सुप्रीमकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण आदेश में कहा है कि वाहन दुर्घटना बीमा दावों के संबंध में आधिकारिक सर्वेयर की ओर से निर्धारित मुआवजा बीमित व्यक्ति या बीमा कंपनियों पर बाध्यकारी नहीं है। शीर्ष अदालत ने गैर-गंभीर मुकदमों में लोगों का धन जाया करने के मामले में सार्वजनिक क्षेत्र के न्यू इंडिया इंश्योरेंस कंपनी को भी लताड़ लगाई।
न्यायमूर्ति डी के जैन और न्यायमूर्ति आर एम लोढ़ा ने फैसले में कहा, 'अधिकृत सर्वेयर की रिपोर्ट बीमा कंपनी पर बीमित व्यक्ति ओर से किए गए दावे के निपटान का आधार हो सकती है पर यह रिपोर्ट न तो बीमित व्यक्ति और न ही बीमाकर्ता कंपनी के लिए बाध्यकारी है।'
न्यायालय का यह आदेश खासा अहम है, क्योंकि अधिकतर मामलों में बीमा कंपनियों द्वारा मुआवजों का निर्धारण सर्वेयर के आकलन पर आधारित होता है। साथ अधिकत मामलों में राशि दावाकर्ताओं के दावे से कम होती है।
न्यू इंडिया इंश्योरेंस कंपनी की अपील को खारिज करते हुए शीर्ष अदालत ने यह फैसला सुनाया। बीमा कंपनी ने राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निपटान आयोग [एनसीडीआरसी] के उस निर्देश को चुनौती दी थी जिसमें एक ट्रक मालिक को 1.58 लाख रुपये का मुआवजा देने की बात कही गई थी। सात नवंबर 1998 को टिहरी [तत्कालीन उत्तर प्रदेश] में सड़क दुर्घटना में ट्रक को खासा नुकसान पहुंचा था।
एनसीडीआरसी ने आयोग ने जिला और राज्य उपभोक्ता आयोग के फैसले को बरकरार रखते हुए ट्रक मालिक प्रदीप कुमार के पक्ष में यह फैसला सुनाया था। शीर्ष अदालत में बीमा कंपनी ने यह तर्क रखा कि उपभोक्ता अदालत 1.58 लाख रुपये के मुआवजा देने का निर्देश नहीं दे सकती, क्योंकि तीसरे आधिकारिक सर्वेयर बी बी गर्ग ने नुकसान का आकलन 63,771 रुपये किया है।
इस मामले में बीमा कंपनी ने दो अन्य आकलकर्ता मनोज कुमार अग्रवाल और विवेक अरोड़ा के आकलन को खारिज करते हुए तीसरे सर्वेयर की नियुक्ति की थी। दोनों आकलनकर्ताओं ने 1.66 लाख रुपये का नुकसान का आकलन किया था।
दलील को खारिज करते हुए न्यायालय ने कहा कि दो पूर्व आकलनकर्ताओं की रिपोर्ट में मुआवजे की राशि का निर्धारण 1.66 लाख किया गया था। लेकिन बीमा कंपनी ने दोनों की रिपोर्ट को खारिज करते हुए तीसरे सर्वेयर की नियुक्ति की जिसने अपेक्षाकृत निम्न मुआवजे की राशि निर्धारित की।
न्यायमूर्ति डी के जैन और न्यायमूर्ति आर एम लोढ़ा ने फैसले में कहा, 'अधिकृत सर्वेयर की रिपोर्ट बीमा कंपनी पर बीमित व्यक्ति ओर से किए गए दावे के निपटान का आधार हो सकती है पर यह रिपोर्ट न तो बीमित व्यक्ति और न ही बीमाकर्ता कंपनी के लिए बाध्यकारी है।'
न्यायालय का यह आदेश खासा अहम है, क्योंकि अधिकतर मामलों में बीमा कंपनियों द्वारा मुआवजों का निर्धारण सर्वेयर के आकलन पर आधारित होता है। साथ अधिकत मामलों में राशि दावाकर्ताओं के दावे से कम होती है।
न्यू इंडिया इंश्योरेंस कंपनी की अपील को खारिज करते हुए शीर्ष अदालत ने यह फैसला सुनाया। बीमा कंपनी ने राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निपटान आयोग [एनसीडीआरसी] के उस निर्देश को चुनौती दी थी जिसमें एक ट्रक मालिक को 1.58 लाख रुपये का मुआवजा देने की बात कही गई थी। सात नवंबर 1998 को टिहरी [तत्कालीन उत्तर प्रदेश] में सड़क दुर्घटना में ट्रक को खासा नुकसान पहुंचा था।
एनसीडीआरसी ने आयोग ने जिला और राज्य उपभोक्ता आयोग के फैसले को बरकरार रखते हुए ट्रक मालिक प्रदीप कुमार के पक्ष में यह फैसला सुनाया था। शीर्ष अदालत में बीमा कंपनी ने यह तर्क रखा कि उपभोक्ता अदालत 1.58 लाख रुपये के मुआवजा देने का निर्देश नहीं दे सकती, क्योंकि तीसरे आधिकारिक सर्वेयर बी बी गर्ग ने नुकसान का आकलन 63,771 रुपये किया है।
इस मामले में बीमा कंपनी ने दो अन्य आकलकर्ता मनोज कुमार अग्रवाल और विवेक अरोड़ा के आकलन को खारिज करते हुए तीसरे सर्वेयर की नियुक्ति की थी। दोनों आकलनकर्ताओं ने 1.66 लाख रुपये का नुकसान का आकलन किया था।
दलील को खारिज करते हुए न्यायालय ने कहा कि दो पूर्व आकलनकर्ताओं की रिपोर्ट में मुआवजे की राशि का निर्धारण 1.66 लाख किया गया था। लेकिन बीमा कंपनी ने दोनों की रिपोर्ट को खारिज करते हुए तीसरे सर्वेयर की नियुक्ति की जिसने अपेक्षाकृत निम्न मुआवजे की राशि निर्धारित की।
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