पढ़ाई और जीवन में क्या अंतर है? स्कूल में आप को पाठ सिखाते हैं और फिर परीक्षा लेते हैं. जीवन में पहले परीक्षा होती है और फिर सबक सिखने को मिलता है. - टॉम बोडेट

Wednesday, May 19, 2010

'कुल पिता की तरह पेश न आएं खापें' - पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट

पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने खाप पंचायतों को कड़ा संदेश देते हुए कहा कि खाप पंचायतें अपने आप को कुल पिता की तरह प्रस्तुत न करें। इसके साथ ही हाईकोर्ट ने सगोत्र विवाह पर रोक लगाने और हिंदू विवाह अधिनियम में संशोधन संबंधी याचिका को खारिज कर दिया।
कोर्ट ने साथ ही खापों को दो टूक कहा कि वे हिंदू विवाह अधिनियम में संशोधन की मांग पर सरकार के पास जाएं। साथ ही कोर्ट ने नसीहत दी कि ऐसे नियम खापें सिर्फ अपने परिवार पर लागू करें, समाज पर यह नियम न थोंपे।
सोनीपत निवासी कपूर जाखड़ व अन्य तीन लोगों ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर हरियाणा की परंपरा व प्रथा को बचाने के लिए एक गोत्र में विवाह करने पर रोक लगाने की मांग की थी। हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस मुकुल मुद्गल की अध्यक्षता वाली खंडपीठ इस मामले में सुनवाई कर रही थी। सोमवार को सुनवाई के दौरान खंडपीठ के सदस्य जज जसबीर सिंह ने खाप पंचायतों को कहा कि इन पंचायतों को अपने काम से मतलब रखना चाहिए।
मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट का नजरिया था कि भारत एक स्वतंत्र देश है और उन लोगों के साथ कुछ गलत करने की छूट नहीं दी जा सकती जो कानून के दायरे में विवाह करते हैं। सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ने कहा कि कहा कि खाप पंचायत के सदस्य तालिबानी आदेश जारी कर प्रेमी जोड़ों को तंग कर रहे हैं। वे एक तरह से कानून तोडऩे वाले असामाजिक तत्व हैं। कोर्ट ने कहा कि ऐसे लोगों को पकड़ कर जेल में बंद करने की जरूरत है तभी इनकी गैरकानूनी गतिविधियों पर रोक लग सकेगी और समाज में शांति हो पाएगी। चीफ जस्टिस ने याचिकाकर्ता के वकील से कहा कि तुम इस बात की फिक्र क्यों कर रहे हो कि प्रेमी जोड़े परंपराओं की अपेक्षा कानून के अनुसार विवाह कर रहे हैं?
चीफ जस्टिस ने कहा कि साथ ही कह कि आप यह परंपरा अपने बच्चों पर थोपना, लेकिन इसे समाज पर थोपने का कोई अधिकार नही हैं। खंडपीठ ने याचिकाकर्ता के वकील से पूछा कि क्या उनके पास ऐसा कोई सबूत है जिससे यह पता लगता हो कि गोत्र में विवाह पर रोक कोई परंपरा या सामाजिक प्रथा है। खंडपीठ के इस जवाब पर याचिकाकर्ता के वकील ने वेदों का हवाला दिया। इस पर खंडपीठ ने कहा कि वह वेदों का सम्मान करते हैं लेकिन कोर्ट संविधान के प्रति जवाबदेह है न कि वेदों के। खंडपीठ ने याचिकाकर्ता से कहा कि वह ऐसे सबूत या पुस्तक पेश करें जिससे साबित होता है कि गोत्र विवाह पर रोक एक प्रथा है और इसकी कोई ऐतिहासिक पृष्ठभूमि है।
खंडपीठ ने एक ही गोत्र में विवाह पर रोक लगाने से इनकार करते हुए कहा कि न्यायपालिका इस तरह का कोई कानून बनाने के लिए निर्देश नहीं दे सकती। इसके लिए आप कार्यपालिका से आग्रह करें। इस मामले में खंडपीठ ने सुप्रीम कोर्ट के एक निर्देश का हवाला देते हुए कहा कि कोर्ट किसी भी अधिसूचित कानून पर निर्देश जारी नहीं कर सकती। खंडपीठ ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि वह इस बाबत सरकार को अपनी प्रस्तुति दे। याचिका में याचिककर्ता ने कोर्ट से आग्रह किया था कि एक नया कानून बनाया जाए या वर्तमान हिंदू विवाह अधिनियम में संशोधन हो ताकि एक गोत्र में विवाह पर रोक लगाई जा सके। अपनी मांग के पक्ष में याचिकाकर्ता ने चिकित्सा विज्ञान का भी हवाला दिया और कहा कि हरियाणा का जाट समुदाय इससे सबसे ज्यादा प्रभावित हो रहा है।

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