पढ़ाई और जीवन में क्या अंतर है? स्कूल में आप को पाठ सिखाते हैं और फिर परीक्षा लेते हैं. जीवन में पहले परीक्षा होती है और फिर सबक सिखने को मिलता है. - टॉम बोडेट

Monday, May 3, 2010

दीवानी अदालतों को बताई 'हद'

ऋण वसूली के लिए बैंकों द्वारा सिक्योरिटाइजेशन एक्ट के अन्तर्गत ऋणी की सम्पत्ति कब्जे में लेने की कार्यवाही के मामले में अधीनस्थ दीवानी न्यायालय को मुकदमे की सुनने का अधिकार नहीं है। ऎसे प्रकरण केवल ऋण वसूली अधिकरण ही सुन सकता है।
उच्च न्यायालय ने इस महत्वपूर्ण व्यवस्था के साथ जोधपुर के सिविल यायाधीश (क.खं.) संख्या-2 की ओर से पारित एक आदेश के खिलाफ दाखिल की गई निगरानी याचिका मंजूर कर ली। याचिकाकर्ता क्वालिटी कंडयूट प्राइवेट लिमिटेड की ओर से अधिवक्ता विनय श्रीवास्तव ने निगरानी पेश कर बताया कि याचिकाकर्ता कम्पनी ने सेण्ट्रल बैंक ऑफ इण्डिया से ऋण लिया था, लेकिन इसका चुकारा नहीं कर पाने से बैंक ने सिक्योरिटाइजेशन एक्ट के अन्तर्गत उसकी सम्पत्ति कब्जे में लेने कार्यवाही शुरू कर दी।
बैंक ने ऋणी कम्पनी व उसकी सम्पत्ति के कब्जाधारी-किराएदारों को नोटिस जारी कर शांतिपूर्वक कब्जा सौंपने का आग्रह किया। इसके विरूद्ध किराएदारों ने उन्हें बलपूर्वक बेदखल नहीं करने व कब्जे की सुरक्षा के लिए दीवानी वाद दायर कर दिया।
इस पर ऋणी कम्पनी ने किराएदारों के दावे को विधिक रूप से अनुचित बताते हुए इसे खारिज करने की अर्जी पेश की, लेकिन निचली अदालत ने यह अर्जी नामंजूर कर किराएदारों के दावे निषेधाज्ञा आदेश की सुनवाई के लिए नियत कर दिए। कम्पनी की ओर से निगरानी याचिका में भी किराएदारों के दावे चलने योग्य नहीं होने की बात दोहराई गई।
इस पर सुनवाई के बाद न्यायाधीश गोविन्द माथुर ने सिक्योरिटाइजेशन एक्ट के तहत की जाने वाली कार्यवाही के लिए केवल ऋण वसूली अधिकरण का ही श्रवणाधिकार माना तथा ऋणी कम्पनी की निगरानी याचिका मंजूर करते हुए किराएदारों के दावे खारिज कर दिए। न्यायालय ने कब्जाधारी किराएदारों को अधिकरण में जाने की छूट दी है।

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