पढ़ाई और जीवन में क्या अंतर है? स्कूल में आप को पाठ सिखाते हैं और फिर परीक्षा लेते हैं. जीवन में पहले परीक्षा होती है और फिर सबक सिखने को मिलता है. - टॉम बोडेट

Friday, April 17, 2009

स्कूलों में नहीं दी जानी चाहिए सेक्स शिक्षा

स्कूलों में सेक्स शिक्षा पर एक संसदीय समिति ने आपत्ति जताई है। समिति ने सुझाव दिया है कि इससे संबंधित पाठों को जीवविज्ञान के सिलेबस में प्लस टू से पहले नहीं जोड़ा जाए।
राज्यसभा की कमेटी ऑफ पिटीशंस ने अपनी ताजा रिपोर्ट में कहा है कि स्कूली बच्चों को साफ संदेश दिया जाना चाहिए कि शादी से पूर्व सेक्स नहीं किया जाना चाहिए। वरिष्ठ भाजपा नेता एम वेंकैया नायडू नीत समिति ने कहा कि छात्रों को इस तथ्य के बारे में जागरूक किया जाना चाहिए कि शादी से पहले सेक्स सामाजिक मूल्यों के खिलाफ है। 
समिति के मुताबिक, छात्रों को इस बारे में जागरूक किया जाए कि बाल विवाह अवैध तथा लड़की के स्वास्थ्य के लिहाज से घातक है। उन्हें इस बात की शिक्षा भी दी जानी चाहिए कि 16 वर्ष की उम्र के पहले सहमति से बनाए गए शारीरिक संबंध भी दुष्कर्म के बराबर हैं। 
स्कूलों में सेक्स शिक्षा पर राष्ट्रीय बहस की मांग करने वाली याचिका पर रिपोर्ट में कहा गया है कि एचआईवी/एड्स के बारे में पाठ जीवविज्ञान के सिलेबस में उच्चतर कक्षाओं में जोड़े जा सकते हैं।

1 टिप्पणियाँ:

कौतुक रमण said...

आजकल देखने में आया है की ग्यारह वर्ष की आयु में बालिकाओं में शारीरिक परिवर्तन आने लगते हैं. ग्यारहवीं क्लास में पहुँचते पहुँचते वे १६ की उम्र पार कर जायेंगी. क्या यह जरूरी नहीं कि उसे मालूम हो कि उसके साथ जो परिवर्तन हो रहे हैं वह पुरी तरह से जायज हैं और उसे अब अपने प्रति ज्यादा जागरूक होने की जरूरत है? यौन जनित रोगों, गर्भ की समस्यायों, सामाजिक परिस्तिथि से पुरी तरह अवगत कराया जाये. ताकि वह ऐसा कोई कदम न उठे जो उसके शरीर, मन या प्रतिष्ठा के लिए घटक है.

लड़को में भी परिवर्तन १३ - १४ से शुरू होने लगते हैं, क्या यह जरूरी नहीं कि उन्हें भी यह पता हो कि क्या हो रहा है. और उनके अन्दर कुंठा या अंध-विस्वास जैसी चीजें घर न कर जाएँ. उन्हें भी यौन जनित रोगों, सामाजिक और कानूनी कठिनाईयों से अवगत करना चाहिए.

हम स्कूलों में न सिखाएं तो क्या इसे माता पिता पर छोड़ दें? और उन्हें भी यदि पूरा ज्ञान न हो तो?