पढ़ाई और जीवन में क्या अंतर है? स्कूल में आप को पाठ सिखाते हैं और फिर परीक्षा लेते हैं. जीवन में पहले परीक्षा होती है और फिर सबक सिखने को मिलता है. - टॉम बोडेट

Wednesday, May 19, 2010

तड़के अखबार पढ़ना बंद करें : सर्वोच्च न्यायालय

सर्वोच्च न्यायालय ने मंगलवार को सुझाव दिया कि किसी को भी सुबह तड़के अखबार पढ़ने से बचना चाहिए।

न्यायमूर्ति जी.एस.सिंघवी और न्यायमूर्ति सी.के.प्रसाद की अवकाशकालीन खण्डपीठ ने कहा, ''यदि आप अपने पूरे दिन को तरोताजा रखना चाहते हैं तो सुबह तड़के कम से कम दो घंटे तक अखबार न पढ़ें।''

सर्वोच्च न्यायालय ने यह सुझाव तब दिया, जब उत्तर प्रदेश सरकार की ओर जारी मामलों के लिए पेश होते हुए अधिवक्ता रत्नाकर दास ने अदालत का ध्यान एक अखबार की उस रिपोर्ट की ओर खींचा, जिसमें लिखा गया था कि कानून एवं न्याय मंत्री एम.वीरप्पा मोइली ने नक्सलवाद में बढ़ोतरी के लिए न्यायिक सक्रियता को जिम्मदार ठहराना चाहा है।

'अस्वाभाविक न्यायिक सक्रियता' को नक्सली गतिविधियों में बढ़ोतरी का मुख्य कारण बताते हुए मोइली ने कहा था, ''यदि अदालतें संयम बरती होतीं और जगलों की जमीनी हकीकत को ध्यान में रखीं होतीं तो आज स्थितियां पूरी तरह भिन्न होतीं।''

रिपोर्ट के अनुसार मोइली ने कहा है, ''मेरी चिंता यह है कि जब न्यायाधीश लोग जनहित याचिकाएं स्वीकार करें और फैसले दें, तो उन्हें उसमें यथार्थवादी होना चाहिए और बहसों पर विश्वास करने के बदले जमीनी हकीकतों को देखना-समझना चाहिए।''

मोइली के बयान पर प्रतिक्रिया जाहिर करते हुए न्यायमूर्ति सिंघवी ने कहा, ''हमने अखबार पढ़ना बंद कर दिया है।'' इस पर दास ने कहा कि वह कानून मंत्री के बयान से खफा हैं और इसे अदालत के समक्ष उठाने से वह अपने आपको नहीं रोक सकते।

इस पर न्यायमूर्ति सिंघवी ने कहा, ''बेकार की बातों का हमारे ऊपर कोई असर नहीं होता।''

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