सुनवाई के लिए लंबित मामलों की बढ़ती तादाद से निपटने के इरादे से दिल्ली उच्च न्यायालय ने निचली अदालतों के सभी जजों को हर मुकदमे के लिए तीन साल का वक्त तय करने को कहा है।
मामलों के निपटारे की रफ्तार बढ़ाने के लिए निर्देश देते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा प्रत्येक अधिकारी किसी मामले के हर चरण .ंजैसे बहस पूरा करने आरोपों के निर्धारण और गवाही दर्ज करने के निपटान के लिए समय सीमा तय करेंगे और सभी संबद्ध लोगों द्वारा इसका पालन सुनिश्चित करेंगे।
उच्च न्यायालय ने कहा दिवानी और फौजदारी दोनो ही मामलों में धीरे धीरे सुनवाई की औसत अवधि को कम करके दो से तीन साल करने की कोशिशें की जाएंगी। इन निर्देशों की खास अहमियत है क्योंकि इस बरस एक फरवरी को राजधानी की सत्र अदालतों में बकाया मामलों की तादाद 22 829 थी जिसमें से 1766 मुकदमे हत्या के थे। 43 024 दिवानी मामले भी लंबित हैं।
निर्देशों के मुताबिक सभी न्यायिक अधिकारियों को हर महीने कम से कम कत्ल के दो मामलों की सुनवाई करने की बात ध्यान में रखने के लिए कहा गया है। जजों द्वारा अदालतों का वक्त ठीक से इस्तेमाल करने के मकसद से उच्च न्यायालय ने कहा हर अधिकारी अदालतों के समय और संसाधनों के अधिकतम इस्तेमाल को सुनिश्चित करने के लिए मुकदमों की सूची पर प्रभावी नियंत्रण रखेगा। मामले के पक्षकारों में सुनवाई टालने के बढ़ते चलन को मद्देनजर रखते हुए उच्च न्यायाल ने यह सुनिश्चित करने के लिए कहा है कि ऐसी स्थिति में स्थगन न दिए जाएं खासकर इस आधार पर कि कोई याचिका उच्च न्यायालय में दायर है।
उच्च न्यायालय ने कहा स्थगन उदारतापूर्वक न दिए जाएं जब तक कि कोई बाध्यकारी कारण न हो और कार्यवाही में इसे दर्ज किया जाए। मामले से जुड़ी कोई याचिका उच्च न्यायालय में दाखिल की गई है महज इस आधार पर कार्यवाही न रोकी जाए।
उच्च न्यायालय ने उच्च न्यायकि सेवा के अधिकारियों से नए साल की शुरूआत के वक्त अपनी अदालत में लंबित सभी मामलों के सालाना ब्योरे रखने के लिए कहा है। साथ ही उन्हें हर साल मामलों के निष्पादन का एक यथार्थपरक लक्ष्य रखने के लिए भी कहा गया है जिसकी वे हर तिमाही समीक्षा कर सकें।
उच्च न्यायालय ने उन्हें हत्या सेक्स आर्थिक अपराध नारकोटिक्स ड्रग एंड साइकोट्रोपिक सब्सटांस एक्ट से जुड़े फौजदारी और बच्चों के संरक्षण से जुड़े दिवानी मामलों के शीघ्र और प्रभावशाली निष्पादन पर विशेष ध्यान देने के लिए कहा है।
मामलों के निपटारे की रफ्तार बढ़ाने के लिए निर्देश देते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा प्रत्येक अधिकारी किसी मामले के हर चरण .ंजैसे बहस पूरा करने आरोपों के निर्धारण और गवाही दर्ज करने के निपटान के लिए समय सीमा तय करेंगे और सभी संबद्ध लोगों द्वारा इसका पालन सुनिश्चित करेंगे।
उच्च न्यायालय ने कहा दिवानी और फौजदारी दोनो ही मामलों में धीरे धीरे सुनवाई की औसत अवधि को कम करके दो से तीन साल करने की कोशिशें की जाएंगी। इन निर्देशों की खास अहमियत है क्योंकि इस बरस एक फरवरी को राजधानी की सत्र अदालतों में बकाया मामलों की तादाद 22 829 थी जिसमें से 1766 मुकदमे हत्या के थे। 43 024 दिवानी मामले भी लंबित हैं।
निर्देशों के मुताबिक सभी न्यायिक अधिकारियों को हर महीने कम से कम कत्ल के दो मामलों की सुनवाई करने की बात ध्यान में रखने के लिए कहा गया है। जजों द्वारा अदालतों का वक्त ठीक से इस्तेमाल करने के मकसद से उच्च न्यायालय ने कहा हर अधिकारी अदालतों के समय और संसाधनों के अधिकतम इस्तेमाल को सुनिश्चित करने के लिए मुकदमों की सूची पर प्रभावी नियंत्रण रखेगा। मामले के पक्षकारों में सुनवाई टालने के बढ़ते चलन को मद्देनजर रखते हुए उच्च न्यायाल ने यह सुनिश्चित करने के लिए कहा है कि ऐसी स्थिति में स्थगन न दिए जाएं खासकर इस आधार पर कि कोई याचिका उच्च न्यायालय में दायर है।
उच्च न्यायालय ने कहा स्थगन उदारतापूर्वक न दिए जाएं जब तक कि कोई बाध्यकारी कारण न हो और कार्यवाही में इसे दर्ज किया जाए। मामले से जुड़ी कोई याचिका उच्च न्यायालय में दाखिल की गई है महज इस आधार पर कार्यवाही न रोकी जाए।
उच्च न्यायालय ने उच्च न्यायकि सेवा के अधिकारियों से नए साल की शुरूआत के वक्त अपनी अदालत में लंबित सभी मामलों के सालाना ब्योरे रखने के लिए कहा है। साथ ही उन्हें हर साल मामलों के निष्पादन का एक यथार्थपरक लक्ष्य रखने के लिए भी कहा गया है जिसकी वे हर तिमाही समीक्षा कर सकें।
उच्च न्यायालय ने उन्हें हत्या सेक्स आर्थिक अपराध नारकोटिक्स ड्रग एंड साइकोट्रोपिक सब्सटांस एक्ट से जुड़े फौजदारी और बच्चों के संरक्षण से जुड़े दिवानी मामलों के शीघ्र और प्रभावशाली निष्पादन पर विशेष ध्यान देने के लिए कहा है।
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