पढ़ाई और जीवन में क्या अंतर है? स्कूल में आप को पाठ सिखाते हैं और फिर परीक्षा लेते हैं. जीवन में पहले परीक्षा होती है और फिर सबक सिखने को मिलता है. - टॉम बोडेट

Saturday, July 11, 2009

बलात्कार के लिए गुप्तांग पर चोट होना आवश्यक नहीं -उच्चतम न्यायालय


भारत की सर्वोच्च अदालत उच्चतम न्यायालय (सुप्रीम कोर्ट) ने कहा है कि पीड़ित के गुप्तांग पर कोई चोट नहीं होने के बावजूद बलात्कार (रेप) के आरोपी को दोषी ठहराया जा सकता है, क्योंकि ऐसा न होने का मतलब यह नहीं है कि आपसी सहमति से यौन संबंध बनाया गया। 
जस्टिस वी. एस. सिरपुरकर और जस्टिस आर. एम. लोढ़ा की बेंच ने कहा कि रेप साबित करने वाले साक्ष्य बलात्कार के हर मामले में न्यायिक विश्वसनीयता का अहम घटक नहीं है और न ही पीड़ित के गुप्तांग पर चोट के निशान न होने को उसकी सहमति के तौर पर समझा सकता है। बेंच ने दोषी राजेंद्र उर्फ पप्पू की दलीलों को खारिज करते हुए यह आदेश दिया। उसने दावा किया था कि पीड़ित के गुप्तांग पर चोट के निशान के न पाए जाने से संकेत मिलता है कि उसने यौन संबंध के लिए सहमति दी और बलात्कार के आरोप की पीड़िता के बयान के अतिरिक्त किसी अन्य साक्ष्य से पुष्टि नहीं की गई। 

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि रेप के मामले में बिना पुष्टि के भी सिर्फ पीड़ित के बयान आधार पर आरोपों पर भरोसा किया जा सकता है क्योंकि शायद ही कोई स्वाभिमानी भारतीय महिला किसी व्यक्ति पर अपना बलात्कार करने का आरोप लगाएगी। 

शीर्ष अदालत ने कहा कि भारतीय संस्कृति के मामले में एक महिला पीड़ित यौन शोषण को चुपचाप सह सकती हैं, लेकिन किसी को गलत तरीके से फंसा नहीं सकती है। बलात्कार का कोई भी बयान किसी महिला के लिए बेहद अपमानजनक अनुभव होता है और जब तक वह यौन अपराध का शिकार नहीं हुई है, वह असली अपराधी के अलावा किसी पर दोषारोपण नहीं करेगी।

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