पढ़ाई और जीवन में क्या अंतर है? स्कूल में आप को पाठ सिखाते हैं और फिर परीक्षा लेते हैं. जीवन में पहले परीक्षा होती है और फिर सबक सिखने को मिलता है. - टॉम बोडेट

Saturday, April 3, 2010

शादी से जुड़े मामले में एफआईआर के लिए सबूत जरूरी नहीं : उच्चतम न्यायालय

उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि दूसरी शादी से जुड़े मामले में आपराधिक शिकायत दर्ज कराने के दौरान असंतुष्ट पक्ष के लिए यह साबित करना आवश्यक नहीं है कि विवाह की रस्म पूरी की गई है क्योंकि आरोप की सत्यता पर फैसला करना अदालत का काम है। न्यायालय ने कहा कि आपराधिक मामलों में अदालतें आरोप पत्र को अभियुक्त की सिर्फ इस दलील के आधार पर निरस्त नहीं कर सकतीं कि आरोपों में कोई सच्चाई नहीं है।

न्यायालय ने कहा, ‘‘इस बात को ध्यान में रखने की जरूरत है कि आरोप पत्र को निरस्त करने के दौरान प्राथमिकी में लगाए गए आरोपों और जांच के दौरान एकत्र की गई सामग्रियों पर विचार किए जाने की आवश्यकता है।’’ न्यायमूर्ति डीके जैन और न्यायमूर्ति सी के प्रसाद की पीठ ने अपने फैसले में कहा, ‘‘सच्चाई या आरोपों के बारे में अन्य बातों पर इस चरण में गौर करना सही नहीं है क्योंकि यह हमेशा मुकदमे का मामला है। विवाह की आवश्यक रस्मों का आयोजन किया गया अथवा नहीं यह मुकदमे की सुनवाई का मामला है।’’

शीर्ष अदालत ने यह फैसला के नीलावाणी नाम की एक महिला की अपील को बरकरार रखने के दौरान दिया। उसने मद्रास उच्च न्यायालय के उस फैसले को चुनौती दी थी जिसके तहत अदालत ने उसके पति एस के शिवकुमार के खिलाफ आईपीसी की धारा 406 (विश्वास हनन) और धारा 494 (दूसरी शादी) के तहत दायर आरोप पत्र को निरस्त कर दिया था। नीलावाणी के अनुसार उनकी शादी के बरकरार रहने के दौरान ही कुमार ने भारती नाम की दूसरी महिला से शादी की और उसके बच्चे के पिता बने।

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