दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक आरक्षक के साथ ‘मानवाधिकारों के घोर उल्लंघन’ के लिए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) को फटकार लगाते हए उस पर 1,00,000 रुपए का जुर्माना लगाया है। राजेंद्र प्रसाद नाम का यह आरक्षक आयोग में कार्यरत था लेकिन 10 वर्ष की सेवाओं के बाद उसे अचानक कार्यमुक्त कर दिया गया। हलांकि प्रसाद आयोग के कर्मचारी के रूप में नियमित होना चाहते थे। प्रसाद की याचिका पर सुनवाई करते हुए उच्च न्यायालय ने हाल ही में अपना फैसला सुनाया।
न्यायमूर्ति कैलाश गंभीर ने अपने निर्णय में कहा, “याचिकाकर्ता के मानिवाधिकारों का घोर उल्लंघन हुआ है। उसकी 10 वर्षों की सेवा के बाद उसे यह कहकर हटा दिया गया कि उसकी नियुक्ति भर्ती नियमों से हटकर थी”।न्यायालय ने कहा, “आयोग याचिकाकर्ता के मानवाधिकारों की रक्षा करने में नाकाम रहा है और ऐसे में उस पर 1,00,000 रुपए का जुर्माना लगाया जाता है”। न्यायधीश ने कहा, “इसमें कोई संदेह नहीं कि मानवाधिकार आयोग जैसी संस्था से यह अपेक्षा नहीं जा सकती थी जिसका काम लोगों के मानवाधिकारों का संरक्षण करना है”।उन्होंने कहा कि आयोग अब तक मानवाधिकारों के क्रियान्वयन में अहम प्रभावशाली भूमिका निभाता आया है लेकिन वह खुद से जुड़े एक मामले पर गौर नहीं कर सका।
न्यायमूर्ति कैलाश गंभीर ने अपने निर्णय में कहा, “याचिकाकर्ता के मानिवाधिकारों का घोर उल्लंघन हुआ है। उसकी 10 वर्षों की सेवा के बाद उसे यह कहकर हटा दिया गया कि उसकी नियुक्ति भर्ती नियमों से हटकर थी”।न्यायालय ने कहा, “आयोग याचिकाकर्ता के मानवाधिकारों की रक्षा करने में नाकाम रहा है और ऐसे में उस पर 1,00,000 रुपए का जुर्माना लगाया जाता है”। न्यायधीश ने कहा, “इसमें कोई संदेह नहीं कि मानवाधिकार आयोग जैसी संस्था से यह अपेक्षा नहीं जा सकती थी जिसका काम लोगों के मानवाधिकारों का संरक्षण करना है”।उन्होंने कहा कि आयोग अब तक मानवाधिकारों के क्रियान्वयन में अहम प्रभावशाली भूमिका निभाता आया है लेकिन वह खुद से जुड़े एक मामले पर गौर नहीं कर सका।
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