पढ़ाई और जीवन में क्या अंतर है? स्कूल में आप को पाठ सिखाते हैं और फिर परीक्षा लेते हैं. जीवन में पहले परीक्षा होती है और फिर सबक सिखने को मिलता है. - टॉम बोडेट
संपत्ति का खुलासा नहीं कर सकता: बालाकृष्णन
6 Comments - 19 Apr 2011
पूर्व प्रधान न्यायाधीश केजी बालाकृष्णन ने संपत्ति से संबंधित सूचनाओं के गलत उपयोग बताते हुए आयकर अधिकारियों से कहा कि वह अपनी संपत्ति का खुलासा नहीं कर सकते। सूचना का अधिकार (आरटीआई) कार्यकर्ता पी बालाचंद्रन की ओर से आयरकर विभाग से बालाकृष्णन की संपत्ति की सूचना मांगने पर आयकर अधिकारियों ने यह जानकारी दी। उन्होंने कहा कि पूर्व मुख्य न्यायाधीश ने हलफाना दाखिल किया है कि वह अपनी सम्पत्ति को ...

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संवैधानिक अधिकार है संपत्ति का अधिकार
4 Comments - 19 Apr 2011
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि संपत्ति का अधिकार संवैधानिक अधिकार है और सरकार मनमाने तरीके से किसी व्यक्ति को उसकी भूमि से वंचित नहीं कर सकती। न्यायमूर्ति जी एस सिंघवी और न्यायमूर्ति ए के गांगुली की पीठ ने अपने एक फैसले में कहा कि जरूरत के नाम पर निजी संस्थानों के लिए भूमि अधिग्रहण करने में सरकार के काम को अदालतों को 'संदेह' की नजर से देखना चाहिए। पीठ की ओर से फैसला लिखते हुए न्यायमूर्ति ...

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Thursday, October 22, 2009

सौ में से 27 को ही मिल पाती है सूचना, गलतियां कर दी जाती है माफ।


देश भर के सूचना आयोगों का प्रदर्शन जानने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर हुआ एक अध्ययन कहता है कि आयोगों का दरवाजा खटखटाने वाले 100 में से महज 27 लोगों को ही चाही गई जानकारी मिल पाती है और अपीलकर्ता के पक्ष में जारी होने वाले 39 फीसदी आदेश ही लागू हो पाते हैं।

मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित अरविंद केजरीवाल ने वर्ष 2008 के आरटीआई पुरस्कारों के लिए अपने गैर सरकारी संगठन ‘पब्लिक कॉज रिसर्च फाउंडेशन’ के अध्ययन के बारे में बुधवार को यहाँ कहा कि सूचना आयोगों में अपील करने वाले महज 27 फीसदी लोगों को ही सूचना मिल पाती है।

उन्होंने कहा कि वर्ष 2008 में देश भर के 28 सूचना आयोगों और एक केंद्रीय आयोग ने 51128 आदेश जारी किए। इनमें से 34980 मामलों में आदेश सूचना का खुलासा करने के पक्ष में जारी हुए।

केजरीवाल ने कहा कि ऐसे 34980 अपीलकर्ताओं से हमने यह बुनियादी सवाल किया कि क्या उन्हें चाही गई सूचना मिली, इसमें से छह हजार लोगों की प्रतिक्रिया जानने के बाद हम इस निष्कर्ष पर पहुँचे की सूचना का खुलासा करने के पक्ष में जारी होने वाले कुल आदेशों में से महज 39 फीसदी मामलों में ही अपीलकर्ता को चाही गई सूचना मिल पाई।

उन्होंने कहा कि अपीलकर्ताओं की नजर में जिन आयोगों का कामकाज सबसे ज्यादा संतुष्टि देने वाला रहा है, उसमें कर्नाटक राज्य सूचना आयोग शीर्ष पर है जहां अपील करने वाले 55 फीसदी लोगों ने कहा कि उन्हें चाही गयी सूचना मिली।

उन्होंने कहा कि देश भर में जन सूचना अधिकारी [पीआईओ] के तौर पर काम कर रहे सरकारी अफसरों की सौ में से 98 गलतियां चुपचाप माफ कर दी जाती हैं।

इनके खिलाफ सुनवाई करने वाले सूचना आयुक्त इन्हें सिर्फ अपनी गलती सुधार लेने भर को कहते हैं। यह खुलासा सूचना आयुक्तों के फैसलों के एक व्यापक अध्ययन में हुआ है।

अध्ययन के मुताबिक केंद्र और राज्यों के मौजूदा सूचना आयुक्त सरकारी अफसरों से इस कानून का पालन करवा पाने में असरदार साबित नहीं हो रहे। इसकी वजह भी ये आयुक्त खुद ही हैं। दरअसल, लगभग सभी मामलों में ये उल्लंघन करने वालों को कोई सजा ही नहीं देते। जन सूचना अधिकारी के तौर पर काम कर रहा अफसर अगर तीस दिन के अंदर मांगी गई सूचना नहीं देता तो कानूनन उस पर हर दिन की देरी के लिए जुर्माना लगना चाहिए।

लेकिन जिन मामलों में सूचना आयुक्त यह मान भी लेते हैं कि आवेदनकर्ता सही है और उसे सूचना उपलब्ध करवाई जानी चाहिए, उनमें भी वो उल्लंघन करने वाले अधिकारी को दंडित नहीं करते।

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