वकीलों के एक समूह ने गुरुवार को दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से अदालत की सुनवाई हिंदी में भी करने की इजाजत दिए जाने का आग्रह किया। वकीलों का तर्क है कि हिंदी राष्ट्रीय भाषा है और उसका सम्मान किया जाना चाहिए।
ऑल इंडिया लायर्स यूनियन (एआईएलयू) की दिल्ली इकाई ने मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखकर कहा कि वकील जब हिंदी में दलील देते हैं तो न्यायाधीश उनकी बातों की ओर ध्यान नहीं देते। अंग्रेजी तो स्टेटस सिम्बल हो गया है।
एआईएलयू की दिल्ली इकाई के अध्यक्ष अशोक अग्रवाल ने कहा, “हमारे संविधान की धारा 19 ए भी हमें किसी भी भाषा में अपनी बात रखने की आजादी देती है। ऐसे में अदालतों में हिंदी में दलील देने से रोकना मौलिक अधिकारों का हनन है।”
उन्होंने कहा, “अपने देश में हिंदी सम्प्रेषण की सबसे प्रचलित भाषा है। ऐसा नहीं है कि हिंदी बोलने वालों को कानून का ज्ञान कम होता है।”
ऑल इंडिया लायर्स यूनियन (एआईएलयू) की दिल्ली इकाई ने मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखकर कहा कि वकील जब हिंदी में दलील देते हैं तो न्यायाधीश उनकी बातों की ओर ध्यान नहीं देते। अंग्रेजी तो स्टेटस सिम्बल हो गया है।
एआईएलयू की दिल्ली इकाई के अध्यक्ष अशोक अग्रवाल ने कहा, “हमारे संविधान की धारा 19 ए भी हमें किसी भी भाषा में अपनी बात रखने की आजादी देती है। ऐसे में अदालतों में हिंदी में दलील देने से रोकना मौलिक अधिकारों का हनन है।”
उन्होंने कहा, “अपने देश में हिंदी सम्प्रेषण की सबसे प्रचलित भाषा है। ऐसा नहीं है कि हिंदी बोलने वालों को कानून का ज्ञान कम होता है।”
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