पढ़ाई और जीवन में क्या अंतर है? स्कूल में आप को पाठ सिखाते हैं और फिर परीक्षा लेते हैं. जीवन में पहले परीक्षा होती है और फिर सबक सिखने को मिलता है. - टॉम बोडेट

Monday, June 15, 2009

पावर ऑफ अटॉर्नी पर तनी भौंहें ।

उच्चतम न्यायालय ने जमीन-जायदाद की बिक्री में पावर ऑफ अटॉर्नी के गलत इस्तेमाल को रोकने के लिए पांच राज्यों के मुख्य सचिवों और राजस्व सचिवों को कोई रास्ता तलाशने के लिए कहा है। 
देश की सर्वोच्च अदालत का मानना है कि पावर ऑफ अटॉर्नी के गलत इस्तेमाल से जहां राज्य को राजस्व से हाथ धोना पड़ता है, वहीं भू माफिया इससे फायदा उठा रहे हैं। अदालत ने इन राज्यों से इस मामले में कोई तोड़ निकालने को कहा है।
फिलहाल राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से ही इसकी शुरुआत होगी और दिल्ली विकास प्राधिकरण के फ्लैट और प्लॉटों की बिक्री को इसके दायरे में लाया जाएगा। इसके बाद ही इसे दूसरे राज्यों में आजमाया जाएगा।
दिल्ली के अलावा अदालत ने हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र के मुख्य सचिवों को रियल एस्टेट कारोबार में पावर ऑफ अटॉर्नी के गलत इस्तेमाल को रोकने के लिए कहा है। इस मामले में बनाया गया कानून प्रभावशाली साबित नहीं हो पाया है।
यह फैसला हरियाणा की एक पब्लिक लिमिटेड कंपनी सूरज लैंप इंडस्ट्रीज के एम मामले के आलोक में आया है। इस कंपनी ने पावर ऑफ अटॉर्नी के जरिये राज्य में जमीन खरीदी है। लेकिन जमीन के मालिक ने दूसरे पक्ष को भी पावर ऑफ अटॉनी के जरिये जमीन बेचने की कोशिश की। कंपनी ने आपराधिक मामला दायर किया और सूचना के अधिकार के तहत आवेदन भी किया।
वैसे उच्चतम न्यायालय ने मामले को अगस्त के अंतिम सप्ताह तक मुल्तवी कर दिया है। अदालत ने जमीन-जायदाद बेचने के लिए पंजीकरण का रास्ता अपनाने की ही हिदायत दी है। दरअसल स्टांप डयूटी और पंजीकरण शुल्क बचाने के चक्कर में बेचने और खरीदने वाले दोनों पक्ष पावर ऑफ अटॉर्नी का रास्ता अख्तियार करते हैं। इन सौदों में वकीलों और प्रॉपर्टी डीलरों की भी अहम भूमिका होती है।

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