इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश प्रांतीय लोक सेवा (प्रारंभिक) परीक्षा-2007 के परिणामों को रद्द कर दिया है और राज्य लोक सेवा आयोग से एक महीने के अंदर फिर से परीक्षा आयोजित करने को कहा है।
न्यायाधीश अमिताव लाल और उमानाथ सिंह की खंडपीठ ने बुधवार को धनंजय सिंह द्वारा दायर रिट याचिका को अनुमति देते हुए यह आदेश जारी किया। सिंह 30 सितंबर 2007 को आयोजित परीक्षा में शामिल हुए थे जिसका परिणाम इस वर्ष एक फरवरी को घोषित किया गया था।
याचिकाकर्ता ने कहा कि भले ही वह सफल नहीं हुए लेकिन जिन उम्मीदवारों को उनसे कम अंक प्राप्त हुए वह सफल घोषित किए गए क्योंकि सामान्य श्रेणी, ओबीसी, एससी एवं एसटी के लिए अलग-अलग कटऑफ निर्धारित किया गया है।
उनके वकील संतोष कुमार श्रीवास्तव ने कहा कि प्रारंभिक परीक्षा मुख्य परीक्षा का हिस्सा नहीं है बल्कि मुख्य परीक्षा के लिए उपस्थित होने वाले छात्रों की पात्रता निर्धारित करने के लिए महज एक स्क्रीनिंग टेस्ट है और इस प्रकार प्रारंभिक परीक्षा में आरक्षण नहीं दिया जा सकता। उन्होंने कहा, ‘‘किसी उम्मीदवार का चयन पूरी तरह मुख्य परीक्षा में प्राप्त अंकों के आधार पर होता है और उम्मीदवारों की योग्यता का पता लगाने के लिए प्रारंभिक परीक्षा में प्राप्त अंकों को नहीं गिना जाता है।’’ अदालत ने कहा, ‘‘आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवारों को प्रारंभिक स्तर पर अंक को कम करना संवैधानिक जनादेश नहीं है। यह सिर्फ पदोन्नति के लिए उचित है। जो लोग मूल योग्यता रखते हैं वहीं मुख्य परीक्षा में उपस्थित होने के हकदार हैं।’’
न्यायाधीश अमिताव लाल और उमानाथ सिंह की खंडपीठ ने बुधवार को धनंजय सिंह द्वारा दायर रिट याचिका को अनुमति देते हुए यह आदेश जारी किया। सिंह 30 सितंबर 2007 को आयोजित परीक्षा में शामिल हुए थे जिसका परिणाम इस वर्ष एक फरवरी को घोषित किया गया था।
याचिकाकर्ता ने कहा कि भले ही वह सफल नहीं हुए लेकिन जिन उम्मीदवारों को उनसे कम अंक प्राप्त हुए वह सफल घोषित किए गए क्योंकि सामान्य श्रेणी, ओबीसी, एससी एवं एसटी के लिए अलग-अलग कटऑफ निर्धारित किया गया है।
उनके वकील संतोष कुमार श्रीवास्तव ने कहा कि प्रारंभिक परीक्षा मुख्य परीक्षा का हिस्सा नहीं है बल्कि मुख्य परीक्षा के लिए उपस्थित होने वाले छात्रों की पात्रता निर्धारित करने के लिए महज एक स्क्रीनिंग टेस्ट है और इस प्रकार प्रारंभिक परीक्षा में आरक्षण नहीं दिया जा सकता। उन्होंने कहा, ‘‘किसी उम्मीदवार का चयन पूरी तरह मुख्य परीक्षा में प्राप्त अंकों के आधार पर होता है और उम्मीदवारों की योग्यता का पता लगाने के लिए प्रारंभिक परीक्षा में प्राप्त अंकों को नहीं गिना जाता है।’’ अदालत ने कहा, ‘‘आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवारों को प्रारंभिक स्तर पर अंक को कम करना संवैधानिक जनादेश नहीं है। यह सिर्फ पदोन्नति के लिए उचित है। जो लोग मूल योग्यता रखते हैं वहीं मुख्य परीक्षा में उपस्थित होने के हकदार हैं।’’
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