सुप्रीम कोर्ट के एक न्यायाधीश ने कहा है कि लोग अपनी शिकायतों के निपटारे के लिए न्याय प्रणाली के बजाय स्थानीय गुंडों पर अधिक भरोसा कर रहे हैं, जिसके लिए फैसलों में देरी और अनिश्चितता को जिम्मेदार ठहराया जाता है।
न्यायमूर्ति आरवी रवींद्रन ने रोहिणी अदालत परिसर में एक मध्यस्थता केंद्र के उद्घाटन के मौके पर संबोधित करते हुए कहा कि एक व्यक्ति मुकदमा क्यों दायर करे, जबकि 30 साल बाद भी वह मामले के नतीजे को लेकर आश्वस्त नहीं होता। इस तरह की परिस्थितियों में शिकायती लोग गुंडों का सहारा लेते हैं, क्योंकि वे जल्दी निपटारा कर देते हैं। उन्होंने कहा कि अनिश्चितता इस मायने में कि कोई वादी निचली अदालतों में जीतने के बाद भी किसी मामले में हार सकता है, वहीं निचली अदालतों में हारने के बाद भी हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में जीत सकता है।
न्यायमूर्ति रवींद्रन ने दीवानी और आपराधिक मामलों के बीच असमानता पर भी चिंता जताई और कहा कि न्यायिक बिरादरी के लिए इस संबंध में काम करने का समय आ गया है। उन्होंने कहा कि 58 साल पहले मुकदमे के दीवानी और आपराधिक पक्ष का अनुपात 50:50 था, जो अब 20:80 हो गया है और वह समय दूर नहीं जब अदालतों में केवल आपराधिक मामले रह जाएंगे जो न्याय प्रणाली से पूरी तरह विश्वास को उठाता है।
वैकल्पिक विवाद निपटारा प्रणाली को बढ़ावा देने की स्थिति में वकीलों द्वारा अपनी आय कम होने की आशंकाओं को दूर करते हुए न्यायमूर्ति रवींद्रन ने कहा कि विवादों के समाधान के लिए मध्यस्थता एक प्रभावी हथियार है, जिसमें वादी और वकील दोनों ही उत्साहजनक स्थिति में होते हैं। उन्होंने कहा कि वादियों के लिए मध्यस्थता लाभकारी है क्योंकि यह समय और धन दोनों ही बचाती है तथा सौहार्दपूर्ण तरीके से मामले का समाधान होता है, जबकि मुकद्मे में प्रत्येक व्यक्ति असंतुष्ट होता है।
विकसित देशों में मध्यस्थता के जरिए मामलों के निपटारे की बड़ी सफलता का जिक्र करते हुए न्यायमूर्ति ने कहा कि भारत में यह दर कम है क्योंकि लोगों की मुकद्मा लड़ने की धारणा होती है, जिसके लिए एक तरह से कोई अदालती शुल्क नहीं होना जिम्मेदार होता है। उन्होंने कहा कि दिल्ली में 2005 से मध्यस्थता के जरिए पांच हजार से अधिक मामले सुलझाए जा चुके हैं। रोहिणी मध्यस्थता केंद्र ने अकेले दो फरवरी 2009 से 700 से अधिक मामलों को निपटाया है।
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