विभिन्न मुद्दों पर वकीलों की हड़ताल से समय की बर्बादी पर चिंता जताते हुए प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति के जी बालकृष्णन ने आज सुझाव दिया कि वे तभी विरोध का रास्ता अख्तियार करें जब कानूनी बिरादरी में कुछ गंभीर हो जाये या वे समाज द्वारा ‘तिरस्कार' का जोखिम उठायें।
न्यायमूर्ति बालकृष्णन ने यहां उच्च न्यायालय न्यायाधीश अतिथिगृह का उद्घाटन करने के बाद कहा, ‘‘ हड़ताल से बड़ी संख्या में दिन बरबाद हो जाते हैं जो बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है। हड़ताल का रास्ता तभी अपनायें जब कानूनी बिरादरी में कुछ गंभीर हो जाये।'' उन्होंने कहा कि बार बार की हड़ताल मामलों की बढ़ती संख्या में इजाफा करते हैं क्योंकि ‘‘मामलों का निबटारा नहीं करना बहुत पीड़ादायक है। '' उन्होंने कहा कि मामलों का अधिकतम दो साल में निस्तारण किया जाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि हड़ताल करके वकील समाज या अपने पेशे के लिए अच्छा नहीं कर रहे हैं और यदि वकीलों द्वारा बार बार अदालतों का बहिष्कार होता है तो जनता द्वारा उन्हें ‘तिरस्कृत' कर दिये जाने का जोखिम है।
देशभर की अदालतों में 3.5 करोड़ से ज्यादा मामलों के लंबित होने पर चिंता जाहिर करते हुए प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि पिछले कुछ सालों में मामले दाखिल किये जाने में 28 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है।
उन्होंने कहा, ‘‘ हम इसे महत्वपूर्ण तरीके से कम करने में सफल नहीं हैं हालांकि हम चाहते हैं। देश में कुछ राज्य न्यायपालिका के प्रति पर्याप्त ध्यान नहीं देते। जब तक बड़ी संख्या में अदालतें नहीं होंगे लंबित मामले कैसे कम होंगे। ''
न्यायमूर्ति बालकृष्णन ने यहां उच्च न्यायालय न्यायाधीश अतिथिगृह का उद्घाटन करने के बाद कहा, ‘‘ हड़ताल से बड़ी संख्या में दिन बरबाद हो जाते हैं जो बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है। हड़ताल का रास्ता तभी अपनायें जब कानूनी बिरादरी में कुछ गंभीर हो जाये।'' उन्होंने कहा कि बार बार की हड़ताल मामलों की बढ़ती संख्या में इजाफा करते हैं क्योंकि ‘‘मामलों का निबटारा नहीं करना बहुत पीड़ादायक है। '' उन्होंने कहा कि मामलों का अधिकतम दो साल में निस्तारण किया जाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि हड़ताल करके वकील समाज या अपने पेशे के लिए अच्छा नहीं कर रहे हैं और यदि वकीलों द्वारा बार बार अदालतों का बहिष्कार होता है तो जनता द्वारा उन्हें ‘तिरस्कृत' कर दिये जाने का जोखिम है।
देशभर की अदालतों में 3.5 करोड़ से ज्यादा मामलों के लंबित होने पर चिंता जाहिर करते हुए प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि पिछले कुछ सालों में मामले दाखिल किये जाने में 28 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है।
उन्होंने कहा, ‘‘ हम इसे महत्वपूर्ण तरीके से कम करने में सफल नहीं हैं हालांकि हम चाहते हैं। देश में कुछ राज्य न्यायपालिका के प्रति पर्याप्त ध्यान नहीं देते। जब तक बड़ी संख्या में अदालतें नहीं होंगे लंबित मामले कैसे कम होंगे। ''
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