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Friday, May 21, 2010

महिला आरक्षण असंवैधानिक

राजस्थान हाई कोर्ट ने पंचायतीराज चुनावों में युवाओं को 20 फीसदी व महिलाओं को आनुपातिक जनसंख्या के आधार पर 50 फीसदी आरक्षण को असंवैधानिक करार दिया है। मुख्य न्यायाधीश जगदीश भल्ला व न्यायाधीश एमएन भंडारी की खंडपीठ ने झुंझुनूं निवासी सीताराम शर्मा की याचिका पर सुनवाई के बाद आदेश में कहा कि चूंकि यही मुद्दा हाई कोर्ट में पूर्व में मोहम्मद कलीम की ओर से दायर याचिका में उठाया गया था, इसलिए उस मामले में दिया गया इसी तरह का आदेश इसमें भी पढ़ा जाए।

यह आदेश पूर्व के मामलों में लागू नहीं होगा तथा भविष्य में प्रभावी रहेगा। याचिका में राजस्थान पंचायतीराज अधिनियम की धारा 15 (5)(6) व 16 (5) में किए गए उस संशोधन को चुनौती दी थी, जिसके तहत महिला आरक्षण को 33 से बढ़ाकर 50 प्रतिशत और धारा 19 ए जोड़कर 21 से 35 साल के युवाओं के लिए अलग से 20 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान किया गया।

याची ने कहा कि पंचायती राज अधिनियम में पहले से ही महिलाओं को 33 प्रतिशत व अन्य आरक्षित वर्ग के लिए आरक्षण का प्रावधान है। यदि महिला आरक्षण को बढ़ाकर 50 प्रतिशत कर दिया जाता है एवं प्रत्येक 5 सीट में से एक सीट 21 से 35 साल के युवाओं के लिए आरक्षित रखी जाती है तो यह एससी/एसटी व ओबीसी को दिए आरक्षण के साथ 75 से 80 प्रतिशत तक पहुंच जाता है। ऐसी स्थिति में सामान्य वर्ग के लिए 20 प्रतिशत सीटें ही बचती हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने भी इंदिरा साहनी के प्रकरण में व्यवस्था दी है कि किसी भी स्थिति में आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत से अधिक नहीं हो सकती। हाई कोर्ट ने अपने पहले के आदेश में कहा था कि राज्य सरकार ने महिलाओं को 50 प्रतिशत आरक्षण लै¨गक अनुपातके आधार पर नहीं दिया है। यदि सरकार इसका आधार लैंगिक अनुपात मानती है तो यह आरक्षण चलने योग्य माना जा सकता है।

यदि पुरुषों व महिलाओं का जनसंख्या अनुपात 55 एवं 45 प्रतिशत है तो ऐसी स्थिति में महिलाओं को पचास प्रतिशत आरक्षण दिया जाना अवैधानिक होगा। जिस तरह एससी व एसटी वर्ग को आरक्षण दिया जाता है, उसी तरह महिलाओं को भी आरक्षण का लाभ दिया जाना चाहिए था, लेकिन राज्य सरकार ने ऐसी प्रक्रिया नहीं अपनाई।

ऐसी स्थिति में ये प्रावधान न केवल रद्द करने योग्य है बल्कि असंवैधानिक भी है। साथ ही कुछ सीटों पर 21 से 35 साल के युवाओं को दिया आरक्षण भी संविधान के प्रावधानों के विपरीत है, इससे अन्य युवाओं को चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता, इसलिए यह भी रद्द किए जाने योग्य है।

इस निर्णय से पहले हाई कोर्ट ने स्थानीय चुनावों में युवा व महिलाओं के आरक्षण के संबंध में ऐसा ही निर्णय दिया था। उस मामले में राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर कर दी है। अब पंचायत राज चुनावों में युवा व महिला आरक्षण के संबंध में दिए अदालत के निर्णय का कोई अधिक फर्क नहीं पड़ेगा, क्योंकि पंचायत के चुनाव हो गए हैं। हालांकि इस आदेश के बाद अब महिलाओं को उनकी जनसंख्या के अनुसार ही आरक्षण मिलेगा।

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