पढ़ाई और जीवन में क्या अंतर है? स्कूल में आप को पाठ सिखाते हैं और फिर परीक्षा लेते हैं. जीवन में पहले परीक्षा होती है और फिर सबक सिखने को मिलता है. - टॉम बोडेट

Wednesday, June 10, 2009

सर्वोच्च न्यायालय ने विवाहित महिला के प्रेमियों को सावधान किया

सर्वोच्च न्यायालय ने एक मामले में एक विवाहित महिला के प्रेमी के खिलाफ फैसला सुनाते हुए ऐसे प्रेमियों को सावधान किया है। अदालत ने प्रेमी को विवाहित महिला के पति को आत्महत्या के लिए मजबूर करने का दोषी ठहराया है। 
न्यायमूर्ति मुकुंदम शर्मा और न्यायमूर्ति बी.एस.चौहान की अवकाशकालीन खंडपीठ ने आंध्रप्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा गुंटूर निवासी दामू श्रीनू को सुनाई गई तीन साल के कारावास की सजा को बरकरार रखने का आदेश दिया है।
28 मई को सुनाए गए और मंगलावार को जारी किए गए फैसले के अनुसार श्रीनू का अपने पड़ोसी बित्रा नागार्जुन राव की पत्नी के साथ प्रेम संबंध था। इसके कारण राव ने 8 जून 1996 को आत्महत्या कर ली थी। 
राव को अपनी पत्नी पर श्रीनू के साथ संबंध होने का शक हुआ तो उसने अपनी पत्नी से इस बारे में सवाल किया। इसे लेकर दोनों के बीच लड़ाई हुई। 
राव ने अपने ससुर को बुलाकर पत्नी को ले जाने के लिए कहा ताकि उसका मन बदल जाए। लेकिन श्रीनू 1 जनवरी 1996 को राव के घर आया और उसने राव की पत्नी के साथ अपने संबंधों की बात स्वीकार कर ली। उसने यह भी कहा कि जब तक वह महिला उसे नहीं छोड़ देती तब तक वह उसके साथ संबंध बनाए रखेगा। 
राव की आत्महत्या के बाद मामला पुलिस के पास पहुंचा तो उसने महिला और उसके प्रेमी को गिरफ्तार कर लिया। एक दंडाधिकारी की अदालत ने दोनों को पांच-पांच साल के कारावास की सजा सुनाई। बाद में सत्र अदालत ने दोनों की सजा को घटा कर तीन-तीन साल कर दिया। 
उसके बाद आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने महिला की सजा को घटा कर एक साल कर दी लेकिन श्रीनू के तीन साल के कारावास की सजा को बरकरार रखा। 
अब सर्वोच्च न्यायालय ने भी उच्च न्यायालय के फैसले पर मुहर लगा दी है।

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