राजस्थान हाईकोर्ट ने आमेर महल में आगामी आदेश तक व्यावसायिक गतिविधियों पर रोक लगा दी है। केवल प्रसाद व पूजा सामग्री विक्रेताओं और जलपान की दुकानों को इससे मुक्त रखा गया है। न्यायालय ने महल में संरक्षण और जीर्णोद्धार कार्य कर रही आमेर विकास प्राधिकरण सोसायटी के गठन को गैरकानूनी माना है।
न्यायाधीश अशोक परिहार और न्यायाधीश जी.एस. सराफ की बेंच ने स्वप्रेरित संज्ञान और एडवोकेट नीरजा खन्ना की याचिका पर यह अंतरिम आदेश दिया। बेंच ने महल के संरक्षण व जीर्णोद्धार कार्यो के लिए केन्द्र सरकार द्वारा 30 करोड़ 61 लाख रुपए दिए जाने को आधार बनाते हुए केन्द्रीय पर्यटन सचिव से भी जवाब तलब किया है।
अदालत ने माना है कि राजस्थान पुरातत्व संरक्षण कानून के तहत राज्य सरकार संरक्षित स्मारकों के संरक्षण व जीर्णोद्धार कार्यो के लिए अपनी शक्तियां पुरातत्व निदेशक या जिला कलेक्टर स्तर के अधिकारी को दे सकती है, लेकिन किसी निजी संस्था को नहीं। हालांकि नियमों के तहत किसी विशेष उद्देश्य अथवा किसी गतिविधि के लिए कुछ शर्तो के तहत ही लाइसेंस दिया जा सकता है, लेकिन इस मामले में ऐसा नहीं हुआ।
अदालत ने कहा कि यह भी रिकॉर्ड पर आ चुका है कि जीर्णोद्धार कार्य के अलावा आमेर महल में नए सिरे से निर्माण कराया गया। वहां नए शीश महल के नाम से लग्जरी रेस्तरां बनाया गया। इसको लीज पर चलाया जा रहा है। साथ ही महल के एक बड़े हिस्से को हस्तशिल्प को बढ़ावा देने की आड़ में किराए पर दिया जाना भी गलत है। अदालत ने कहा कि पूरे प्रकरण में विशेषज्ञ कमेटी ने न्याय मित्र अभिनव शर्मा की ओर से उठाई गई इस आपत्ति को सही ठहराया है कि संरक्षण की आड़ में आमेर महल को भारी क्षति पहुंचाई गई है।
अदालत ने माना है कि राजस्थान पुरातत्व संरक्षण कानून के तहत राज्य सरकार संरक्षित स्मारकों के संरक्षण व जीर्णोद्धार कार्यो के लिए अपनी शक्तियां पुरातत्व निदेशक या जिला कलेक्टर स्तर के अधिकारी को दे सकती है, लेकिन किसी निजी संस्था को नहीं। हालांकि नियमों के तहत किसी विशेष उद्देश्य अथवा किसी गतिविधि के लिए कुछ शर्तो के तहत ही लाइसेंस दिया जा सकता है, लेकिन इस मामले में ऐसा नहीं हुआ।
अदालत ने कहा कि यह भी रिकॉर्ड पर आ चुका है कि जीर्णोद्धार कार्य के अलावा आमेर महल में नए सिरे से निर्माण कराया गया। वहां नए शीश महल के नाम से लग्जरी रेस्तरां बनाया गया। इसको लीज पर चलाया जा रहा है। साथ ही महल के एक बड़े हिस्से को हस्तशिल्प को बढ़ावा देने की आड़ में किराए पर दिया जाना भी गलत है। अदालत ने कहा कि पूरे प्रकरण में विशेषज्ञ कमेटी ने न्याय मित्र अभिनव शर्मा की ओर से उठाई गई इस आपत्ति को सही ठहराया है कि संरक्षण की आड़ में आमेर महल को भारी क्षति पहुंचाई गई है।
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