पढ़ाई और जीवन में क्या अंतर है? स्कूल में आप को पाठ सिखाते हैं और फिर परीक्षा लेते हैं. जीवन में पहले परीक्षा होती है और फिर सबक सिखने को मिलता है. - टॉम बोडेट

Tuesday, August 25, 2009

लाभ के पद का कानून संवैधानिकः सुप्रीमकोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को लाभ के पद के कानून में किए गए एक संशोधन को बरकरार रखा है। इस संशोधन में कुछ पदों को इस कानून से मुक्त रखने की बात कही गई थी। तीन साल पहले समाजवादी पार्टी की सांसद जया बच्चन को अयोग्य ठहराए जाने के बाद उठे विवाद के बीच इस कानून को लाया गया था। 

चीफ जस्टिस के. जी. बालाकृष्णन की बेंच ने कहा कि संसद ने पार्लियामेंट (प्रिवेंशन ऑफ डिस्क्वॉलिफिकेशन) अमेंडमेंट ऐक्ट लाकर अपने अधिकार क्षेत्र का ही इस्तेमाल किया है। संसद यह तय कर सकती है कि किस पद को लाभ का पद नहीं माना जाए। 

अदालत ने यह आदेश गुजरात बेस्ड एनजीओ कंस्यूमर एजुकेशन रिसर्च सोसायटी की जनहित याचिका पर दिया। इसमें यूपीए सरकार द्वारा लाए गए विवादित संशोधन को चुनौती दी गई थी। इसमें कुछ पदों को लाभ के पद की श्रेणी से बाहर किया गया था। 

तब इस संशोधन को लेकर इसलिए विवाद उठा था क्योंकि जिन पदों को इस कानून से अलग रखने की मांग की गई थी, उसमें राष्ट्रीय परामर्श परिषद का अध्यक्ष पद भी था, जो तब सोनिया गांधी संभाल रही थीं। हालांकि सोनिया ने आयोग्य करार दिए जाने से बचने के लिए सांसद के तौर पर और इस पद से इस्तीफा दे दिया था और रायबरेली संसदीय क्षेत्र से दोबारा चुनाव लड़ा था। 

तृणमूल कांग्रेस के सांसद दिनेश त्रिवेदी और एनजीओ द्वारा दायर दो अलग-अलग याचिकाओं में लाभ के पद पर संसद के संशोधन अधिनियम को यह आरोप लगाते हुए चुनौती दी गई है कि यह केवल संसद के 40 मौजूदा सदस्यों को बचाने के लिए पूर्वव्यापी प्रभावों से पारित किया गया था।

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