न्यायालय में मारपीट के मामले में गवाही देकर मुकर जाने वाले गवाह को दोषी करार देते हुए न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम वर्ग शहर उत्तर उदयपुर की पीठासीन अधिकारी अभिलाषा शर्मा ने तीन वर्ष के कारावास की सजा सुनाई।
प्रकरण के अनुसार सिविल न्यायाधीश (क.ख.) एवं अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट वल्लभनगर के पीठासीन अधिकारी इदुद्दीन ने खेरोदा निवासी ओमप्रकाश पुत्र रतनलाल मेघवाल के खिलाफ भादसं की धारा 193 के अपराध में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत में परिवाद पेश किया। परिवाद में बताया कि सरकार बनाम शंकरलाल प्रकरण संख्या 291/96, भादसं की धारा 427, 323 में गवाह ओमप्रकाश ने 9 सितंबर 1996 में सवा, लक्ष्मीचंद, शंकर, रमेशचंद्र, मांगीलाल द्वारा बदामीबाई के साथ 28 जनवरी, 1996 को मारपीट करने की दफा 202 जाब्ता फौजदारी का हलफनामा बयान इस अदालत में दिया। 25 सितंबर 1998 को ओमप्रकाश ने अदालत ने हलफनामा बयान दिया कि सवा, लक्ष्मीचंद, रमेशचंद्र, मांगीलाल ने खड्डे के विवाद को लेकर बदामीबाई के साथ कोई मारपीट नहीं की। इस प्रकार गवाह पूर्व में हुए बयान से बिलकुल मुकर गया। अदालत द्वारा सवाल पूछने पर गवाह ने जाहिर किया कि 9 सितंबर, 96 को जो उसने बयान लिखाया वह गलत है। अदालत ने झूठी शहादत अदा कर अलादत को गुमराह करने का प्रयास किया। अदालत ने इस मामले में दोनों पक्षों की बहस सुनने के बाद पीठासीन अधिकारी अभिलाषा शर्मा ने दिए अपने फैसले में लिखा कि न्यायालय के समक्ष मिथ्या साक्ष्य दिया जाने का अपराध संदेह से परे प्रामाणित हुआ है। न्यायालय के समक्ष यदि कोई व्यक्ति जो सत्य की घोषणा करने के लिए आबद्ध होते हुए साक्ष्य ऐसा कथन करता है जो मिथ्या हो, तो इस प्रकार का अपराध एक बहुत ही गंभीर अपराध है और इस बात का कोई महत्व नहीं है कि अभियुक्त ने इस प्रकार के मिथ्या कथन धारा 427, 323 भादसं के अपराध में दिए अथवा अन्य किसी अपराध में न्यायालय के समक्ष शपथ पत्र पर सत्य कथन करने के लिए आबद्ध होते हुए भी यदि कोई व्यक्ति जान बूझकर मिथ्या कथन करता है तो यह एक गंभीर अपराध है और ऐसे अपराधों में परिविक्षा का लाभ दियाजाता है तो इस प्रकार के मिथ्या साक्ष्य देने वाले गवाहों के हौंसलों में वृद्धि होगी। ऐसी स्थिति में परिविक्षा का लाभ दिया जाना उचित प्रतीत नहीं होता है। अपराधी ओमप्रकाश को भादसं की धारा 193 में 3 वर्ष के कारावास और एक हजार रूपए के जुर्माने से दंडित किया।
प्रकरण के अनुसार सिविल न्यायाधीश (क.ख.) एवं अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट वल्लभनगर के पीठासीन अधिकारी इदुद्दीन ने खेरोदा निवासी ओमप्रकाश पुत्र रतनलाल मेघवाल के खिलाफ भादसं की धारा 193 के अपराध में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत में परिवाद पेश किया। परिवाद में बताया कि सरकार बनाम शंकरलाल प्रकरण संख्या 291/96, भादसं की धारा 427, 323 में गवाह ओमप्रकाश ने 9 सितंबर 1996 में सवा, लक्ष्मीचंद, शंकर, रमेशचंद्र, मांगीलाल द्वारा बदामीबाई के साथ 28 जनवरी, 1996 को मारपीट करने की दफा 202 जाब्ता फौजदारी का हलफनामा बयान इस अदालत में दिया। 25 सितंबर 1998 को ओमप्रकाश ने अदालत ने हलफनामा बयान दिया कि सवा, लक्ष्मीचंद, रमेशचंद्र, मांगीलाल ने खड्डे के विवाद को लेकर बदामीबाई के साथ कोई मारपीट नहीं की। इस प्रकार गवाह पूर्व में हुए बयान से बिलकुल मुकर गया। अदालत द्वारा सवाल पूछने पर गवाह ने जाहिर किया कि 9 सितंबर, 96 को जो उसने बयान लिखाया वह गलत है। अदालत ने झूठी शहादत अदा कर अलादत को गुमराह करने का प्रयास किया। अदालत ने इस मामले में दोनों पक्षों की बहस सुनने के बाद पीठासीन अधिकारी अभिलाषा शर्मा ने दिए अपने फैसले में लिखा कि न्यायालय के समक्ष मिथ्या साक्ष्य दिया जाने का अपराध संदेह से परे प्रामाणित हुआ है। न्यायालय के समक्ष यदि कोई व्यक्ति जो सत्य की घोषणा करने के लिए आबद्ध होते हुए साक्ष्य ऐसा कथन करता है जो मिथ्या हो, तो इस प्रकार का अपराध एक बहुत ही गंभीर अपराध है और इस बात का कोई महत्व नहीं है कि अभियुक्त ने इस प्रकार के मिथ्या कथन धारा 427, 323 भादसं के अपराध में दिए अथवा अन्य किसी अपराध में न्यायालय के समक्ष शपथ पत्र पर सत्य कथन करने के लिए आबद्ध होते हुए भी यदि कोई व्यक्ति जान बूझकर मिथ्या कथन करता है तो यह एक गंभीर अपराध है और ऐसे अपराधों में परिविक्षा का लाभ दियाजाता है तो इस प्रकार के मिथ्या साक्ष्य देने वाले गवाहों के हौंसलों में वृद्धि होगी। ऐसी स्थिति में परिविक्षा का लाभ दिया जाना उचित प्रतीत नहीं होता है। अपराधी ओमप्रकाश को भादसं की धारा 193 में 3 वर्ष के कारावास और एक हजार रूपए के जुर्माने से दंडित किया।
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