सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा है कि गर्भपात में मां की सहमति अनिवार्य होने का कानून मंदबुद्धि महिला के मामले में भी लागू होगा। यानी मंदबुद्धि महिला का गर्भपात भी उसकी सहमति के बगैर नहीं कराया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के दूरगामी परिणाम होंगे। मुख्य न्यायाधीश के.जी. बालाकृष्णन, न्यायमूर्ति पी. सत्शिवम व न्यायमूर्ति बी.एस. चौहान की पीठ ने यह फैसला चंडीगड़ की दुष्कर्म पीड़ित मंदबुद्धि अनाथ युवती के गर्भपात की अनुमति देने वाले पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के फैसले को खारिज करते हुए सुनाया है। कोर्ट ने कहा कि भारतीय कानून सिर्फ कुछ परिस्थितियों में ही गर्भपात की अनुमति देता है। मेडिकल टर्मिनेशन आफ प्रेग्नेंसी [एमटीपी] एक्ट 1971 सशर्त 'गर्भपात का अधिकार' देता है, जिसकी सामान्य परिस्थितियों में मनाही है। कोर्ट ने कहा कि महिला को मिला जन्म देने का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत आता है। इस अधिकार में जन्म देने की इच्छा या जन्म न देने की इच्छा, दोनों शामिल हैं। यह महिला की व्यक्तिगत आजादी का मामला है। उसकी निजता और गरिमा का सम्मान किया जाना चाहिए। जन्म देने के अधिकार पर उसी तरह कोई रोक नहीं हो सकती जैसे महिला को शारीरिक संबंध बनाने से मना करने या गर्भनिरोधक उपाय के उपयोग की बाध्यता से मना करने का अधिकार प्राप्त है। महिलाएं परिवार नियोजन के उपाय अपनाने के लिए भी स्वतंत्र हैं। अंतत: निष्कर्ष यही है कि महिला को प्राप्त जन्म देने के अधिकार में गर्भधारण करना, जन्म देना और बच्चे का पालन-पोषण करने का अधिकार शामिल है।
एमटीपी कानून सशर्त गर्भपात की अनुमति देता है। कानून की धारा 3 [4][ए] में कहा गया है कि अगर कोई महिला 18 वर्ष से कम आयु की हो या फिर वह मानसिक रोगी हो तो उसका गर्भपात संरक्षक की लिखित अनुमति के बगैर नहीं होगा। इस परिस्थिति के अलावा मां की सहमति के बगैर गर्भपात नहीं किया जा सकता है। सिर्फ महिला की जान को खतरे की स्थिति में रजिस्टर्ड प्रैक्टिशनर्स को तत्काल गर्भपात करने का अधिकार प्राप्त है। कानून में मंदबुद्धि और मानसिक रोगी में अंतर बताया गया है। मानसिक रोगी की तरफ से संरक्षक गर्भपात की अनुमति दे सकता है, जबकि मंदबुद्धि की ओर से नहीं। कोर्ट ने कहा है कि मां की अनिवार्य सहमति के कानून में ढिलाई की अनुमति नहीं दी जा सकती क्योंकि इससे जन्म देने के अधिकार पर रोक लगती है। जिस समाज में लिंग परीक्षण कर गर्भपात कराने की बुराई व्याप्त हो वहां कानून में ढिलाई की अनुमति देने से उसका दुरुपयोग हो सकता है। इस तथ्य को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। सरकारी संरक्षण गृह में दुष्कर्म की शिकार मंदबुद्धि युवती के मामले में सुनाए गए फैसले में कोर्ट ने कहा है कि सरकारी कल्याण गृहों का प्रशासन सुधारने की जरूरत के संदर्भ में यह मामला हम सब को सतर्क करता है।
सम्पूर्ण निर्णय
एमटीपी कानून सशर्त गर्भपात की अनुमति देता है। कानून की धारा 3 [4][ए] में कहा गया है कि अगर कोई महिला 18 वर्ष से कम आयु की हो या फिर वह मानसिक रोगी हो तो उसका गर्भपात संरक्षक की लिखित अनुमति के बगैर नहीं होगा। इस परिस्थिति के अलावा मां की सहमति के बगैर गर्भपात नहीं किया जा सकता है। सिर्फ महिला की जान को खतरे की स्थिति में रजिस्टर्ड प्रैक्टिशनर्स को तत्काल गर्भपात करने का अधिकार प्राप्त है। कानून में मंदबुद्धि और मानसिक रोगी में अंतर बताया गया है। मानसिक रोगी की तरफ से संरक्षक गर्भपात की अनुमति दे सकता है, जबकि मंदबुद्धि की ओर से नहीं। कोर्ट ने कहा है कि मां की अनिवार्य सहमति के कानून में ढिलाई की अनुमति नहीं दी जा सकती क्योंकि इससे जन्म देने के अधिकार पर रोक लगती है। जिस समाज में लिंग परीक्षण कर गर्भपात कराने की बुराई व्याप्त हो वहां कानून में ढिलाई की अनुमति देने से उसका दुरुपयोग हो सकता है। इस तथ्य को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। सरकारी संरक्षण गृह में दुष्कर्म की शिकार मंदबुद्धि युवती के मामले में सुनाए गए फैसले में कोर्ट ने कहा है कि सरकारी कल्याण गृहों का प्रशासन सुधारने की जरूरत के संदर्भ में यह मामला हम सब को सतर्क करता है।
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