पढ़ाई और जीवन में क्या अंतर है? स्कूल में आप को पाठ सिखाते हैं और फिर परीक्षा लेते हैं. जीवन में पहले परीक्षा होती है और फिर सबक सिखने को मिलता है. - टॉम बोडेट

Friday, June 12, 2009

जैनों को अल्पसंख्यक का दर्जा किस लिए?

सुप्रीम कोर्ट ने अपनी एक सुनवाई में स्पष्ट किया है कि जैन धार्मिक अल्पसंख्यक नही है वह तो हिंदू धर्म का ही एक भाग है महाराष्ट्र में जैनों को दिये गये अल्पसंख्यक का दर्जा विरोधाभासी है। यह मुंबई हाई कोर्ट में दायर की गई एक जनहित याचिका में बताया गया है।
फुले आंबेडक र शाहु टीचर्स एसोशिएशन और अन्य द्वारा दायर की गई जनहित याचिका एक शैक्षाणिक संस्था को दिये गये अल्पसंख्यक दर्जे के लिए है। इस शैक्षणिक संस्था ने जैन संस्था के रुप में मान्यता देकर अल्पसंख्यक का दर्जा दिया है। जस्टिस जे एन पटेल और मृदुला भारकर की खंडपीठ के सामने यह पिटिशन सुनवाई के लिए आई तभी केन्द्र सरकार ने अपना सौगंधनामा पेश किया था, लेकिन उसे रेकार्ड में नही लिया गया दूसरी ओर राज्य सरकार ने प्रपत्र पेश करने के लिए समय मांगा था। 
इस पीटिशन में अन्य जो मुद्दे रखे गये है उन्हें मान्य रखा जाय तो राज्य की कई संस्थाओं को अल्पसंख्यक दर्जे को रद्घ किया जा सकता है सुप्रीमकोर्ट ने एक सुनवाई में कहा कि अल्पसंख्यक संस्था दर्जा मांगने वाली संस्था की स्थापना अल्पसंख्यक संस्था के रुप में ही होनी चाहिए लठ् एज्युकेशन सोसायटी ट्रस्ट सांगली की स्थापना बिन सांप्रदादिक संस्था के रुप में की गई थी उसके सभी समाज के लोगों को शिक्षा दी जाती थी संस्था के प्रार्थना पण से ही इस संस्था को अल्पसंख्यक संस्था के रुप में दिये गये ५० प्रतिशत अल्पसंख्यक आरक्षणे रद्द करने की मांग की गयी थी।

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