पढ़ाई और जीवन में क्या अंतर है? स्कूल में आप को पाठ सिखाते हैं और फिर परीक्षा लेते हैं. जीवन में पहले परीक्षा होती है और फिर सबक सिखने को मिलता है. - टॉम बोडेट

Thursday, May 27, 2010

अवैध संतान पुश्तैनी जायदाद की वारिस नहीं, केवल माता पिता की सम्पत्ति पर हक- सुप्रीम कोर्ट

मद्रास उच्च न्यायालय के एक फैसले को पलटते हुए उच्चतम न्यायालय ने व्यवस्था दी है कि शादी के बिना साथ रहने वाले जोड़ों से उत्पन्न होने वाली संतान पुश्तैनी जायदाद की वारिस नहीं हो सकती और माता-पिता द्वारा बनाई गई संपत्ति पर ही उसका अधिकार होगा।

न्यायालय ने अपने एक आदेश में कहा कि अवैध विवाह के जरिए पैदा होने वाली संतान पुश्तैनी जायदाद की वारिस होने का दावा नहीं कर सकती। वह केवल अपने माता-पिता द्वारा अर्जित संपत्ति में अपने हिस्से का दावा कर सकती है।

न्यायमूर्ति बीएस चौहान और न्यायमूर्ति स्वतंत्र कुमार की पीठ द्वारा दिए गए आदेश में मद्रास उच्च न्यायालय के उस फैसले को रदद कर दिया गया, जिसमें कहा गया था कि लिव इन संबंधों से पैदा होने वाले बच्चों भी पुश्तैनी जायदाद में हिस्से के हकदार हैं।

एक मामले में यह विवाद पैदा हो गया था कि रेंगाम्मल और मुथु रेडिडयर के बीच लिव इन संबंधों के दौरान जो बच्चों पैदा हुए हैं, क्या वह मुथु की मौत के बाद उसकी जायदाद के हकदार होंगे।

न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा कि वर्तमान मामले में प्रतिवादी ने कहीं भी यह कुबूल नहीं किया कि विवादित भूमि मुथु रेडिडयर की अपनी खरीदी हुई संपत्ति है।

न्यायालय ने कहा कि दस्तावेजों से यह पता चला कि मुथु रेडिडयर ने अपने संयुक्त परिवार की संपत्ति का बंटवारा नहीं किया था और 1974 में उसकी बेऔलाद बिना वसीयत किए मौत हो गई, इसलिए लिव इन संबंधों के दौरान पैदा हुए दो बच्चों का पुश्तैनी जायदाद का वारिस होने का सवाल ही पैदा नहीं होता।

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