Saturday, April 11, 2009
‘हिन्दुस्तान में सफल नहीं हो सकती लिव-इन रिलेशनशिप’
राजस्थान उच्च न्यायालय ने पांच वर्ष से माता-पिता से अलग रह रही इंजीनियरिंग छात्रा को उसकी इच्छानुसार पुरूष-मित्र के साथ जाने के आदेश देने के साथ ही टिप्पणी की कि हिन्दुस्तान में लिव-इन रिलेशनशिप जैसी व्यवस्था सफल नहीं हो सकती है। वरिष्ठ न्यायाधीश अशोक परिहार व न्यायाधीश गौरीशंकर सर्राफ की खंडपीठ ने यह आदेश लड़की के पिता द्वारा दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका का निपटारा करते हुए दिए। लड़की के पिता ने याचिका में अदालत को बताया कि उसकी बेटी पांच वर्ष से अजमेर में रहकर इंजीनियरिंग कोर्स कर रही थी और एक विवाहित पुरूष मित्र, जो चार बार विवाहित है, के साथ रह रही है।
प्रकरण की सुनवाई के दौरान अदालत ने जब इस लड़की की राय जानना चाहा तो उसने पुरूष मित्र के साथ अपनी इच्छा से रहने की बात बताई। इस पर लड़की के माता-पिता ने अदालत में हंगामा कर दिया जिन्हें वहां तैनात सुरक्षाकर्मियों ने अदालत भवन के मुख्य द्वार तक छोड़ने के आदेश दिए।
अदालत ने कहा कि लड़की वयस्क है एवं पुरूष मित्र के साथ इच्छा से रह रही है अत: अदालत कुछ नहीं कर सकती लेकिन साथ ही टिप्पणी की कि 'हिन्दुस्तान में लिव-इन रिलेशनशिप जैसी व्यवस्था सफल नहीं हो सकती है।
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