राजस्थान हाई कोर्ट ने आरजेएस परीक्षा 2005 में स्कैलिंग प्रणाली को संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत अवैधानिक मानते हुए उसे आरजेएस नियमों के विपरीत करार दिया है। न्यायाधीश प्रेम शंकर आसोपा एवं न्यायाधीश गुमान सिंह की खंडपीठ ने यह आदेश मंगलवार को सरिता नौशाद एवं 17 अन्य की याचिकाओं का निस्तारण करते हुए दिया।
खंडपीठ ने आदेश में कहा है कि जिन याचिकाकर्ता अभ्यर्थियों के रॉ मार्क्स (स्कैलिंग से पूर्व के मार्क्स) चयनित आरजेएस अभ्यर्थियों के प्राप्तांक से अधिक हैं उन्हें आरजेएस परीक्षा 08—09 में साक्षात्कार के लिए बुलाया जाए। साथ ही 2005 की परीक्षा में प्राप्त किए उनके प्राप्तांकों और साक्षात्कार के अंकों को मिलाकर मेरिट लिस्ट बनाई जाए। यदि वे मेरिट लिस्ट में उनकी श्रेणी के चयनित अभ्यर्थी से अधिक अंक लाएं तो वे नियुक्ति के पात्र माने जाएं और उन्हे नियुक्ति दी जाए।
इसके अलावा ऐसे अभ्यर्थी जिनके साक्षात्कार हो चुके हैं उनके रॉ मार्क्स (स्कैलिंग से पूर्व के मार्क्स) व साक्षात्कार के मार्क्स को जोड़ा जाए और यदि उनके अंक चयनित आरजेएस अभ्यर्थी से अधिक हों तो उन्हें और भविष्य में होने वाली रिक्तियों में नियुक्त किया जाए। आदेश में राज्य सरकार को निर्देश दिया कि आरजेएस परीक्षा 08 की चयन व नियुक्ति प्रक्रिया याचिकाकर्ता अभ्यर्थियों को नियुक्ति देने के बाद ही की जाए। हाई कोर्ट ने आदेश में कहा कि पूर्व में चयनित आरजेएस को नौकरी करते हुए डेढ़ साल से ज्यादा समय हो गया है। इसलिए उन्हें उनके पदों से नहीं हटाया जाए। क्योंकि यदि उन्हें हटाया गया तो पूरी परीक्षा की पूरी प्रक्रिया ही डिस्टर्ब हो जाएगी।
याचिकाकर्ताओं के अधिवक्ता एस.पी.शर्मा ने बताया कि आरजेएस परीक्षा 05 में आरपीएससी ने स्कैलिंग की प्रणाली अपनाई। इस फार्मूले के कारण कई अभ्यर्थियों के अंकों को कम ज्यादा कर दिया गया। इससे कुछ अभ्यर्थी अधिक अंक लाने के बाद भी साक्षात्कार में शामिल नहीं हो पाए जबकि कुछ अभ्यर्थी साक्षात्कार देने के बाद भी नियुक्त नहीं हो सके। आरजेएस परीक्षा में इस प्रणाली को हाई कोर्ट में चुनौती दी गई। याचिकाओं में कहा कि आरजेएस परीक्षा में स्कैलिंग की प्रणाली आरजेएस नियम 1955 का उल्लंघन है क्योंकि उसमें ऐसा कोई प्रावधान ही नहीं है और सभी परीक्षार्थी समान ही प्रoपत्र देते हैं।
जयपुर- रूल ऑफ लॉ सोसायटी के प्रदेश प्रतिनिधि नीलाम्बर झा के अनुसार न्यायिक सेवा में स्कैलिंग का विवाद कोई नया नहीं है। इससे पहले भी उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग के एक मामले में सुप्रीम कोर्ट में स्कैलिंग को लेकर सवाल खड़े किए थे।
वर्ष 2007 में सुप्रीम कोर्ट ने संजय सिंह बनाम उत्तर प्रदेश के मामले में न्यायिक सेवा में स्कै लिंग को जायज नहीं ठहराया था। कोर्ट ने स्पष्ट किया था कि न्यायिक सेवा की परीक्षा में सिर्फ एक विषय होता है, इसलिए स्कै लिंग ठीक नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा था कि न्यायिक सेवा में माडरेशन किया जा सकता है। इसका तरीका क्या होगा, इसकी गाइड लाइन भी निर्णय में दी गई है।
खंडपीठ ने आदेश में कहा है कि जिन याचिकाकर्ता अभ्यर्थियों के रॉ मार्क्स (स्कैलिंग से पूर्व के मार्क्स) चयनित आरजेएस अभ्यर्थियों के प्राप्तांक से अधिक हैं उन्हें आरजेएस परीक्षा 08—09 में साक्षात्कार के लिए बुलाया जाए। साथ ही 2005 की परीक्षा में प्राप्त किए उनके प्राप्तांकों और साक्षात्कार के अंकों को मिलाकर मेरिट लिस्ट बनाई जाए। यदि वे मेरिट लिस्ट में उनकी श्रेणी के चयनित अभ्यर्थी से अधिक अंक लाएं तो वे नियुक्ति के पात्र माने जाएं और उन्हे नियुक्ति दी जाए।
इसके अलावा ऐसे अभ्यर्थी जिनके साक्षात्कार हो चुके हैं उनके रॉ मार्क्स (स्कैलिंग से पूर्व के मार्क्स) व साक्षात्कार के मार्क्स को जोड़ा जाए और यदि उनके अंक चयनित आरजेएस अभ्यर्थी से अधिक हों तो उन्हें और भविष्य में होने वाली रिक्तियों में नियुक्त किया जाए। आदेश में राज्य सरकार को निर्देश दिया कि आरजेएस परीक्षा 08 की चयन व नियुक्ति प्रक्रिया याचिकाकर्ता अभ्यर्थियों को नियुक्ति देने के बाद ही की जाए। हाई कोर्ट ने आदेश में कहा कि पूर्व में चयनित आरजेएस को नौकरी करते हुए डेढ़ साल से ज्यादा समय हो गया है। इसलिए उन्हें उनके पदों से नहीं हटाया जाए। क्योंकि यदि उन्हें हटाया गया तो पूरी परीक्षा की पूरी प्रक्रिया ही डिस्टर्ब हो जाएगी।
याचिकाकर्ताओं के अधिवक्ता एस.पी.शर्मा ने बताया कि आरजेएस परीक्षा 05 में आरपीएससी ने स्कैलिंग की प्रणाली अपनाई। इस फार्मूले के कारण कई अभ्यर्थियों के अंकों को कम ज्यादा कर दिया गया। इससे कुछ अभ्यर्थी अधिक अंक लाने के बाद भी साक्षात्कार में शामिल नहीं हो पाए जबकि कुछ अभ्यर्थी साक्षात्कार देने के बाद भी नियुक्त नहीं हो सके। आरजेएस परीक्षा में इस प्रणाली को हाई कोर्ट में चुनौती दी गई। याचिकाओं में कहा कि आरजेएस परीक्षा में स्कैलिंग की प्रणाली आरजेएस नियम 1955 का उल्लंघन है क्योंकि उसमें ऐसा कोई प्रावधान ही नहीं है और सभी परीक्षार्थी समान ही प्रoपत्र देते हैं।
जयपुर- रूल ऑफ लॉ सोसायटी के प्रदेश प्रतिनिधि नीलाम्बर झा के अनुसार न्यायिक सेवा में स्कैलिंग का विवाद कोई नया नहीं है। इससे पहले भी उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग के एक मामले में सुप्रीम कोर्ट में स्कैलिंग को लेकर सवाल खड़े किए थे।
वर्ष 2007 में सुप्रीम कोर्ट ने संजय सिंह बनाम उत्तर प्रदेश के मामले में न्यायिक सेवा में स्कै लिंग को जायज नहीं ठहराया था। कोर्ट ने स्पष्ट किया था कि न्यायिक सेवा की परीक्षा में सिर्फ एक विषय होता है, इसलिए स्कै लिंग ठीक नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा था कि न्यायिक सेवा में माडरेशन किया जा सकता है। इसका तरीका क्या होगा, इसकी गाइड लाइन भी निर्णय में दी गई है।
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