पढ़ाई और जीवन में क्या अंतर है? स्कूल में आप को पाठ सिखाते हैं और फिर परीक्षा लेते हैं. जीवन में पहले परीक्षा होती है और फिर सबक सिखने को मिलता है. - टॉम बोडेट

Friday, June 12, 2009

हाईकोर्ट की पुलिस को फटकार

यतीम बालिका अगवा प्रकरण में दौसा पुलिस के नकारापन पर हाईकोर्ट ने कड़ी फटकार लगाते हुए पुलिस के उच्चाधिकारियों से पूछा है कि 'पता-ठिकाना होने के बावजूद आखिर क्यों नहीं मिल रही पुलिस को बालिका!' घटना के दो सप्ताह बाद भी अगवा कर बंधक बनाकर रखी गई बालिका को बरामद कर पाने में पुलिस के विफल रहने कर पर बालिका के चाचा ने राजस्थान उच्च न्यायालय में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पेश की। इस पर न्यायाधीश महेश भगवती ने प्रमुख शासन सचिव पुलिस अधीक्षक और कोतवाली थाना प्रभारी सहित सात लोगों को नोटिस जारी कर एक सप्ताह में जवाब तलब किया है। इस घटना के बाद से जाति विशेष के खिलाफ लामबंद सर्वसमाज धरना, प्रदर्शन, दौसा बंद के बावजूद स्थानीय पुलिस की उदासीनता के कारण आक्रोशित है। उधर, मुसलिम समाज का एक प्रतिनिधिमंडल राजस्थान मुसलिम फोरम के बैनर तले पुलिस महानिदेशक और अन्य उच्चाधिकारियों से मिला। बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका में प्रार्थी पक्ष ने अदालत को अवगत करवाया कि स्थानीय थाना पुलिस को बालिका अपहरण हो जाने के बाद अपहर्ताओं द्वारा पीडि़ता को बंदी बनाकर कहां गया है? इसकी जानकारी मिल गई, कोतवाली ने पीडि़ता और नामजद आरोपियों से मोबाइल पर बातचीत की और परिजनों से भी उनकी बातचीत करवाई। इस दौरान आरोपियों के छुपे होने का स्थान भी पुलिस को पता चल गया लेकिन इसके बावजूद बालिका को बरामद कर आरोपियों को पकड़ने की कोई कार्रवाई नहीं की गई। 27 मई को हुई इस घटना के बाद तीन दिन तक पुलिस ने मामले को गंभीरता से नहीं लिया और नामजद आरोपियों की शर्ते मानने का दबाव डालती रही। नामजद आरोपियों के सवाई माधोपुर जिले में छुपे होने की पुष्टि हो जाने के बाद भी स्थानीय पुलिस और संबंधित जिला पुलिस अधीक्षक से इस बाबत संपर्क नहीं साधना पुलिस की कारगुजारी को पूरी तरह संदेह के घेरे में खड़ा करता है।

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