सुप्रीमकोर्ट ने व्यवस्था दी है कि जिस व्यक्ति का नाम पुलिस के मूल आरोपपत्र में शामिल नहीं हो उसे भी अदालतें आगे की जांच में मदद के लिए अथवा मुकदमे की सुनवाई के दौरान बुला सकती हैं।
न्यायमूर्ति एस बी सिन्हा और न्यायमूर्ति पी सदाशिवम की पीठ ने कहा, 'आगे की जांच के पीछे की मुख्य सोच सत्य तक पहुंचने और वास्तविक तथा ठोस न्याय करने की है। महज देरी को आधार बनाकर आगे की जांच के लिए जांच एजेंसी के हाथ नहीं बांधे जा सकते।'
सीआरपीसी की धारा 173 [आरोपपत्र और पुलिस रिपोर्ट से संबंधित] की व्याख्या करते हुए सुप्रीमकोर्ट ने कहा कि उपधारा [दो] और उपधारा [आठ] से स्पष्ट है कि जांच पूरी होने के बाद भी जांच एजेंसी को आगे की जांच करने का पूरा अधिकार है लेकिन उपधारा आठ के तहत 'नए सिरे से जांच' अथवा 'दोबारा जांच' नहीं की जा सकती।
पीठ ने कहा, 'आगे की जांच पूर्व की जांच का ही आगे का क्रम है। पूर्व की जांच को खत्म करके नए सिरे से जांच अथवा दोबारा जांच नहीं की जा सकती।' शीर्ष अदालत ने यह व्यवस्था हत्या के मामले के अभियुक्त रामा चौधरी और कुछ अन्य की अपील को खारिज करते हुए दी। इन लोगों ने सत्र अदालत के उस फैसले को चुनौती दी थी जिसमें हत्या के मामले में आठ अन्य अभियुक्तों को सम्मन जारी किया गया था जबकि मूल आरोप पत्र में उनका नाम नहीं था।
Tuesday, April 7, 2009
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