पढ़ाई और जीवन में क्या अंतर है? स्कूल में आप को पाठ सिखाते हैं और फिर परीक्षा लेते हैं. जीवन में पहले परीक्षा होती है और फिर सबक सिखने को मिलता है. - टॉम बोडेट

Tuesday, April 7, 2009

शिशु की जान की खातिर न्यायालय का हस्तक्षेप

दिल्ली उच्च न्यायालय ने सर्जन एके. बिश्नोई को अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान(एम्स) में भर्ती एक महीने के एक हृदयरोगी शिशु का ऑपेशन करने की अनुमति दे दी है। एम्स के इस डॉक्टर को निलंबित कर दिया गया था। मुख्य न्यायाधीश अजित प्रकाश शाह की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने अस्पताल में भर्ती इस शिशु के माता-पिता की अपील का संज्ञान लेते हुए यह फैसला सुनाया। इस बच्चे का इलाज बिश्नोई ही कर रहे थे। अदालत ने स्पष्ट कर दिया है कि इस फैसले का बिश्नोई के निलंबन से कुछ लेना-देना नहीं है। अदालत ने कहा है कि इस मामले में बिश्नोई किसी उपयुक्त प्राधिकार से संपर्क कर सकते हैं। एम्स प्रशासन ने अपने हलफनामे में कहा था कि बिश्नोई के निलंबन के बावजूद शिशु की देखभाल में कोई कमी नहीं आई और उसकी हालत स्थिर बनी हुई है।  बच्चे के ऑपरेशन के लिए एम्स ने दो डॉक्टरों के नाम भी सुझाए थे। याचिका में बच्चे की मां रेखा ने कहा था कि बिश्नोई की देखेरख में ही बच्चे का इलाज चल रहा था, ऐसे में उन्हें ही इस बच्चे के ऑपरेशन का जिम्मा सौंपा जाना चाहिए।


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