सुप्रीम कोर्ट ने व्यवस्था दी है कि सरकार पर ऐसी कोई संवैधानिक बाध्यता नहीं है कि प्रतियोगी परीक्षाओं में प्रीलिमनरी (प्री) स्तर पर आरक्षण लागू करे। अदालत ने कहा कि योग्यता की जांच कई स्तरों पर होनी चाहिए। संविधान का मकसद ऐसे उम्मीदवार चुनना है जो पद की जिम्मेदारियां संभालते हुए समाज की सेवा कर सकें। सरकारी पद कृपा या दान के तौर पर भरने के लिए नहीं हैं।
जस्टिस एस. बी. सिन्हा और सी. जोसफ ने कहा कि प्री एग्जाम मेन एग्जाम का हिस्सा नहीं है। इसके अलावा प्रतियोगिता के शुरुआती स्तर पर ही सामाजिक रूप से पिछडे़ वर्ग को आरक्षण की सुविधा देने पर जोर नहीं दिया जा सकता। इस स्तर पर कैंडिडेट की मेरिट का फैसला नहीं होता। यह केवल उसकी अर्हता का निर्णय करने के लिए है। प्री एग्जाम में जनरल स्टडीज और मेंटल एबिलिटी के पेपर होते हैं। ऐसे पेपर उम्मीदवारों की बेसिक अर्हता निर्धारित करने के लिए जरूरी हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने यह व्यवस्था आंध्र प्रदेश पब्लिक सर्विस कमिशन (एपीपीएससी) और रिजर्व कैटिगरी स्टूडंट्स के बीच चलते विवाद को लेकर दी है। इन लोगों को एपीपीएससी ने डिप्टी कलेक्टरों, कमर्शल टैक्स ऑफिसरों और ग्रुप वन पोस्ट के एग्जाम में प्री स्टेज पर रिजर्वेशन देने से मना कर दिया था।
प्री में असफल रहने वाले रिजर्व कैटिगरी के कुछ उम्मीदवारों ने नतीजे के खिलाफ आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट में अपील की, जिसने फैसला किया कि प्री के स्तर पर भी रिजर्वेशन दिया जाना चाहिए। इस फैसले से नाखुश एपीपीएससी ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की। सुप्रीम कोर्ट ने कमिशन के नियम को बरकरार रखते हुए कहा कि रिजर्व कैंडिडेट के लिए प्री एग्जाम में नंबर कम करना संवैधानिक तौर पर जरूरी नहीं है। इसकी अनुमति प्रमोशन के स्तर पर ही है। न्यूनतम अर्हता रखने वाले लोग ही मेन एग्जाम में बैठने के योग्य होंगे।
Friday, April 10, 2009
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