पढ़ाई और जीवन में क्या अंतर है? स्कूल में आप को पाठ सिखाते हैं और फिर परीक्षा लेते हैं. जीवन में पहले परीक्षा होती है और फिर सबक सिखने को मिलता है. - टॉम बोडेट

Tuesday, October 6, 2009

इंसाफ के मंदिरों में घूस का बोलबाला।


कहते हैं इंसाफ में देरी मतलब नाइंसाफी लेकिन हमारे देश में आम धारणा है किसी मामले का अदालत तक जाना यानि लंबे समय तक लटक जाना। एक अनुमान के मुताबिक देश भर में तीन करोड़ मुकदमे लटके पड़े हैं। जल्द इंसाफ न मिल पाने की तमाम वजहें हैं लेकिन एक चीज साफ है कि इंसाफ का मंदिर कही जाने वाली हमारी अदालतें भी भ्रष्टाचार से मुक्त नहीं हैं। IBN7 के लिए ए सी नील्सन के सर्वे में ये सच सामने आया है कि कश्मीर से कन्याकुमारी तक लोग अदालती कामकाज में घूस का सहारा लेते हैं।
दिल्ली हाईकोर्ट को औसतन एक केस की सुनवाई में लगते हैं 5 मिनट बावजूद इसके अदालत में लटके पड़े हैं दसियों हजार मामले। 600 मामले ऐसे हैं जो 20 साल से भी ज्यादा वक्त से लटके पड़े हैं। ये आंकड़े फरवरी 2009 में जारी रिपोर्ट के हैं। इस रिपोर्ट में जस्टिस ए पी शाह की टिप्पणी गौरतलब है। जस्टिस शाह का कहना है कि 2,300 क्रिमिनल केसों को निपटाने में लग जाएंगे कुल 466 साल।
ए सी नील्सन के सर्वे में एक अहम सवाल था कि क्या कभी किसी केस में आपका सामना अदालती प्रक्रिया से हुआ है। इस मामले में सबसे मुकदमेबाज साबित हुए झारखंड के लोग। यहां 27 फीसदी लोगों ने कोर्ट का सामना किया है। मध्यप्रदेश और गोवा भी 23 और 25 फीसदी के साथ उसके आसपास ही खड़े हैं।
दूसरा सवाल था कि क्या अदालत में अपना काम कराने के लिए आपको घूस देनी पड़ी? इस सवाल के जवाब में केरल और हिमाचल जैसे राज्यों की स्थिति सबसे अच्छी है जहां सिर्फ 17 फीसदी लोगों ने घूस देने की बात मानी। जबकि दिल्ली और पंजाब में लगता है घूस दिए बगैर बात ही नहीं बनती। 75 फीसदी लोगों ने घूस देने की बात कही है।
एक सवाल कोर्ट की दक्षता को लेकर भी पूछा गया यानि कितनी आसानी से, कितनी जल्दी अदालतों में निपटता है काम? इसके जवाब में त्रिपुरा के लोगों ने 100 फीसदी नंबर दिए। हिमाचल और गोवा को मिले हैं 67 फीसदी नंबर लेकिन मजे की बात ये कि भ्रष्टाचार के तमाम आरोपों के बाद भी हरियाणा की अदालतों को मिले हैं 48 फीसदी अंक।

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