दिल्ली विधिक सेवा प्राधिकरण के पैनल में अनुभवी वकीलों के न होने को हाईकोर्ट ने गंभीरता से लिया है। कोर्ट ने इस मामले में प्राधिकरण को सुझाव दिया है कि वह अपने पैनल में वरिष्ठ व अनुभवी वकीलों को रखे। जिनके पास कम से कम 10 साल की वकालत का अनुभव हो। साथ ही उनके सहायक वकीलों को भी कम से पांच साल का अनुभव हो। जस्टिस डा. एस मुरलीधर की पीठ ने यह फैसला सुनाया है।
पीठ ने एनडीपीएस एक्ट के मामले में सजायाफ्ता एक आरोपी की अपील पर सुनवाई करते हुए यह फैसला सुनाया। पेश मामले में नेपाल निवासी बल बहादुर को निचली अदालत ने दस साल कारावास व एक लाख रुपये जुर्माने की सजा सुनाई थी। सजा के खिलाफ उसने हाईकोर्ट में अपील दायर कर कहा कि वह बहुत गरीब है और उसे फर्जी तरीके से फंसाया गया है। जबकि निचली अदालत में उसे सही तरीके से सहायता नहीं मिली। लीगल सेल ने उसे वकील तो उपलब्ध कराया किंतु ट्रायल के दौरान तीन वकील बदल दिए गए। जिन्हें अनुभव भी नहीं था। ऐसे में वह ठीक तरीके से अपना पक्ष नहीं रख पाया। मामले को गंभीरता से लेते हुए पीठ ने दिल्ली विधिक सेवा प्राधिकरण को यह सुझाव दिया कि वह अपने पैनल में अनुभवी वकीलों की नियुक्ति करे। पीठ ने कहा कि ऐसे मामलों में जिसमें सात साल से ऊपर की सजा का प्रावधान है। गरीब आरोपियों को मुकदमा लड़ने के लिए अनुभवी वकील दिए जाएं। जिससे आरोपी मजबूती से अदालत के समक्ष अपना पक्ष रख सके। पीठ ने कहा कि संविधान में सभी को अपना पक्ष रखने का अधिकार है। हालांकि पीठ ने आरोपी बल बहादुर की सजा बरकरार रखी है। लेकिन एक लाख जुर्माना अदा न करने की स्थिति में एक साल की सजा को घटाकर एक महीने का कर दिया है।
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न्यायमूर्ति जी एस सिंघवी और न्यायमूर्ति ए के गांगुली की पीठ ने अपने एक फैसले में कहा कि जरूरत के नाम पर निजी संस्थानों के लिए भूमि अधिग्रहण करने में सरकार के काम को अदालतों को 'संदेह' की नजर से देखना चाहिए।
पीठ की ओर से फैसला लिखते हुए न्यायमूर्ति ... More Link |
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