पढ़ाई और जीवन में क्या अंतर है? स्कूल में आप को पाठ सिखाते हैं और फिर परीक्षा लेते हैं. जीवन में पहले परीक्षा होती है और फिर सबक सिखने को मिलता है. - टॉम बोडेट

Monday, May 3, 2010

जानकारी बढ़ाएं न्यायाधीश, वकील; अनैतिक आचरण पर टिप्पणियां करते वक्त अपनी गिरेबां में भी झाकें : न्यायमूर्ति कपाड़िया

 देश के प्रधान न्यायाधीश बनने जा रहे न्यायमूर्ति एस.एच.कपाड़िया ने रविवार को कहा कि मौजूदा वैश्विक माहौल में बने रहने और मंदी की मार झेल चुकी अर्थव्यवस्था में स्थायित्व के लिए न्यायाधीशों और वकीलों के लिए वाणिज्यिक कानूनों को जानना अनिवार्य है।

कानूनी शिक्षा के क्षेत्र में दूसरी पीढ़ी के सुधारों पर दो दिवसीय सम्मेलन के समापन भाषण में कपाड़िया ने कहा, ''मैं कड़ाई से कह रहा हूं कि ऐसी धारणा बन गई है कि भारतीय न्यायाधीशों और वकीलों के पास व्यापार और व्यापारिक कानूनों की कोई जानकारी नहीं है।''

उन्होंने कहा कि मंदी की मार झेल चुकी अर्थव्यवस्था के स्थायित्व के लिए आर्थिक और लेखाकर्म से जुड़े कानूनों के बारे में जानना पूर्व अपेक्षित है। कपाड़िया ने अपनी जानकारी के बारे में कहा, ''एक एकांतवासी के रूप में रहता हूं और एक घोड़े की तरह काम करता हूं।'' अपने संबोधन में नामित प्रधान न्यायाधीश ने न्यायिक सक्रियता, कानूनी सुधार में वरिष्ठ वकीलों की भूमिका और कानूनी शिक्षा की प्रकृति के बारे चर्चा की।

उन्होंने कहा कि जानकारी की कमी के कारण कुछ कानूनी कामकाज जैसे एक समझौते को तैयार करना, भी विदेश कानूनी कंपनियों के माध्यम से कराए जा रहे हैं।

इस संदर्भ में न्यायमूर्ति कपाड़िया ने कहा कि उत्पादन बंटवारा समझौते की व्याख्या एक कठिन क्षेत्र है और ''इस क्षेत्र में हम स्तरीय नहीं हैं।'' न्यायिक सक्रियता को पूरी तरह से खारिज करते हुए न्यायमूर्ति कपाड़िया ने कहा कि न्यायिक सक्रियता और न्यायिक निरोध अदालत के कामकाज की आपस में जुड़ी दो प्रमुख पहलुएं हैं।

उन्होंने कहा, ''यदि न्यायिक सक्रियता एक बिंदु से आगे बढ़ती है तो तब यह न्यायिक निरोध के सिध्दांत के खिलाफ होगा।'' न्यायमूर्ति कपाड़िया ने न्यायिक सुधार व कानूनी शिक्षा से जुड़े सुधार के लिए विचार-विमर्श हो रही देरी के लिए वरिष्ठ वकीलों की आलोचना की।

उन्होंने कहा, ''मैं नहीं समझता कि वरिष्ठ वकीलों के बीच क्या दिक्कत है। क्या वे आधे घंटे का समय नहीं निकाल सकते, क्या वे इतना व्यस्त हैं।''

सरोश होमी कपाड़िया ने न्यायपालिका को अपनी हद में रहने की नसीहत दी है। साथ ही, जजों को सलाह दी है कि वे नेताओं के अनैतिक आचरण पर टिप्पणियां करते वक्त अपनी गिरेबां में भी झाकें और नैतिकता का उपदेश देने से पहले खुद उस पर अमल करना सीखें। कपाड़िया ने न्यायपालिका को अत्यधिक सक्रियता के प्रति भी आगाह किया है।

रविवार को यहां एक सेमिनार में कपाड़िया ने कहा, 'जब हम नैतिकता की बात करते हैं तो जज आम तौर पर नेताओं, प्राध्यापकों और छात्रों आदि की नैतिकता की बात करते हैं। पर मैं कहूंगा कि जजों को न केवल वैधानिक नैतिकता, बल्कि वैचारिक नैतिकता का भी खयाल रखना चाहिए।' जस्टिस कपाड़िया ने यह टिप्पणी ऐसे समय की है, जब न्यायपालिका में भ्रष्टाचार के कई मामले चर्चा में हैं। कलकत्ता हाई कोर्ट के जज सौमित्र सेन और कर्नाटक हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश पी.डी. दिनकरन के खिलाफ संसद में महाभियोग की प्रक्रिया जारी है।

बतौर मुख्य न्यायाधीश अपनी नियुक्ति की घोषणा के बाद पहली बार किसी सार्वजनिक कार्यक्रम में बोलते हुए कपाड़िया ने एक ब्रिटिश जज की किताब से कुछ उद्धरण भी दिए। उन्होंने कहा कि एक सीमा के बाद न्यायिक सक्रियता को कानून का राज कायम करने के खिलाफ माना जाता है।

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