समलैंगिक संबंधों के संदर्भ में दिल्ली हाईकोर्ट ने आज एक अहम फैसला सुनाते हुए कहा है कि समलैंगिकता अपराध नहीं है। मुख्य न्यायधीश ए. पी. शाह ने वर्ष 2001 में नाज फाउंडेशन की ओर से दायर एक याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि आईपीसी की धारा 377 भारतीय संविधान के तहत नागरिकों को प्रदत्त मौलिक अधिकारों का हनन है। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में साफ तौर पर कहा है कि 18 वर्ष से अधिक उम्र में समान लिंग के साथ भी सहमति से संबंध बनाना अपराध नहीं है। चीफ जस्टिस ने अपने फैसले में पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय जवाहर लाल नेहरू के 50 के दशक में दिए गए एक भाषण का भी हवाला दिया, जिसमें नेहरू जी ने कहा था कि भारतीय समाज को खुद में समाहित करने वाला होना चाहिए।
न्यायालय ने कहा, "हम आईपीसी की धारा 377 को उस हद तक संविधान के अनुच्छेद 14, 21 और 15 के तहत दिये मूल अधिकारों का उल्लंघन करार देते हैं जिस हद तक ये निजी स्थान में वयस्कों के बीच आपसी सहमति से बने संबंधों को आपराधिक ठहराती है"। न्यायाधीश अजीत प्रकाश शाह और न्यायाधीश एस मुरलीधर ने कहा कि यदि आईपीसी की धारा 377 में बदलाव नहीं किया जाता तो ये संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन होगा जिसके तहत सभी नागरिकों को जीवन का समान अधिकार और कानून के समक्ष बराबरी का दर्जा प्राप्त है। न्यायालय ने कहा कि किसी भी तरह का भेदभाव समानता के अधिकार का ठीक उलटा है. यद्यपि न्यायालय ने स्पष्ट किया कि बिना सहमति के या फिर अवयस्कों के साथ इस तरह के संबंध आईपीसी की धारा 377 के तहत आपराधिक माने जायेंगे. न्यायालय ने 105 पन्नों के अपने निर्णय में आगे कहा है कि ये निर्णय तब तक मान्य रहेगा जब तक संसद कानून में बदलाव नहीं करती है।
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