उत्तर प्रदेश सरकार को मुख्यमंत्री मायावती की मूर्तियां लगाए जाने में कोई हर्ज नजर नहीं आता। मायावती की मूर्तियों को जायज ठहराते हुए प्रदेश सरकार ने कहा कि यह प्रकरण सुप्रीम कोर्ट के क्षेत्राधिकार से बाहर है। वजह यह कि मूर्तियां लगाने का बजट विधानसभा से पारित हुआ है। इसलिए सुप्रीम कोर्ट को इसमें दखल नहीं देना चाहिए। प्रदेश सरकार की दलील है कि मायावती की मूर्तियां लोगों के लिए प्रेरणा बनेंगी।
प्रदेश में पार्को और मूर्तियों के निर्माण पर धन की बर्बादी का आरोप लगाने वाली याचिका के जवाब में राज्य सरकार ने शुक्रवार को सुप्रीमकोर्ट में हलफनामा दाखिल किया और याचिका को खारिज करने की मांग की। इस मामले पर सुप्रीमकोर्ट सोमवार को सुनवाई करेगा। राज्य सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 212 का हवाला देते हुए कहा है कि विधानसभा ने विभिन्न परियोजनाओं के निर्माण के लिए बजट पास किया है। सदन से पास हुए बजट प्रावधानों को याचिका के माध्यम से अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती है और न ही अदालत उन मुददों पर विचार कर सकती है, जो विधानसभा के विशेष क्षेत्राधिकार में आते हों।
राज्य सरकार का कहना है कि मूर्तियों,पार्को, स्मारकों और स्थलों का निर्माण जनहित में है। इससे समाज के गरीब और निचले तबके को प्रेरणा मिलती है। इसे सार्वजनिक धन का दुरूपयोग नहीं कहा जा सकता। मुख्यमंत्री के महिमा मंडन करने के लिए उनकी मूर्तियां नहीं लगाई गई हैं। प्रदेश सरकार ने तर्क दिया है कि समाज सुधारक कांशीराम ने भी यही इच्छा जताई थी कि जहां उनकी मूर्तियां लगें उसके साथ ही उनकी एकमात्र राजनैतिक उत्तराधिकारी मायावती की भी मूर्ति लगाई जाए। राज्य सरकार ने कहा है कि मूर्तियां लगाने का निर्णय विधानसभा में चर्चा के बाद किया गया है।
राज्य सरकार ने यह भी कहा है कि चुनकर आए विधायकों ने सदन में अपने क्षेत्र की जनता की भावनाएं व्यक्त करते हुए लखनऊ में कांशीराम के साथ मायावती की मूर्ति लगाने की मांग की थी। प्रदेश सरकार ने कहा कि जीवित लोगों की मूर्तियां कई जगह लगी हैं। प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के चित्र हर सरकारी विभाग में लगे होते हैं। फोटो और मूर्ति में किसी तरह का अंतर नहीं किया जा सकता है। राज्य सरकार ने विकास परियोजनाओं के लिए पास बजट का ब्योरा भी हलफनामे में दिया है।
प्रदेश में पार्को और मूर्तियों के निर्माण पर धन की बर्बादी का आरोप लगाने वाली याचिका के जवाब में राज्य सरकार ने शुक्रवार को सुप्रीमकोर्ट में हलफनामा दाखिल किया और याचिका को खारिज करने की मांग की। इस मामले पर सुप्रीमकोर्ट सोमवार को सुनवाई करेगा। राज्य सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 212 का हवाला देते हुए कहा है कि विधानसभा ने विभिन्न परियोजनाओं के निर्माण के लिए बजट पास किया है। सदन से पास हुए बजट प्रावधानों को याचिका के माध्यम से अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती है और न ही अदालत उन मुददों पर विचार कर सकती है, जो विधानसभा के विशेष क्षेत्राधिकार में आते हों।
राज्य सरकार का कहना है कि मूर्तियों,पार्को, स्मारकों और स्थलों का निर्माण जनहित में है। इससे समाज के गरीब और निचले तबके को प्रेरणा मिलती है। इसे सार्वजनिक धन का दुरूपयोग नहीं कहा जा सकता। मुख्यमंत्री के महिमा मंडन करने के लिए उनकी मूर्तियां नहीं लगाई गई हैं। प्रदेश सरकार ने तर्क दिया है कि समाज सुधारक कांशीराम ने भी यही इच्छा जताई थी कि जहां उनकी मूर्तियां लगें उसके साथ ही उनकी एकमात्र राजनैतिक उत्तराधिकारी मायावती की भी मूर्ति लगाई जाए। राज्य सरकार ने कहा है कि मूर्तियां लगाने का निर्णय विधानसभा में चर्चा के बाद किया गया है।
राज्य सरकार ने यह भी कहा है कि चुनकर आए विधायकों ने सदन में अपने क्षेत्र की जनता की भावनाएं व्यक्त करते हुए लखनऊ में कांशीराम के साथ मायावती की मूर्ति लगाने की मांग की थी। प्रदेश सरकार ने कहा कि जीवित लोगों की मूर्तियां कई जगह लगी हैं। प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के चित्र हर सरकारी विभाग में लगे होते हैं। फोटो और मूर्ति में किसी तरह का अंतर नहीं किया जा सकता है। राज्य सरकार ने विकास परियोजनाओं के लिए पास बजट का ब्योरा भी हलफनामे में दिया है।
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