पढ़ाई और जीवन में क्या अंतर है? स्कूल में आप को पाठ सिखाते हैं और फिर परीक्षा लेते हैं. जीवन में पहले परीक्षा होती है और फिर सबक सिखने को मिलता है. - टॉम बोडेट

Thursday, May 27, 2010

84 रुपये के बोनस के लिए 25 साल चला केस

एक महिला को अपने मालिक से 84 रुपये बोनस पाने के लिए 25 साल तक संघर्ष करना पड़ा। 1984 में पद्मावती को उसके मालिक सुपर बाजार को-ऑपरेटिव स्टोर ने बताया कि उसे 84 रुपये बोनस देने का जो वादा किया गया था, वह अब नहीं मिलेगा। उसके अलावा 66 अन्य लोगों से कहा गया कि उन्हें यह बोनस अब नहीं मिलेगा।

पद्मावती बताती हैं कि मैंने 1983-84 के दौरान पीस रेट आधार पर सुपर बाजार में बतौर पैकर काम किया था। सुपर बाजार मैनेजमेंट ने उस टाइम का बोनस देने की घोषणा की थी। लेकिन जब हम लोगों ने उसकी मांग की तो हमें देने से मना कर दिया गया। पद्मावती की उम्र अब 50 साल हो चुकी है। उन्होंने बताया कि हम 67 कर्मचारियों ने मिलकर अपने वकील अशोक अग्रवाल के जरिए सुपर बाजार पर मुकदमा कर दिया।

हालांकि 1984 में इस केस की सुनवाई शुरू हुई लेकिन अदालत को इसे निपटाने में 15 साल लगे। इस बीच दिसंबर 1999 में तीस हजारी स्थित लेबर कोर्ट ने सभी कर्मचारियों के पक्ष में अपना फैसला सुनाया और सुपर बाजार मैनेजमेंट को तीन महीने में बोनस राशि का भुगतान करने को कहा। लेकिन उनकी परेशानी का यहीं अंत नहीं हुआ। सुपर बाजार मैनेजमेंट ने इस फैसले के खिलाफ सन् 2000 में दिल्ली हाई कोर्ट में अपील कर दी और फैसले के खिलाफ स्टे प्राप्त कर लिया।

आखिरकार इसी महीने 25 साल बाद सुपर बाजार मैनेजमेंट हाई कोर्ट के सामने इस बात के लिए राजी हो गया कि वह सभी कर्मचारियों को बकाया बोनस का भुगतान ब्याज सहित करने को राजी है। कोर्ट ने अब सभी कर्मचारियों को निर्देश दिया है कि वे कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल के दफ्तर में अपने दस्तावेजों के साथ उपस्थित हों, वहां उन्हें पैसे का भुगतान किया जाएगा। हालांकि अदालत ने इस बात पर चिंता भी जताई कि पिछले 10 साल से इन लोगों को भुगतान नहीं हो सका।

हालांकि पद्मावती को ब्याज के साथ कुल 2000 रुपये मिलेंगे लेकिन वह इससे संतुष्ट नहीं है। वह कहती है कि मुझे नहीं मालूम कि हमें अपना पैसा पाने के लिए इतना लंबा इंतजार करना पड़ेगा। मैंने तो उम्मीद ही छोड़ दी थी। हालांकि मुझे 84 रुपये से ज्यादा मिलेंगे लेकिन इसके लिए मुझे 25 साल तक संघर्ष करना पड़ा। इस मुद्दे पर वकील अशोक अग्रवाल का कहना है कि इस केस में लंबा टाइम जरूर लगा लेकिन आखिरकार फैसला कर्मचारियों के ही पक्ष में आया। इसलिए अदालत का आदेश महत्वपूर्ण है।

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