पढ़ाई और जीवन में क्या अंतर है? स्कूल में आप को पाठ सिखाते हैं और फिर परीक्षा लेते हैं. जीवन में पहले परीक्षा होती है और फिर सबक सिखने को मिलता है. - टॉम बोडेट

Thursday, October 8, 2009

दिल्ली उच्च न्यायालय ने सुप्रीम कोर्ट की अपील स्वीकारी,फौरी राहत से इंकार।


सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) के पद को सूचना अधिकार कानून (आरटीआई) के दायरे में लाने के मामले में दिल्ली हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट की याचिका बुधवार को मंजूर कर ली। हालांकि याचिका पर सुनवाई कर रही दो सदस्यीय पीठ ने एकल पीठ के फैसले पर अन्तरिम स्थगन नहीं लगाया। हाईकोर्ट ने मामले की सुनवाई के लिए तीन सदस्यीय विशेष पीठ का गठन किया है। याचिका पर अगली सुनवाई 12 और 13 नवम्बर को होगी।
सुप्रीम कोर्ट बुधवार को दिल्ली हाईकोर्ट के सवालों पर लाचार नजर आया। वह जजों की संपत्ति की घोषणा के लिए शीर्ष न्यायपालिका के बाध्यकारी नहीं होने संबंधी विधेयक पर अपना रुख स्पष्ट नहीं कर पाया। हाईकोर्ट में मुख्य न्यायाधीश एपी शाह और न्यायमूर्ति एस. मुरलीधर की पीठ ने शीर्ष अदालत से सवाल किया कि यदि संपत्ति घोषणा संबंधी विधेयक बाध्यकारी नहीं है तो अदालती कार्रवाई के दौरान न्यायिक मूल्य बनाए रखने के लिए पारित विधेयक भी बाध्यकारी नहीं हो सकता। खंडपीठ ने कहा कि ऐसी स्थिति में जिस जज के खिलाफ आंतरिक जांच शुरू की जाएगी, वह भी इसका विरोध कर सकता है।

सुप्रीम कोर्ट की दलील का विरोध करते हुए आरटीआई आवेदक की ओर से पेश वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि इस तरह की अपील व्यवस्था की साख को प्रभावित कर सकती है। हालांकि अटार्नी जनरल ने इस पर आपत्ति जताई और कहा कि हम अपने तंत्र की देखभाल करने में सक्षम हैं और इस मामले में दायर अपील के परिणामों से भी भली-भांति वाकिफ हैं। शीर्ष अदालत ने यह आरोप लगाते हुए हाईकोर्ट से संपर्क किया था कि एकल पीठ का फैसला कानूनी रूप से बुरा और दरकिनार कर दिए जाने योग्य है।

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