राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल के भाई जी एन पाटिल को राहत देते हुए बंबई उच्च न्यायालय ने एक कांग्रेस नेता की हत्या के मामले उन्हें आरोपी बनाने की याचिका आज खारिज कर दी।
याचिका मृतक की पत्नी रजनी पाटिल ने दायर की थी। उत्तरी महाराष्ट्र के जलगांव के कांग्रेस नेता विश्राम पाटिल की हत्या हो गयी थी और मृतक की पत्नी ने आरोप लगाया था कि उसके पति की हत्या के पीछे जीएन पाटिल का हाथ है।
रजनी के वकील महेश जेठमलानी ने आरोप लगाया कि साक्ष्य होने के बावजूद जीएन पाटिल को उनके राजनैतिक संबंधों के कारण आरोपी नहीं बनाया गया है।
उन्होंने आरोप लगाया कि पुलिस के रिकार्ड के अनुसार हत्या से पूर्व जीएन पाटिल की राजू माली के साथ टेलीफोन पर बातचीत हुई थी। 21 सितंबर 2005 को विश्राम की हत्या के मामले में माली को गिरफ्तार किया गया था।
मुख्य न्यायाधीश स्वतंत्र कुमार और न्यायमूर्ति धनंजय चंद्रचूड़ की खंडपीठ ने कहा कि हमने रिकार्ड की जांच की है। वारदात के समय या इसके ठीक पहले आरोपी के मोबाइल फोन से दो अभियुक्तों (जी एन पाटिल और उल्हास पाटिल) के बीच एक भी काल नहीं की गयी।
न्यायाधीशों ने कहा, ‘‘हम यह नहीं कह सकते कि सीबीआई की जांच अन्यायपूर्ण या अनुचित या जांच एजेंसी ने किसी दुर्भावना, पक्षपात के साथ वैधानिक विशेषाधिकार का उपयोग किया है, जिसके तहत अदालत को मामले में हस्तक्षेप करना पड़े।''
याचिका मृतक की पत्नी रजनी पाटिल ने दायर की थी। उत्तरी महाराष्ट्र के जलगांव के कांग्रेस नेता विश्राम पाटिल की हत्या हो गयी थी और मृतक की पत्नी ने आरोप लगाया था कि उसके पति की हत्या के पीछे जीएन पाटिल का हाथ है।
रजनी के वकील महेश जेठमलानी ने आरोप लगाया कि साक्ष्य होने के बावजूद जीएन पाटिल को उनके राजनैतिक संबंधों के कारण आरोपी नहीं बनाया गया है।
उन्होंने आरोप लगाया कि पुलिस के रिकार्ड के अनुसार हत्या से पूर्व जीएन पाटिल की राजू माली के साथ टेलीफोन पर बातचीत हुई थी। 21 सितंबर 2005 को विश्राम की हत्या के मामले में माली को गिरफ्तार किया गया था।
मुख्य न्यायाधीश स्वतंत्र कुमार और न्यायमूर्ति धनंजय चंद्रचूड़ की खंडपीठ ने कहा कि हमने रिकार्ड की जांच की है। वारदात के समय या इसके ठीक पहले आरोपी के मोबाइल फोन से दो अभियुक्तों (जी एन पाटिल और उल्हास पाटिल) के बीच एक भी काल नहीं की गयी।
न्यायाधीशों ने कहा, ‘‘हम यह नहीं कह सकते कि सीबीआई की जांच अन्यायपूर्ण या अनुचित या जांच एजेंसी ने किसी दुर्भावना, पक्षपात के साथ वैधानिक विशेषाधिकार का उपयोग किया है, जिसके तहत अदालत को मामले में हस्तक्षेप करना पड़े।''
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