चुनाव नतीजे आने के बाद हो सकता है कोई नेता आपके पास उलाहना लेकर पहुंचे कि आपने उन्हें वोट नहीं दिया। आप अचरज में होंगे कि आखिर इन्हें पता कैसे चला? दरअसल, वर्तमान मतगणना प्रणाली में पारदर्शिता की बड़ी कमी इसकी वजह होगी।
बैलट पेपर वाला जमाना याद कीजिए। तब मतगणना के वक्त अलग-अलग बूथ के वोट मिलाए जाते थे और फिर गिनती होती थी। अब इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन का जमाना है। ईवीएम के जरिए डाले गए मतों को भी गिनती से पहले मिलाने के लिए 'टोटलाइजर सिस्टम' बनाया गया है, लेकिन इस पर अमल अब तक संभव नहीं हो सका है। लिहाजा आपका मतदान पूरी तरह गुप्त हो, यह अब अगले चुनाव में ही संभव हो सकता है। गणना से पहले मतों को मिलाने की प्रक्रिया इसलिए अपनाई जाती थी ताकि लोगों को किसी एक मतदान केंद्र पर डाले जाने वाले वोट का अंदाजा न हो सके। इस तरह वोट के बाद भी मतदान की पूरी गोपनीयता बनी रहती थी।
वर्ष 2004 में पूरी तरह ईवीएम का इस्तेमाल शुरू हो जाने पर यह प्रक्रिया खत्म हो गई। इसके साथ ही मतदान की गोपनीयता पर सवालिया निशान भी लग गया। इससे बचाव के लिए चुनाव आयोग ने विशेषज्ञों की मदद से टोटलाइजर सिस्टम विकसित किया। इसके तहत कई मतदान केंद्रों के ईवीएम में दर्ज मतों को एक साथ मिला कर उसके बाद उनकी गिनती किए जाने की व्यवस्था है। पश्चिम बंगाल के नंदीग्राम और उत्तार प्रदेश के भदोही विधानसभा उपचुनाव में टोटलाइजर सिस्टम का सफल परीक्षण किया गया। बताते हैं कि चुनाव आयोग ने 2009 के लोकसभा चुनाव में इसके उपयोग का प्रस्ताव केंद्र सरकार के पास भेजा था।
सूत्रों का कहना है कि अभी यह प्रस्ताव कानून मंत्रालय की सलाहकार समिति के पास लंबित है। जाहिर है, आपके मत केंद्र के ईवीएम में दर्ज वोटों की गिनती अकेले होगी। ऐसे में लोग चाहें तो सही-सही भांप सकते हैं कि आपने किसे वोट दिया। वैसे गनीमत है कि यह आंकलन हर किसी के वश की बात नहीं।
बैलट पेपर वाला जमाना याद कीजिए। तब मतगणना के वक्त अलग-अलग बूथ के वोट मिलाए जाते थे और फिर गिनती होती थी। अब इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन का जमाना है। ईवीएम के जरिए डाले गए मतों को भी गिनती से पहले मिलाने के लिए 'टोटलाइजर सिस्टम' बनाया गया है, लेकिन इस पर अमल अब तक संभव नहीं हो सका है। लिहाजा आपका मतदान पूरी तरह गुप्त हो, यह अब अगले चुनाव में ही संभव हो सकता है। गणना से पहले मतों को मिलाने की प्रक्रिया इसलिए अपनाई जाती थी ताकि लोगों को किसी एक मतदान केंद्र पर डाले जाने वाले वोट का अंदाजा न हो सके। इस तरह वोट के बाद भी मतदान की पूरी गोपनीयता बनी रहती थी।
वर्ष 2004 में पूरी तरह ईवीएम का इस्तेमाल शुरू हो जाने पर यह प्रक्रिया खत्म हो गई। इसके साथ ही मतदान की गोपनीयता पर सवालिया निशान भी लग गया। इससे बचाव के लिए चुनाव आयोग ने विशेषज्ञों की मदद से टोटलाइजर सिस्टम विकसित किया। इसके तहत कई मतदान केंद्रों के ईवीएम में दर्ज मतों को एक साथ मिला कर उसके बाद उनकी गिनती किए जाने की व्यवस्था है। पश्चिम बंगाल के नंदीग्राम और उत्तार प्रदेश के भदोही विधानसभा उपचुनाव में टोटलाइजर सिस्टम का सफल परीक्षण किया गया। बताते हैं कि चुनाव आयोग ने 2009 के लोकसभा चुनाव में इसके उपयोग का प्रस्ताव केंद्र सरकार के पास भेजा था।
सूत्रों का कहना है कि अभी यह प्रस्ताव कानून मंत्रालय की सलाहकार समिति के पास लंबित है। जाहिर है, आपके मत केंद्र के ईवीएम में दर्ज वोटों की गिनती अकेले होगी। ऐसे में लोग चाहें तो सही-सही भांप सकते हैं कि आपने किसे वोट दिया। वैसे गनीमत है कि यह आंकलन हर किसी के वश की बात नहीं।
1 टिप्पणियाँ:
अरे भई यह तो सरासर अन्याय है! अपराधी प्रवृत्ति के नेता विरोधियों को वोट डालने वाले लोगों की हत्या करवाना शुरू कर देंगे तो क्या होगा?
Post a Comment