनाई है। कोर्ट ने साथ ही कहा कि चप्पल फेंकना सुप्रीम कोर्ट की अवमानना है।

कोर्ट ने बीती 20 मार्च की इस घटना के लिए सरिता पारिख, एनेट कोटियन, पवित्रा मुरली और लीला डेविड को तुरंत गिरफ्तार करने का निर्देश दिया है। इनमें से एक सदस्य ने स्कूल से जुड़े मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट रूम में जस्टिस अरिजीत पसायत (अब रिटायर) की ओर चप्पल फेंका था।

इस फैसले के बाद सरिता और एनेट को सुरक्षाकर्मियों ने हिरासत में ले लिया। वहीं कोर्ट ने दिल्ली और मुंबई के पुलिस कमिश्नरों से दो अन्य महिलाओं को गिरफ्तार करने के लिये कदम उठाने को कहा है। कोर्ट ने राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और जुडिशरी के खिलाफ बेतुके आरोप लगाती याचिका दायर करने के लिए इन सभी पर एक-एक लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया है।

‘दागी’ जज न बन पाएं इस हेतु जजों की नियुक्ति प्रक्रिया में बदलाव की तैयारी


विधि मंत्री वीरप्पा मोइली ने कहा कि सरकार नहीं चाहती कि कोई दागी व्यक्ति जज की कुर्सी पर बैठ सके, इसलिए वह ऊपरी अदालतों में न्यायाधीशों की नियुक्ति के तरीके पर पुनर्विचार कर सकती है। मोइली ने कहा कि ऊपरी अदालतों में भ्रष्टाचार की शिकायतों से निपटने के लिए सरकार 19 नवम्बर से शुरू हो रहे शीतकालीन सत्र में विधेयक पेश कर सकती है।

साथ ही, उन्होंने कर्नाटक उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश पी.डी. दिनकरण को सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के तौर पर पदोन्नति पर रोक लगाने पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया।

मोइली ने कहा कि बिना जवाबदेही के न्यायपालिका की स्वतंत्रता का कोई मतलब और महत्व नहीं है। न्यायाधीश जांच विधेयक, 1968 सिर्फ न्यायाधीशों के खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया को लेकर है और उसमें और कुछ नहीं है। हम सोच रहे हैं कि इसकी जगह एक व्यापक न्यायाधीश मानक एवं जवाबदेही विधेयक लाया जाना चाहिए। हम उम्मीद करते हैं कि यह संसद के शीतकालीन सत्र में पेश होगा।

Monday, October 19, 2009

डू-नाट काल के स्थान पर डू-काल रजिस्ट्री, जब चाहेंगे तभी आएंगे विज्ञापन वाले काल।


दूरसंचार नियामक ट्राई डू-काल रजिस्ट्री पर उद्योग के विचार मांगने जा रहा है। डू-काल रजिस्ट्री के तहत टेलीमार्केटिंग कंपनियां सिर्फ उनके उपभोक्ताओं को काल कर सकेंगी, जिनका इस योजना के तहत पंजीकरण हुआ होगा। इस बारे में दूरसंचार नियामक इसी सप्ताह परामर्श पत्र जारी करेगा।

ट्राई के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि नेशनल डू-नाट काल (एनडीएनसी) रजिस्ट्री ज्यादा सफल नहीं हो पाई है। इसी की वजह से अब डू काल रजिस्ट्री (डीसीआर) के विकल्प पर विचार किया जा रहा है।एनडीएनसी को अक्टूबर, 2007 में शुरू किया गया था। कुल 44.8 करोड़ मोबाइल धारकों में से मात्र दो करोड़ मोबाइल धारकों ने एनडीएनसी के तहत पंजीकरण कराया है।

इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से डू-काल रजिस्ट्री का विकल्प तलाशने को कहा था। डू-काल रजिस्ट्री के लागू होने के बाद टेलीमार्केटिंग कंपनियां सिर्फ पंजीकत ग्राहकों को ही काल कर सकेंगी। पंजीकृत मोबाइल धारकों के अलावा अन्य लोगों को काल गैरकानूनी होगी।

उद्योग क्षेत्र के विश्लेषकों का कहना है कि इस तरह की अवांछित काल्स पर रोक लगाने के लिए डीसीआर ज्यादा प्रभावी होगी। इससे पूर्व दूरसंचार विभाग ने यह मामला ट्राई के पास भेज दिया था। इस तरह की काफी शिकायतें आ रही हैं कि एक व्यवस्था के होने के बावजूद अवांछित काल्स पर रोक नहीं लग पाई है।

जजों की नियुक्ति प्रक्रिया का ब्यौरा देने से इनकार।


सुप्रीम कोर्ट में अभी भी सूचना के अधिकार यानी आरटीआई कानून को लेकर जिद्दोजहद जारी है। कानून का सहारा लेकर पूछी जा रही जानकारियों में हां-हां, ना-ना का सिलसिला चल रहा है। इसी क्रम में सुप्रीम कोर्ट ने जजों की नियुक्ति प्रक्रिया की जानकारी मांगने वाली अर्जी गोपनीयता का हवाला देकर ठुकरा दी है। इसके बाद आवेदनकर्ता ने इसे सर्वोच्च अदालत में ही चुनौती दे दी है।

सुभाष चंद्र अग्रवाल ने आरटीआई के तहत अर्जी देकर न्यायाधीशों को सुप्रीम कोर्ट में प्रोन्नत करने की कोलीजियम की सिफारिश और चयन प्रक्रिया का ब्यौरा मांगा गया था। इस अर्जी में न्यायाधीशों की नियुक्ति पर आपंित्त उठाने वाली वकीलों की चिट्ठी और उस पर मुख्य न्यायाधीश की ओर से भेजे गये जवाब का भी विवरण मांगा गया था। गौरतलब है कि जिन पांच जजों की सुप्रीम कोर्ट में प्रोन्नति की सिफारिश की गई है, उनमें कर्नाटक हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश पी.डी. दिनकरन का नाम भी शामिल है। हालांकि दिनकरन पर लगे आरोपों के मद्देनजर फिलहाल उनकी प्रोन्नति पर रोक लगी है।

अग्रवाल ने यह भी जानना चाहा था कि हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीशों को सुप्रीम कोर्ट प्रोन्नत करने की सिफारिश में चयन का क्या आधार होता है। वरीयता को नजरअंदाज करने के आधार के साथ सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीशों के खाली पड़े पदों का भी ब्यौरा मांग गया था। न्यायाधीशों की चयन प्रक्रिया को कुरेदने वाले इन प्रश्नों का जवाब देने से सुप्रीम कोर्ट ने साफ इन्कार कर दिया है। अग्रवाल की अर्जी के जवाब में सुप्रीम कोर्ट के सीपीआईओ राजपाल अरोड़ा की ओर से गत दस अक्टूबर को भेजे गए जवाब में कहा गया है कि मांगी गई जानकारी गोपनीय है। इसलिए उसके बारे में कोई सूचना नहीं दी जा सकती है। मांगी गई ग्यारह सूचनाओं में से सिर्फ एक सूचना दी गई है, जिसमें कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीशों के आठ पद खाली पड़े हैं।

अग्रवाल ने सुप्रीम कोर्ट के सीपीआईओ [जनसूचना अधिकारी] के सूचना देने से इन्कार करने वाले जवाब को सुप्रीम कोर्ट की अपीलाट अथारिटी रजिस्ट्रार एम.के. गुप्ता के सामने चुनौती दी है।

जिन पर ईज्जत की रक्षा की जिम्मेदारी थी उन्होनें ही किया रिश्तो को तार-तार।


जिस पिता,भाई और चाचा पर मुझे दुनिया की बुरी नजर से बचाए रखने की जिम्मेदारी थी उन्होंने ही मेरी इज्जत लूट ली। जी हां 14 साल की रेखा(बदला हुआ नाम) शायद आज यही सोच रही होगी । ब्रिटेन के कारडिफ क्राउन कोर्ट ने अपने ही परिवार के एक सदस्य के साथ लगातार कई वर्षों तक बलात्कार करने के जूर्म में पीड़ित के सौतेले पिता,सौतेले चाचा और सौतेले भाई को सजा सुनाई है। यह वाकया है ब्रिटेन में रहने वाले एक भारतीय परिवार का।

रेखा अपने सौतेले पिता,सौतेले चाचा, सौतेले भाई और मां के साथ ब्रिटेन में बचपन से रहती थी। कोर्ट में पीड़ित की वकील ने यह बताया कि रेखा के परिवार के इन तीनों सदस्यों ने उससे तब से रेप करना शुरू किया जब वो केवल 5 साल की थी। इन लोगों ने लगातार उसका शारीरिक शोषण किया। इस बीच वो कई बार गर्भवती भी हुई। 14 साल की उम्र में आज वो अपने चाचा के बच्चे की मां बन चुकी है। रेखा ने कोर्ट को बताया की वो जब कभी भी प्रेगनेंट होती थी तो उसे घरवाले कहीं बाहर नहीं जाने नहीं देते थे साथ ही पड़ोसियों की नजर से छुपाने के लिए उसे अलमारी तक में बंद कर देते थे।

रेखा ने कोर्ट में बताया कि जब उसने एक बच्चे को जन्म दिया तब पड़ोसियों ने पुछा कि बच्चा किसका है। तब रेखा की मां ने उन्हे बताया कि यह बच्चा उनका है। रेखा के मुताबिक उसकी मां उसे लगातार मारती-पीटती थी। जब मां को पहली बार इस बात का अहसास हुआ कि मैं प्रेगनेंट हूं तब उसने मुझे काफी मारा-पीटा और मुझसे पुछा कि ये बच्चा किसका है और जब मैने उन्हे बताया कि ये बच्चा इसी परिवार के एक सदस्य का है तो वो फिर मुझे मारने लगी। वो इस बात को मानने को तैयार नहीं थी कि मेरे सौतेले पिता,सौतेले चाचा और सौतेले भाई मेरे साथ इस प्रकार की हरकत कर सकते हैं।

कोर्ट ने रिश्तों का कत्ल करने वाले इन तीनों लोगों को सजा सुनाई है। कोर्ट ने सौतेले पिता और सौतेले चाचा को जहां 20 साल की सजा सुनाई है वही सौतेले भाई को 12 साल की जेल दी है।कोर्ट ने अपने निर्णय में कहा की इन लोगों ने रिश्तों को कलंकित तो किया ही है साथ ही घर की लड़की को एक वेश्या की तरह प्रयोग किया।

कोर्ट के मुताबिक इन लोगों की सजा पूरी होने के बाद इन्हे भारत भेज दिया जाएगा। क्योंकि अगर ये लोग ब्रिटेन में रहते हैं तो इससे यहां के समाज पर बुरा प्रभाव पड़ेगा।


Saturday, October 17, 2009

न्यायाधीश रवीन्द्रन बने सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम के सदस्य।




न्यायाधीश आरवी रवीन्द्रन को सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम का नया सदस्य नियुक्त किया गया है। वे सुप्रीम कोर्ट के दूसरे सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश बी एन अग्रवाल का स्थान लेंगे। न्यायाधीश अग्रवाल बुधवार को सेवानिवृत्त हुए थे। मुख्य न्यायाधीश के जी बालाकृष्णन की अध्यक्षता वाले इस कॉलेजियम के अन्य सदस्यों में न्यायाधीश एचएस कपाडिया, न्यायाधीश तरूण चटर्जी और न्यायाधीश अल्तमस कबीर शामिल हैं। यह कॉलेजियम भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे कर्नाटक हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश पीडी दिनकरण के भविष्य का फैसला करेगा।

कानून की नजर में सब बराबर हैं, जुमला सच कर दिखाया अर्नोल्ड श्वार्जनेगर ने।


मुंबईया फिल्मों में अक्सर एक डॉयलाग सुनने को मिल जाता है कि 'कानून की नजर में सब बराबर हैं। ये जुमला सच कर दिखाया है कैलिफोर्निया के गवर्नर अर्नोल्ड श्वार्जनेगर ने।
हालीवुड के एक्शन हीरो से गवर्नर बनने वाले अर्नोल्ड ने अपनी पत्नी मारिया श्राइवर के खिलाफ कुछ ऐसा ही कदम उठाया। मारिया कार चलाते समय फोन पर बात कर रही थीं। अर्नोल्ड को यह गवारा नहीं था कि उनकी बीवी कानून तोड़े। अर्नोल्ड ने साफ कहा है कि मारिया पर उचित कार्रवाई की जाएगी।
वेबसाइट टीएमजे डाटकाम के एक वीडियो में मारिया को कानून का उल्लंघन करते दिखाया गया। फुटेज देखकर 'टर्मिनेटर स्टार अपने गुस्से पर काबू नहीं रख सके। उन्होंने अपने ट्विटर पर लिखा कि मुझे मेरी बीवी के कानून तोडऩे की जानकारी देने के शुक्रिया। उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।
अर्नोल्ड के प्रवक्ता ने बताया कि गवर्नर की सख्त कार्रवाई का मतलब है कि वो अपनी बीवी को कार चलाते समय फोन पर बात करने से मना कर देंगे। कैलिफोर्निया में एक जुलाई 2008 को कार चलाते समय फोन पर न बात करने का कानून बनाया गया था।
गाड़ी में फोन करते हुए पहली बार पकड़े जाने पर 20 डालर (करीब एक हजार रूपये) का जुर्माने का प्रावधान है। जबकि दूसरी बार में कानून तोडऩे पर 50 डालर (करीब ढाई हजार रूपये) देने होंगे।

पत्नी सहित अमर फंसे, आरोप से किया इनकार


समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता अमर सिंह और उनकी पत्नी के खिलाफ करीब 500 करोड़ रुपये के कथित घपले के आरोप में प्राथमिकी दर्ज कराई गई है जबकि सिंह ने इस आरोप को मनगढ़ंत कहकर खारिज कर दिया है।

प्रदेश के अपर पुलिस महानिदेशक [कानून एवं व्यवस्था] बृजलाल ने लखनऊ में बताया कि कल कानपुर के बाबूपुरवा पुलिस थाने में दर्ज करवाई गई प्राथमिकी में सिंह और उनकी पत्नी पर लगभग पांच सौ करोड़ रुपये के काले धन को सफेद करने के लिए विभिन्न नामों से पांच कंपनियां खोलने का आरोप है। उन्होंने कहा कि 14 पृष्ठों की शिकायत अभिनेता अमिताभ बच्चन का नाम कंपनी के निदेशक के रूप में आया है।

कानपुर की डीआईजी नीरा रावत ने बताया कि शिवकांत त्रिपाठी ने 14 पन्नों की अपनी शिकायत में आरोप लगाया है कि वर्ष 2003-2008 के दौरान अमर सिंह और उनकी पत्नी ने अपनी कंपनियों को दूसरी कंपनियों के साथ मिलाकर इस तरीके से तकरीबन पांच सौ करोड़ रुपये की रकम अर्जित की। शिकायतकर्ता शिवकांत त्रिपाठी की पहचान कानपुर में एक स्कूल चलाने वाले व्यक्ति के रूप में की गई है जो वहां के कई सामाजिक संगठनों से जुड़ा है।

अपर पुलिस महानिदेशक ने बताया कि भारतीयद दंड संहिता, भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम और धन शोधन कानून की विभिन्न धाराओं के तहत प्राथमिकी दर्ज कर ली गई है।

घटनाक्रम पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए सपा नेता अमर सिंह ने कहा कि आरोप मनगढ़ंत हैं जो टिक नहीं पाएंगे। उन्होंने कहा कि मेरे पास छिपाने को कुछ नहीं है। हर चीज सार्वजनिक है और इंटरनेट पर उपलब्ध है। वे पब्लिक लिमिटेड कंपनी हैं, जिनका अंकेक्षण अंकेक्षकों द्वारा किया जाता है। अमिताभ बच्चन और मेरे खिलाफ आरोप लगाना आसान है, क्योंकि इससे टेलीविजन चैनलों की टीआरपी बढ़ जाती है।

अमर सिंह ने कहा कि बच्चन को बाराबंकी भूमि मामले में भी फंसाया गया लेकिन बाद में सभी आरोप निरस्त हो गए। प्राथमिकी में एनर्जी डेवेलपमेंट कंपनी लिमिटेड, ईडीसीएल पावर लिमिटेड, पंकजा आर्ट एंड क्रेडिट लिमिटेड, सर्वोत्तम कैप लिमिटेड, ईडीसीएल इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड एंड ईस्टर्न इंडिया कंपनी के नाम दिए गए हैं। सिंह दंपत्ति के पास इन सभी का स्वामित्व है अथवा वे ही इन्हें चला रहे हैं।

Thursday, October 15, 2009

क्यों न स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक बंद कर दिया जाएःदिल्ली हाईकोर्ट


दिल्ली हाईकोर्ट ने स्टैन्डर्ड चार्टर्ड बैंक को नोटिस भेजकर पूछा है कि क्यों न बैंक को बंद कर दिया जाए। अदालत ने ये कड़ा रुख इसलिए अपनाया है क्योंकि स्टैन्डर्ड चार्टर्ड बैंक ने अपने एक अकाउंट होल्डर की प्रॉपर्टी को अपने कब्जे में रख लिया है। बैंक ने अकाउंट होल्डर को प्रॉपर्टी के कागज नहीं लौटाए और अदालत के दखल के बावजूद डेढ़ लाख रुपए का जुर्माना भी नहीं भरा।

डी एस साहनी के लिए स्टैन्डर्ड चार्टर्ड बैंक से लिया 8 करोड़ का एक लोन नासूर बन गया है। एक्सपोर्ट हाउस चलाने वाले साहनी ने पैकिंग एंड क्रेडिट लिमिट यानि पीसीएल का 8 करोड़ का लोन लिया था। दिल्ली के निजामुद्दीन वेस्ट में अपनी एक प्रॉपर्टी के एवज में लिया गया ये लोन साहनी चुका भी चुके हैं। लेकिन बैंक ने अबतक उनकी प्रॉपर्टी के कागज उन्हें वापस नहीं दिए हैं।

आखिरकार डी एस साहनी अपनी गुहार लेकर डेट रिकवरी ट्रिब्यूनल के पास गए और डीआरटी ने उनके हक में फैसला किया। डीआरटी ने बैंक को फौरन उनकी प्रॉपर्टी के कागज लौटाने को कहा और साथ ही डेढ़ लाख रुपए का जुर्माना भी ठोका। लेकिन बैंक ने ये आदेश भी नहीं माना और तब साहनी ने दिल्ली हाईकोर्ट में वाइंडिंग अप पिटिशन दाखिल की। उनके वकील गजेन्द्र गिरि ने बताया कि हाईकोर्ट ने नोटिस जारी किया कि क्यों ना बैंक को बंद किया जाए। एक महीने में नोटिस का जवाब देना था जो नहीं दिया गया।


किसी संस्था को वाइंडिंग अप पिटिशन पर कोर्ट का नोटिस तब जाता है जब कोर्ट इस बात से आश्वस्त हो कि उस संस्था में अपना बकाया चुकाने की कुव्वत नहीं है। हमने जब स्टैन्डर्ड चार्टर्ड बैंक से इस मनमाने रवैये की वजह जानने की कोशिश की तो ईमेल के ज़रिए बैंक ने अलग ही दलील दी। बैंक के मुताबिक साहनी के भाई ने भी बैंक से लोन लिया है, और जब तक उसे नहीं चुकाया जाता, बैंक प्रॉपर्टी के कागज नहीं देगा। बैंक ने डीआरटी के ऑर्डर के खिलाफ डेट ऐपलेट रिकवरी ट्रिब्यूनल में अपील भी की है।

क्या जमानत की शर्त राष्ट्रीय ध्वज फहराना भी हो सकती है?


किसी आरोपी को जमानत देने के बदले में क्या उसे राष्ट्रीय ध्वज फहराने और एक सप्ताह तक अनाथालय में सेवा करने के लिए मजबूर किया जा सकता है? सुप्रीम कोर्ट दो आरोपियों की ओर से दायर एक याचिका में पूछे गए इस सवाल पर गौर करेगी।

जस्टिस बी. सुदर्शन रेड्डी और दीपक वर्मा की पीठ ने तमिझरासन और वी. भारती की याचिका को मंजूर करते हुए इस मामले में तमिलनाडु सरकार से जवाब मांगा है। इन दोनों पर राष्ट्रीय ध्वज को जलाने की कोशिश करने का आरोप है। मद्रास हाईकोर्ट ने उनकी जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए राष्ट्रीय ध्वज फहराने और किसी अनाथालय में हफ्ते भर तक सेवा करने की 'असामान्य शर्त' लगा दी थी।

हाईकोर्ट ने इस आधार पर यह शर्त लगाई कि नागरिकों में 'मौलिक कर्तव्य' की भावना पैदा करना जरूरी हो गया है। अदालत के मुताबिक देश में किसी आंदोलन के दौरान लोगों में राष्ट्रीय ध्वज जलाने और रेल व अन्य सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है।

अभियोजन [प्रासीक्यूशन] के अनुसार 25 अप्रैल 2009 की सुबह सवा दस बजे के करीब दोनों आरोपी कोयंबटूर में जिला कलेक्टर के दफ्तर के बाहर पहुंचे और श्रीलंका में सेना के हाथों तमिलों के कथित नरसंहार के विरोध में भारतीय और श्रीलंकाई ध्वज जलाने की कोशिश की। दोनों को राष्ट्रीय ध्वज के अपमान के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया। सत्र अदालत से जमानत अर्जी नामंजूर होने के बाद उन्होंने मद्रास हाईकोर्ट में अपील की।

हाईकोर्ट ने 18 मई को उन्हें इस शर्त के साथ जमानत दे दी कि वे एक हफ्ते तक रोजाना अपने घर के बाहर राष्ट्रीय ध्वज फहराएंगे और इस दौरान किसी अनाथालय या वेलफेयर होम में सेवा करेंगे।

वकील के साथ पुलिस कर्मियों ने की मारपीट।


इफको चौक के पास अपनी पत्नी के साथ आ रहे एक वकील को पुलिस ने पीट दिया। इसके विरोध में गुड़गांव सिविल कोर्ट के सैकड़ों वकीलों ने पूरे दिन भर सड़क को जाम रखा और पुलिस के खिलाफ नारेबाजी की। इस दौरान सोहना रोड पर वकीलों ने जाम लगा दिया और टायरों को भी आग के हवाले कर दिया। पुलिस का कहना है कि मामले की जांच की जा रही है और दोषियों के खिलाफ उचित कार्रवाई की जाएगी। उधर, देर शाम तक इस मामले पर कोई फैसला नहीं होने की वजह से बार एसोसिएशन ने बृहस्पतिवार को सामूहिक हड़ताल का ऐलान कर दिया। उन्होंने दोषी पुलिसकर्मियों को तुरंत गिरफ्तार कर, बर्खास्त करने की मांग की है।

सिविल कोर्ट के वकील दिलबाग सिंह, अपनी ऑल्टो से आ रहे थे। उनकी पत्नी भी उस वक्त साथ थी। सड़क पर मौजूद पुलिसकर्मियों ने उनसे कार के दस्तावेज मांगे और इसे पूरा न होने की दलील देने लगे। दोनों के बीच बहस के बाद, वहां मौजूद दो कांस्टेबल और एक एएसआई ने उनके साथ मारपीट की और कार की टायर के नीचे पांव रखकर, इसे दबाने की कोशिश की। गुड़गांव बार एसोसिएशन के प्रधान संतोख सिंह ने कहा कि पुलिस कर्मियों के इस बर्ताव की एसोसिएशन निंदा करती है। उन्होंने दोषियों के खिलाफ जल्द कार्रवाई की भी मांग की है। बुधवार को पुलिस की ओर से माकूल जवाब नहीं मिलने पर, वकीलों ने बृहस्पतिवार को हड़ताल का फैसला लिया है।
डीसीपी राकेश आर्य ने बताया कि मामले की जांच की जा रही है और दोषियों के खिलाफ उचित कार्रवाई की जाएगी।

निजी स्कूलों में बढ़ाई फीस पर रोका, अगली सुनवाई 29 को।


पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने निजी स्कूलों के संगठन द्वारा डाली गई सामान्य रिट पीटिशन पर सुनवाई करते हुए अगली सुनवाई तक बढ़ाई हुई फीस लेने पर रोक लगा दी है। कोर्ट ने संचालकों से शिक्षा निदेशालय हरियाणा सरकार द्वारा पारित आदेश 6 जुलाई के अनुसार फीस लेने को कहा है।

इसके तहत निजी स्कूल टयूशन फीस 20 प्रतिशत तक ही बढ़ाकर ली जा सकती है। वह भी तब, जब स्कूल में फंड की कमी हो। इसके साथ आय-व्यय का पूर्ण ब्यौरा निदेशालय को दे दिया गया है। अभिभावक एकता मंच के जिलाध्यक्ष एनएल जांगिड़ ने सभी स्कूलों की पैरेंट्स एसोसिएशन के पदाधिकारियों से बढ़ी फीस देने की एवज में रसीद मंच के कार्यालय में जमा कराने का निवेदन किया है। ताकि ऐसे स्कूलों के खिलाफ उचित कानूनी कार्रवाई की जा सके। मामले की पूर्ण सुनवाई 29 अक्तूबर को होगी। एपीजे शिक्षा समिति सेक्टर 15 ने एक सामान्य रिट पीटिशन रजिस्ट्री नं. 15039 24 सितम्बर के तहत हाईकोर्ट में डाली है। कोर्ट ने निजी स्कूलों के संगठन द्वारा डाली हुई पीटिशन में शामिल कर लिया है।

राष्ट्रीय महिला आयोग की मानी गई तो बेवफा पत्नी, सौतेली सन्तान को भी देना होगा गुजारा भत्ता।


राष्ट्रीय महिला आयोग ने सुझाव दिया है कि विवाहित व्यक्ति को न सिर्फ अपनी पत्नी व बच्चों, बल्कि सौतेले बच्चों व सौतेले अभिभावकों को भी गुजारा भत्ता देना चाहिए। आयोग ने ‘बेवफा’ पत्नी को भी पति से गुजारा भत्ता पाने का हकदार बनाने की सलाह दी है। इन सुझावों से समाज में नई बहस छिड़ने की आशंका जताई जा रही है।  पति से बेवफाई वह आधार है, जिसके सहारे महिला को गुजारा भत्ता पाने से वंचित किया जा सकता है। लेकिन इस प्रावधान की आड़ में अक्सर पति अपनी पत्नी को गुजारा भत्ते से वंचित कर देते हैं। अब आयोग चाहता है कि सीआरपीसी की धारा 125 (5) में इस प्रावधान को हटा दिया जाए। आयोग यह भी चाहता है कि कानून में पत्नी की परिभाषा का दायरा बढ़ा दिया जाए। इसमें उस महिला को भी शामिल किया जाए, जिसके किसी अन्य व्यक्ति से वैवाहिक जैसे रिश्ते हैं या जो अपनी शादी को अमान्य करती हो। आयोग ने किसी बच्चे के लिए धारा 125 (आई)(बी) से ‘अवैध संतान’ शब्द हटाने की भी सलाह दी है।
बेंगलुरू स्थित नेशनल लॉ स्कूल में आयोजित एक कार्यशाला में वकीलों से हुई चर्चा के आधार पर आयोग ने ये सिफारिशें तैयार की हैं। इसमें यह भी कहा गया कि धारा 125 (आई) को हटाकर व्यक्ति के लिए अपने परिवार का भरण-पोषण हर हाल में करने की अनिवार्यता तय की जाए। फिर चाहे, उसके पास संसाधन हों या नहीं।

पुरुषों के संगठनों ने आयोग की इन सिफारिशों पर कड़ा ऐतराज जताया है। सेव इंडियन फैमिली फाउंडेशन के विराग धुलिया ने कहा कि ऐसे मामले गुण-दोषों के आधार पर निपटाए जाने चाहिए, न कि लिंगभेद के आधार पर।

Tuesday, October 13, 2009

राजस्थान में गुर्जरों के आरक्षण पर रोक।


राजस्थान हाईकोर्ट ने मंगलवार को गुर्जरों को विशेष श्रेणी में और गरीब सवर्णो को आरक्षण देने पर अंतरिम रोक लगा दिया है। साथ में राजस्थान सरकार को नोटिस जारी करते हुए जवाब मांगा है। हाईकोर्ट के इस आदेश के बाद गुर्जर आंदोलन और सरकार को तगड़ा झटका लगा है।
गौरतलब है कि राज्य में सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के बावजूद पचास फीसदी से अधिक आरक्षण दिए जाने पर एक व्यक्ति ने राजस्थान हाईकोर्ट को एक पत्र लिख इसे रद्द करने की मांग की थी। जिसके बाद राजस्थान हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस जगदीश भल्ला और जस्टिस एमएन भंडारी की खंडपीठ ने सरकार को नोटिस जारी किया।

कोर्ट नहीं, गुंडों पर भरोसा कर रहे हैं लोगः जज


सुप्रीम कोर्ट के एक न्यायाधीश ने कहा है कि लोग अपनी शिकायतों के निपटारे के लिए न्याय प्रणाली के बजाय स्थानीय गुंडों पर अधिक भरोसा कर रहे हैं, जिसके लिए फैसलों में देरी और अनिश्चितता को जिम्मेदार ठहराया जाता है।

न्यायमूर्ति आरवी रवींद्रन ने रोहिणी अदालत परिसर में एक मध्यस्थता केंद्र के उद्घाटन के मौके पर संबोधित करते हुए कहा कि एक व्यक्ति मुकदमा क्यों दायर करे, जबकि 30 साल बाद भी वह मामले के नतीजे को लेकर आश्वस्त नहीं होता। इस तरह की परिस्थितियों में शिकायती लोग गुंडों का सहारा लेते हैं, क्योंकि वे जल्दी निपटारा कर देते हैं। उन्होंने कहा कि अनिश्चितता इस मायने में कि कोई वादी निचली अदालतों में जीतने के बाद भी किसी मामले में हार सकता है, वहीं निचली अदालतों में हारने के बाद भी हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में जीत सकता है।

न्यायमूर्ति रवींद्रन ने दीवानी और आपराधिक मामलों के बीच असमानता पर भी चिंता जताई और कहा कि न्यायिक बिरादरी के लिए इस संबंध में काम करने का समय आ गया है। उन्होंने कहा कि 58 साल पहले मुकदमे के दीवानी और आपराधिक पक्ष का अनुपात 50:50 था, जो अब 20:80 हो गया है और वह समय दूर नहीं जब अदालतों में केवल आपराधिक मामले रह जाएंगे जो न्याय प्रणाली से पूरी तरह विश्वास को उठाता है।

वैकल्पिक विवाद निपटारा प्रणाली को बढ़ावा देने की स्थिति में वकीलों द्वारा अपनी आय कम होने की आशंकाओं को दूर करते हुए न्यायमूर्ति रवींद्रन ने कहा कि विवादों के समाधान के लिए मध्यस्थता एक प्रभावी हथियार है, जिसमें वादी और वकील दोनों ही उत्साहजनक स्थिति में होते हैं। उन्होंने कहा कि वादियों के लिए मध्यस्थता लाभकारी है क्योंकि यह समय और धन दोनों ही बचाती है तथा सौहार्दपूर्ण तरीके से मामले का समाधान होता है, जबकि मुकद्मे में प्रत्येक व्यक्ति असंतुष्ट होता है।

विकसित देशों में मध्यस्थता के जरिए मामलों के निपटारे की बड़ी सफलता का जिक्र करते हुए न्यायमूर्ति ने कहा कि भारत में यह दर कम है क्योंकि लोगों की मुकद्मा लड़ने की धारणा होती है, जिसके लिए एक तरह से कोई अदालती शुल्क नहीं होना जिम्मेदार होता है। उन्होंने कहा कि दिल्ली में 2005 से मध्यस्थता के जरिए पांच हजार से अधिक मामले सुलझाए जा चुके हैं। रोहिणी मध्यस्थता केंद्र ने अकेले दो फरवरी 2009 से 700 से अधिक मामलों को निपटाया है।

पीएफ भुगतान को हर हाल में प्राथमिकता मिले-उच्चतम न्यायालय


उच्चतम न्यायालय ने कर्मचारी नियोक्ता संबंध में बड़ा बदलाव लाते हुए यह व्यवस्था दी है कि कर्मचारी भविष्य निधि एक्ट 1952 के तहत कर्मचारी को मिलने वाली धनराशि को उसकी सभी देनदारियों से ऊपर समझा जाए।

उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति बीएन अग्रवाल, न्यायमूर्ति जीएस सिंघवी और न्यायमूर्ति आफताब आलम की खंडपीठ ने महाराष्ट्र कोऑपरेटिव बैंक की याचिका का निपटारा करते हुए यह अहम फैसला सुनाया। खंडपीठ ने अपने फैसले में कहा कि इस एक्ट के खण्ड 11 में संशोधन करके जो उपखंड 2 जोड़ा गया है उसमें कहा गया है कि कर्मचारी की भविष्य निधि किसी अन्य दावे की वजह से रोकी नहीं जा सकती है। खण्ड 17 के अनुसार अगर किसी वजह से इस राशि के भुगतान में देरी होती है तो नियोक्ता ब्याज का भुगतान करेगा।

न्यायमूर्ति सिंघवी ने अपने 60 पृष्ठों के फैसले में लिखा है कि उपखंड दो से पता चलता है कि विधायिका इस तथ्य से अवगत थी कि कर्मचारी के भुगतान को प्राथमिकता मिलनी चाहिए।

आरटीआई से खत्म हो सकता है भ्रष्टाचार-राष्ट्रपति


राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने कहा है कि सरकारी व्यवस्था से भ्रष्टाचार और लाल फीताशाही दूर कर बेहतर शासन हासिल करना हिंदुस्तान का सपना रहा है और सूचना का अधिकार [आरटीआई] कानून के व्यापक व सजग इस्तेमाल के जरिये इसे हकीकत में बदला जा सकता है। उन्होंने कहा कि सरकार से सवाल पूछने का जो अधिकार पहले सांसदों और विधायकों को था, वह इस कानून ने हर आम नागरिक को दे दिया है।

सूचना के अधिकार कानून के चार साल पूरे होने के मौके पर केंद्रीय सूचना आयोग ने दो दिनी सम्मेलन आयोजित किया है। सोमवार को इसी सम्मेलन में राष्ट्रपति ने कहा कि लोकतंत्र में सरकार जनता की होती है। जनता जब चाहे, उसे हर योजना की तरक्की के बारे में सही-सही जानकारी मिलनी चाहिए। आरटीआई ने यह तो मुमकिन कर ही दिया है। इस कानून के व्यापक और सजग इस्तेमाल से देश को भ्रष्टाचार और लाल फीताशाही से मुक्त करने का सपना भी पूरा हो सकता है। हालांकि उन्होंने नागरिकों को जिम्मेदारी के साथ इसका इस्तेमाल करने की सलाह भी दी।

कार्मिक, जन शिकायत और पेंशन राज्य मंत्री पृथ्वीराज चह्वाण ने इस मौके पर कहा कि सरकार ने इस कानून को ज्यादा से ज्यादा अनौपचारिक बनाने के लिए हर मुमकिन कदम उठाए हैं। उन्होंने बताया कि विभिन्न सरकारी दफ्तरों में सूचनाओं के बेहतर संकलन के लिए इनमें केंद्र सरकार की मदद से ई-गवर्नेस लाने की योजना बनाई गई है। इसे योजना आयोग ने भी सैद्धांतिक तौर पर मंजूरी दे दी है। अब जल्दी ही इसे लागू किया जा सकेगा।
चव्हाण ने कहा, ‘सरकार ने आरटीआई को कारगार बनाने के लिए पिछले वर्ष केंद्र प्रायोजित योजना पेश की गयी थी। इसके तहत राष्ट्रीय आरटीआई प्रत्युत्तर केंद्र के गठन का कार्य शुरू किया गया था।‘

उन्होंने कहा, ‘‘इसी प्रयास को आगे बढ़ाते हुए सरकार ने आरटीआई में ई-गवर्नेस और ई-मेल के जरिए संवाद की सेवा को सिद्धांत रूप में मंजूरी दे दी है।‘‘ सूचना के अधिकार अधिनियम के चतुर्थ वार्षिक सम्मेलन को संबोधित करते हुए पृथ्वीराज चव्हाण ने कहा, ‘‘सूचना के अधिकार अधिनियम को प्रभावी बनाने के लिए पहले चार वर्ष में सूचना मांगने वालों, सूचना प्रदान करने वालों, स्वयंसेवी संस्थाओं, नागरिक संगठनों, मीडिया आदि सभी पक्षों ने काफी समर्थन दिया है।‘

मुख्य सूचना आयुक्त वजाहत हबीबुल्ला ने कहा कि इस कानून ने भारत को एक आदर्श लोकतंत्र बनने की राह पर अपना सफर तेज करने में मदद की है। भारत में यह कानून लागू होने के बाद नेपाल, बांग्लादेश और भूटान ने भी अपने यहां इसे लागू कर लिया है।

संभावनाओं के आधार पर दोषी नहीं ठहराया जा सकता।


उच्चतम न्यायालय ने व्यवस्था दी है कि आपराधिक मामलों में किसी आरोपी को महज संभावनाओं के आधार पर दोषी नहीं ठहराया जा सकता। आरोपी को दोषी साबित करने के लिए स्पष्ट सबूत होने चाहिए जो स्वाभाविक संदेहों से परे होना चाहिए।
न्यायमूर्ति दलवीर भंडारी और न्यायमूर्ति बी एस चौहान की एक पीठ ने अपने फैसले में कहा कि आपराधिक मामलों में दोषी तभी ठहराया जा सकता है जब आरोपी के खिलाफ सबूत स्वाभाविक संदेहों से परे हों। अपराध को अंजाम देने की संभावनाओं के आधार पर आरोपी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। कथित दहेज संबंधी हत्या के एक मामले में उच्चतम न्यायालय ने यह व्यवस्था दी जिसमें एक व्यक्ति और उसके पिता को सजा सुनाई गई थी। न्यायालय ने निचली अदालत के सजा संबंधी फैसले को भी पलट दिया।
मामले में अभियोजन पक्ष ने तर्क दिया कि वधू ने दहेज प्रताड़ना से तंग आकर फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली,लेकिन आत्महत्या से पहले छोड़े गए खत में किसी को मौत के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया गया था।

राष्ट्रपति ने न्यायाधीशों की नियुक्ति की।


राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने उत्तराखण्ड उच्च न्यायालय में एक न्यायाधीश और आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय में दो और मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय में एक अतिरिक्त न्यायाधीश की नियुक्ति की है।
आज यहां जारी एक सरकारी विज्ञप्ति के अनुसार नल्ला भूमा नारायण राव और समुद्रला गोविंदराजलू को आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय और पीयूष माथुर को मध्य प्रदेश का अतिरिक्त न्यायाधीश नियुक्त किया है । इन तीनों का सेवा काल दो साल का होगा और वह पद कार्यभार संभालने की तिथि से लागू माना जायेगा।
इसी प्रकार आलोक सिंह को उत्तराखण्ड उच्च न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त किया है। इनका सेवा काल पद कार्यभार संभालने की तिथि से लागू माना जायेगा।

Monday, October 12, 2009

सरकार का शास्त्री जी की मृत्यु के बारें में रूस के साथ हुए पत्राचार की जानकारी देने से इंकार।


विदेश मंत्रालय ने पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु के बारे में मास्को स्थित भारतीय दूतावास व रूसी विदेश मंत्रालय के साथ हुए अपने करीब चार दशक पुराने पत्राचार का खुलासा करने से इनकार कर दिया है। मंत्रालय के मुताबिक पत्राचार का खुलासा करने से देश की संप्रभुता व अखंडता तथा इसके अंतरराष्ट्रीय संबंधों पर हानिकारक असर पड़ेगा।
पारदर्शिता संबंधी वेबसाइट www.endthesecrecy.com के संचालक अनुज धर ने सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत दिए आवेदन में शास्त्री की मृत्यु के बाद मंत्रालय व मास्को स्थित भारतीय दूतावास तथा दोनों देशों के विदेश मंत्रालयों में हुए पत्राचार के बारे में जानकारी मांगी थी। साथ ही, उन्होंने यह भी कहा था कि यदि ऐसा कोई पत्राचार नहीं हुआ हो, तो उसके बारे में बताया जाए। धर ने डॉ. आरएन चुघ द्वारा पेश मेडिकल रिपोर्ट का भी ब्योरा मांगा था। डॉ. चुघ तब प्रधानमंत्री के साथ रहते थे।
धर को भेजे जवाब में मंत्रालय ने यह नहीं बताया कि ऐसा पत्राचार हुआ था या नहीं। मंत्रालय ने जवाब में कहा कि मांगी गई तमाम जानकारी का खुलासा आरटीआई कानून के सेक्शन 8 (1) (ए) के तहत नहीं किया जा सकता है। यह सेक्शन ऐसी सूचनाओं के खुलासे का निषेध करता है जिससे देश की संप्रभुता, अखंडता, सुरक्षा आदि के हितों पर हानिकारक असर पड़ता है।

गौरतलब है कि 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद शास्त्री ताशकंद गए थे। वहां जनवरी 1966 में तत्कालीन पाकिस्तानी राष्ट्रपति अयूब खान के मुलाकात तथा संयुक्त घोषणापत्र पर हस्ताक्षर के बाद उनकी रहस्यमय परिस्थितियों में मृत्यु हो गई थी।

Sunday, October 11, 2009

एक्जिट पोल पर चुनाव आयोग का प्रतिबंध


चुनाव आयोग ने शनिवार को कहा कि महाराष्ट्र, हरियाणा और अरूणाचल प्रदेश में विधानसभा चुनावों के ओपिनियन और एक्जिट पोल के नतीजों के प्रकाशन प्रसारण पर रविवार से मतदान समाप्त होने तक प्रतिबंध लागू हो जाएगा।

चुनाव आयोग ने एक विज्ञप्ति में बताया कि प्रतिबंध की अवधि रविवार शाम तीन बजे से शुरू होगी और 13 अक्तूबर को मतदान समाप्त होने तक शाम पांच बजे तक जारी रहेगी। उच्चतम न्यायालय के दिशानिर्देशों के अनुसार एकल चरण वाले मतदान में ओपिनियन एवं एक्जिट पोल कभी भी कराए जा सकते हैं लेकिन चुनाव संपन्न होने के लिए तय समय समाप्त होने तक के 48 घंटे के भीतर उनका प्रकाशन या प्रसारण नहीं किया जा सकता।

तीनों राज्यों के चुनाव के प्रचार का काम रविवार को समाप्त हो रहा है। आयोग ने कहा कि अरूणाचल प्रदेश और महाराष्ट्र के कुछ विधानसभा क्षेत्रों में चुनाव संपन्न होने का समय शाम तीन बजे तय किया गया है जबकि हरियाणा में यह समय शाम पांच बजे है।

रिकार्डेड वसीयतनामे को सबूत माने।


दिल्ली उच्च न्यायालय ने व्यवस्था दी है कि सम्पत्ति विवाद के समाधान के लिए वीडियो रिकार्डेड वसीयतनामा को सबूत के रूप में स्वीकार किया जा सकता है। न्यायाधीश एस. मुरलीधर ने याचिकाकर्ता सयार कुमारी को उसके पति की दिवंगत दादी भंवरी देवी की सम्पत्ति में हिस्सा देने के पक्ष में फैसला करते हुए यह व्यवस्था दी। उन्होंने कहा कि अदालतों में वसीयतनामे से जुडे विवादों के समाधान में वीडियो या डिजीटल रिकाìडग को साक्ष्य के रूप में स्वीकारने में कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए। सूचना प्रौद्योगिकी कानून के प्रावधानों तथा कम्प्यूटर और इंटरनेट जैसे इलेक्ट्रोनिक साधनों की उपलब्धता के बीच रजिस्ट्रार वसीयतनामे के पंजीकरण के बाद से उसके क्रियान्यवन पर नजर रख सकता है।

 न्यायाधीश मुरलीधर ने कहा कि अदालत चाहती है कि उपरजिस्ट्रार से रिकार्डेड वसीयतनामे के पंजीकरण के समय उसे लागू करने वाले तथा गवाहों पर विशेष ध्यान देकर उसके क्रियान्यवन पर नजर रखे। उन्होंने दिल्ली सरकार को वसीयतनामे की रिकाìडग के लिए दिशा निर्देश तैयार करने का भी सुझाव दिया।


यह था मामला
याचिकाकर्ता के वकील अरूण मोहन ने कहा कि भंवरी देवी ने 1985 में मरने से पहले अपने वीडियो रिकार्डेड बयान में कहा था कि वह अपने बेटे सागर मल को अब कोई सम्पत्ति नहीं देना चाहती है क्यों कि वह पहले ही उसे काफी धन दे चुकी है। उन्होंने यह भी कहा, चूंकि मेरा बेटा मुझसे अलग रहता है और वह मेरी देखभाल नहीं करता इसलिए उसका मेरी सम्पत्ति पर कोई अधिकार नहीं है। श्रीमती भंवरी देवी ने कहा था कि उनकी मृत्यु के बाद उसके गहने उनके पोते की पत्नी सयार कुमारी और प्रपोत्री मीता के बीच बांट दिए जाएं जबकि कश्मीरी गेट स्थित मिनरवा टॉकीज को उनके पोते अमराव सिंह को दिया जाए। भंवरी देवी के बेटे सागर मल ने इसे 1986 में चुनौती दी थी और तब से मुकदमेबाजी चल रही थी।

Saturday, October 10, 2009

चुनाव प्रक्रिया में दखल न दे हाई कोर्टः सुप्रीम कोर्ट


सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों से संबद्ध बंबई हाईकोर्ट के एक फैसले को यह कहकर खारिज कर दिया कि निर्वाचिन प्रक्रिया में हस्तक्षेप पर संवैधानिक रोक चीन की महान दीवार के समान है, उसे लांघा नहीं जा सकता। जस्टिस बीएन अग्रवार और जस्टिस आफताब आलम की पीठ ने मंगलवार को बंबई हाईकोर्ट का वह आदेश खारिज कर दिया जिसमें उसने निर्वाचन आयोग से एक ऎसे उम्मीदवार को चुनाव ल़डने की इजाजत देने को कहा था जिसका नामांकन पत्र वह रद्द कर चुका था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह निर्वाचन आयोग की इस दलील से सहमत हैं कि निर्वाचन प्रक्रिया में अदालती हस्तक्षेप पर संवैधानिक रोक चीन की महान दीवार की तरह है जिसे कोई भी अदालत लांघ नहीं सकती। निर्वाचन आयोग ने बंबई हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी।
बंबई हाईकोर्ट ने निर्वाचन आयोग से यादव राव भीमाराव सूर्यवंशी को चुनाव ल़डने की इजाजत देने को कहा था। वह पंजीकृत किन्तु गैर मान्यता प्राप्त जनसुराज्य शक्ति पार्टी की ओर से प्रत्याशी थे। हाईकोर्ट ने आयोग को आदेश दिया था कि सूर्यवंशी का नामांकन रद्द होने के बावजूद वह 13 अक्टूबर को होने वाले विधानसभा चुनावों में उसे ओमेरगा सुरक्षित विधानसभा सीट से चुनाव ल़डने की इजाजत दे।
निर्वाचन अधिकारी ने सूर्यवंशी का नामांकन इसलिए रद्द कर दिया था, क्योंकि उन्होंने अपने नाम का प्रस्ताव करने वाले अपने निर्वाचन क्षेत्र के दस मतदाताओं में से एक का मतदाता अनुक्रमांक गलत दर्ज किया था। नियमानुसार मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों के अलावा अन्य उम्मीदवार को अपने नाम का प्रस्ताव उक्त निर्वाचन क्षेत्र के दस मतदाताओं से कराना प़डता है। बंबई हाईकोर्ट ने अपने फैसले नें कहा था कि नामांकन पत्र तकनीकी या लिपिकीय असंगतियों के कारणों से रद्द नहीं किए जाने चाहिए।

संसद के शीत सत्र में आयेगा न्यायाधीश जांच विधेयक:मोइली



कानून मंत्री एम वीरप्पा मोइली ने कहा कि सरकार उच्च न्यायपालिका के सदस्यों के खिलाफ कदाचार के मामलों में कार्रवाई के उद्देश्य से न्यायाधीश जांच विधेयक संसद के शीत सत्र में लाने की योजना बना रही है।
मोइली ने कहा, ‘‘ वर्ष 1968 के न्यायाधीश जांच कानून में संशोधन की बजाय हम एक व्यापक विधेयक लाने के बारे में विचार कर रहे हैं. दस्तावेज तैयार किये जा रहे हैं और हम इसे संसद के अगले सत्र में पेश करने की योजना बना रहे हैं। ’’ कानून मंत्री इससे पूर्व पीटीआई से कह चुके हैं कि नये कानून में उच्च न्यायपालिका के सदस्यों के खिलाफ कदाचार के मामलों में कार्रवाई के लिए प्रक्रिया निर्धारित की जा सकती है।
Print It    Email It


Friday, October 9, 2009

कार का रजिस्ट्रेशन नहीं कराया था, धोनी पर जुर्माना


टीम इंडिया के कप्तान महेंद्र सिंह धोनी पर अपने नए हमर एच2 लग्जरी स्पोर्ट्स यूटिलिटी वीइकल (एसयूवी) के पंजीकरण में देरी पर जुर्माना लगाया गया है। राज्य परिवहन विभाग के एक अधिकारी ने कहा, कार के पंजीकरण में विलंब पर 100 रुपये का जुर्माना लगाया गया। कार खरीदने के एक हफ्ते के भीतर पंजीकरण के लिए आवेदन करना होता है। अधिकारी ने कहा कि धोनी ने पंजीकरण के लिए आवेदन किया था, लेकिन उन्होंने जो फॉर्म जमा कराया, वह अपूर्ण था।

अधिकारी ने कहा कि शुरुआती जुर्माने के बाद अगर कोई कार मालिक बिना पंजीकरण के कार चलाते हुए पाया जाता है तो उस पर मोटर वीइकल कानून के तहत 4,500 रुपये का जुर्माना लगाया जा सकता है। धोनी जब 30 जुलाई को अपनी एक करोड़(आयात शुल्क सहित) की हमर एच2 को लेकर लखनऊ से रांची गए थे तो तेज गेंदबाज आरपी सिंह भी उनके साथ थे। क्रिकेटरों में केवल धोनी और स्पिनर हरभजन सिंह के पास ही हमर एच2 कार है। भारतीय कप्तान फिलहाल चैलेंजर कप में खेलने गए हुए हैं।

समान नागरिक संहिता अत्यधिक संवेदनशील मुद्दा: मुख्य न्यायाधीश


मुख्य न्यायाधीश के जी बालकृष्णन ने कहा कि जिस देश में विभिन्न नस्लों जातियों और समुदायों के लोग रहते हैं वहां समान नागरिक संहिता अत्यधिक ‘संवेदनशील ’ मुद्दा है ।

बालकृष्णन ने एम के नाम्बियार स्मृति व्याख्यान में कहा समान नागरिक संहिता का सवाल बेहद संवेदनशील मुद्दा है। भारत वह देश है जहां कई नस्ल जाति और समुदाय के लोग रहते हैं। कोई कानून बनाने और उसे लागू करते वक्त भारत जैसे देश में अत्यधिक संवेदनशीलता एवं सावधानी बरते जाने की प्रशंसा करते हुए उन्होंने कहा कि यहां तक कि ब्रिटिशकाल में भारतीय दंड संहिता को लागू करने में 30 साल लग गये। पूर्व एटर्नी जनरल सोली जे सोराबजी ने कहा कि समान नागरिक संहिता पर अकादामिक चर्चा हमेशा स्वागत योग्य है लेकिन इस चुनौती से विधायिका को निपटना होगा। उन्होंने कहा समान नागरिक संहिता को एकतरफा ढंग से नहीं थोपा जा सकता।

राजस्थान बार कौंसिल के चुनाव आज।



राजस्थान बार कौंसिल के चुनाव 9 अक्टूबर शुक्रवार को होंगे। इस चुनाव में उदयपुर संभाग के चार प्रत्याशी मैदान में है। बार के महासचिव हेमन्त जोशी ने बताया कि उदयपुर न्यायालय परिसर में राजस्थान बार कौंसिल चुनाव वर्ष 2009 के लिए मतदान सुबह साढे नौ बजे से शुरू होगा जो शाम साढे पांच बजे तक चलेगा।

चुनाव द्वारा पूरे राजस्थान से सदस्य चुने जाते है। इन सभी सदस्यों से मलिकर बार कौँसिल ऑफ राजस्थान का गठन होता है। इसके बाद यह सदस्य आपस में मिलकर अध्यक्ष व अन्य पदाधिकारियों का चुनाव करते है।
बार कौंसिल ऑफ राजस्थान राज्य में वकीलों की सर्वोच्च संस्था है जो पूरे राज्य में प्रभावी होती है।
इस वर्ष होने वाले चुनाव में उदयपुर से चार अधिवक्ता कन्हैयालाल चोरडिया, रतन सिंह राव, प्रवीण खण्डेलवाल व दीपक मेनारिया प्रत्याशी है। इसके अतिरिक्त भीलवाडा से सुरेश श्रीमाली, डूंगरपुर से सार्दुल सिंह, भीलवाडा से राजेन्द्र कचोलिया व राजसमंद से संदीप सरूपरिया भी चुनाव मैदान में है। मतदान में प्रत्येक अधिवक्ता को 1 से 25 तक वरियता के आधार पर मतदान करने का अधिकार प्राप्त है। मतदान अधिकारी बी.एल. गुप्ता व सहायक मतदान अधिकारी कपिल टोडावत रहेंगे।

Thursday, October 8, 2009

अजमेर महापौर को जेल, फिर रिहाई।


अजमेर के क्रिश्चियन गंज थाना इलाके में पिछले साल ट्रैफिक पुलिस के सिपाही से मारपीट व राजकार्य में बाधा पहुंचाने के आरोप में पुलिस ने बुधवार को महापौर धर्मेंद्र गहलोत को गिरफ्तार कर लिया।  निचली अदालत ने गहलोत की ओर से दायर जमानत याचिका नामंजूर करते हुए उन्हें जेल भेज दिया। बाद में सेशन कोर्ट से जमानत मिलने पर शाम तकरीबन चार बजे गहलोत को रिहा कर दिया गया। गहलोत के खिलाफ 5 जनवरी 08 को क्रिश्चियन गंज थाना में ट्रैफिक पुलिस के एक सिपाही से मारपीट करने व राजकार्य में बाधा पहुंचाने के आरोप में मुकदमा दर्ज किया गया था।

गहलोत के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने का विरोध करने 7 जनवरी 08 को कलेक्ट्रेट पहुंचे लोगों पर पुलिस ने जबर्दस्त लाठीचार्ज किया था जिसमें खुद गहलोत सहित दर्जनों वकील, भाजपा कार्यकर्ता, पार्षद, निगमकर्मी आदि घायल हुए थे। इस मामले में सिविल लाइंस थाने में अलग से मुकदमा दर्ज हुआ था, जिसकी सीआईडी सीबी जांच कर रही है। पुलिस के मुताबिक कांस्टेबल के साथ हुई मारपीट के मामले में गहलोत की गिरफ्तारी नहीं हो सकी थी। बुधवार सुबह उन्हें गिरफ्तार कर न्यायिक मजिस्ट्रेट संख्या 3 अजय गोदारा के समक्ष पेश किया गया। मजिस्ट्रेट के समक्ष गहलोत की ओर से उनके वकीलों ने जमानत की अर्जी पेश की, जिसे खारिज कर उन्हें जेल भेजने के आदेश दिए गए।  आदेश मिलते ही पुलिस गहलोत को तत्काल केन्द्रीय कारागृह छोड़ आई। बाद में इस मामले में कार्यवाहक सेशन जज केके बागड़ी के समक्ष जमानत अर्जी पेश हुई। सेशन कोर्ट ने पांच पांच —हजार की दो जमानत दस हजार रुपए के मुचलके पर गहलोत को रिहा करने के आदेश जारी कर दिए।