पढ़ाई और जीवन में क्या अंतर है? स्कूल में आप को पाठ सिखाते हैं और फिर परीक्षा लेते हैं. जीवन में पहले परीक्षा होती है और फिर सबक सिखने को मिलता है. - टॉम बोडेट

Friday, July 17, 2009

मुस्लिम अल्पसंख्यक हैं अथवा नहीं मुद्दे पर पेश अर्जी निरस्त।


इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने आबादी के हिसाब से उत्तर प्रदेश में मुस्लिम अल्पसंख्यक हैं या नहीं, मुद्दे पर सुनवाई का मौका दिये जाने की मांग में दाखिल अधिवक्ता समन्वय समिति के सचिव आरके ओझा की अर्जी को अपोषणीय मानते हुए खारिज कर दिया है। कोर्ट ने कहा है कि विधि प्रश्न के अलावा प्रश्नगत मामले में तथ्यात्मक प्रश्न भी शामिल है। साथ ही अर्जीदाता अपील या याचिका के किसी पक्ष का न तो समर्थन कर रहा है और न ही विरोध। वह निर्णय में उठाये गये कुछ मुद्दों पर पक्ष रखना चाहता है। अर्जीदाता को सुनवाई का अवसर दिये जाने का औचित्य नहीं है। न्यायालय ने कहा कि अर्जीदाता चाहे तो स्वयं के मुद्दों को कानूनी प्रक्रिया के तहत उचित फोरम के समक्ष अलग से उठा सकता है। 

यह आदेश न्यायमूर्ति एसआर आलम तथा न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल की खण्ड पीठ ने उप्र राज्य व अन्य बनाम प्रबन्ध समिति व अन्य की तरफ से विशेष अपील में दाखिल अन्तर्हस्तक्षेपी अर्जी को निरस्त करते हुए दिया है। अर्जीदाता का कहना था कि आबादी के हिसाब से उप्र में मुस्लिम अल्पसंख्यक नहीं हैं और धार्मिक संस्था के रूप में राज्य अनुदान पाने का हक नहीं है। कोर्ट में कहा गया कि ये मुद्दे याचिका में नहीं थे। गौरतलब है कि न्यायमूर्ति एसएन श्रीवास्तव ने आबादी के हिसाब से मुस्लिमों को अल्पसंख्यक न मानने का आदेश दिया जिसे अपीलों में चुनौती दी गयी है। एकल पीठ का कहना था कि प्रदेश में मुस्लिम आबादी, हिन्दू कहे जाने वाले 100 से अधिक सम्प्रदायों की एकल तुलना में अधिक है। 22 फीसदी से अधिक आबादी को अल्पसंख्यक नहीं माना जा सकता।

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