वर्ष 1984 के दंगे के दौरान परिवार के तीन लोगों को घायल कर लूटपाट करने के एक मामले में तीसहजारी कोर्ट स्थित अतिरिक्त जिला जज सुरेंद्र एस. राठी ने दोषी मंगल सेन, बृजमोहन वर्मा व भगत सिंह को हत्या का प्रयास, दंगा भड़काने व लूट के मामले में उम्रकैद व 6.20-6.20 लाख जुर्माने की सजा सुनाई है। अदालत ने पीड़ितों के साथ हुई घटना पर खेद जताते हुए कहा कि जुर्माने की राशि में से 18 लाख रुपये पीड़ितों को दिए जाएंगे।ज्ञात हो कि 22 अगस्त को अदालत ने तीनों आरोपियों को दोषी करार दिया था। यह पहला मामला है जब अदालत ने इस दंगे के किसी ऐसे मामले में सजा सुनाई है जिसके पीडि़त जिंदा हैं। उधर, दोषियों के परिजनों ने फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती देने की बात कही है। दंगे में घायल हुए दोनों भाइयों ने अदालत के फैसले पर संतुष्टि जताई। सरकारी वकील इरफान अहमद भी फैसले से खुश दिखे। फैसला सुनाते हुए अदालत ने कहा कि हमारे समाज में सहनशक्ति खत्म होती जा रही है। 1984 के दंगों के बाद यह खतरनाक ट्रेंड विस्फोटक होता जा रहा है और समय-समय पर सिर उठाता रहता है। कोर्ट ने कहा कि इस मामले में सबसे दुखदायक तथ्य यह है कि जिन आरोपियों ने पीड़ितों को घायल किया, उनको लूटा और उनका घर का जला दिया वह उनके पड़ोसी थे। दुख के ऐसे समय में उनकी सहायता करने के बजाय आरोपी खुद दंगे का हिस्सा बन गए। समय आ गया है कि आम आदमी सोचे कि क्यों ऐसे अपराध हो रहे है और पीडि़तों की जिंदगी तबाह की जा रही है। इस बात पर ध्यान दिया जाना चाहिए कि इस तरह की हरकत भविष्य में न दोहराई जाए। अदालत ने दंगों के दौरान पुलिस व सरकार की भूमिका पर भी खेद व्यक्त किया। कोर्ट ने कहा कि भावुकता के नाम पर बिना दिमाग का प्रयोग किए गए इस तरह के अपराध के मामलों में कोर्ट की जिम्मेदारी बनती है कि वह ऐसी सजा दे जो समाज में सही संदेश दे।
अदालत ने पुलिस के खिलाफ सख्त टिप्पणी की, अदालत ने कहा कि पुलिस ने इस मामले में जिस तरह अपना रवैया दिखाया है, उसके बाद इतिहास उसे कभी माफ नहीं करेगा। सजा पर बहस के दौरान बचाव पक्ष की तरफ से दलील दी गई थी कि तीनों आरोपियों के बीवी-बच्चे हैं और उन पर परिवार की जिम्मेदारी है। मंगल सेन दिल का मरीज है जबकि बृजमोहन को टीबी है। वहीं सरकारी वकील ने अधिकतम सजा की मांग करते हुए कहा कि यह सोची समझी साजिश थी। पीडि़तों की पूरी जिंदगी तबाह हो गई इसलिए उनको मुआवजा भी दिया जाना चाहिए।
उल्लेखनीय है कि वर्ष 1992 में जस्टिस रंगनाथ मिश्रा आयोग के सामने जोगेंद्र सिंह ने एक हलफनामा दायर किया था। इसके बाद दंगे के इस मामले की फिर से जांच की गई और अदालत में आरोप पत्र दायर किया गया। वर्ष 2001 में आरोपियों पर आरोप तय किए गए थे। अभियोजन पक्ष के अनुसार एक नवंबर 1984 को एक भीड़ ने जोगेंद्र सिंह के सावित्री नगर स्थित घर पर हमला कर दिया। भीड़ का नेतृत्व मंगल सेन, बृज मोहन व भगत सिंह कर रहे थे। भीड़ ने जोगेंद्र, उसके बेटे गुरविंद्र व जगमोहन को घायल कर सामान लूट लिया। अभियोजन पक्ष ने मामले में नौ गवाह पेश किए।
अदालत ने पुलिस के खिलाफ सख्त टिप्पणी की, अदालत ने कहा कि पुलिस ने इस मामले में जिस तरह अपना रवैया दिखाया है, उसके बाद इतिहास उसे कभी माफ नहीं करेगा। सजा पर बहस के दौरान बचाव पक्ष की तरफ से दलील दी गई थी कि तीनों आरोपियों के बीवी-बच्चे हैं और उन पर परिवार की जिम्मेदारी है। मंगल सेन दिल का मरीज है जबकि बृजमोहन को टीबी है। वहीं सरकारी वकील ने अधिकतम सजा की मांग करते हुए कहा कि यह सोची समझी साजिश थी। पीडि़तों की पूरी जिंदगी तबाह हो गई इसलिए उनको मुआवजा भी दिया जाना चाहिए।
उल्लेखनीय है कि वर्ष 1992 में जस्टिस रंगनाथ मिश्रा आयोग के सामने जोगेंद्र सिंह ने एक हलफनामा दायर किया था। इसके बाद दंगे के इस मामले की फिर से जांच की गई और अदालत में आरोप पत्र दायर किया गया। वर्ष 2001 में आरोपियों पर आरोप तय किए गए थे। अभियोजन पक्ष के अनुसार एक नवंबर 1984 को एक भीड़ ने जोगेंद्र सिंह के सावित्री नगर स्थित घर पर हमला कर दिया। भीड़ का नेतृत्व मंगल सेन, बृज मोहन व भगत सिंह कर रहे थे। भीड़ ने जोगेंद्र, उसके बेटे गुरविंद्र व जगमोहन को घायल कर सामान लूट लिया। अभियोजन पक्ष ने मामले में नौ गवाह पेश किए।
0 टिप्पणियाँ:
Post a Comment