राजस्थान नगरीय विकास मंत्री की ओर से रामबाग परिसर की केवल खाली भूमि को अवाप्तशुदा बताए जाने पर दशकों से चले आ रहे विवाद में नया मोड़ आ गया है। दरअसल, डेढ़ साल पहले जेडीए के ही तत्कालीन उपायुक्त ने उच्च न्यायालय में दिए शपथ पत्र में साफ कहा था, इस परिसर में खाली भूमि के साथ कुछ और भूमि जिस पर निर्माण हैं, वह भी अवाप्तशुदा है। रामबाग परिसर की कुल 401 बीघा जमीन में से 322 बीघा आठ बिस्वा जमीन अवाप्तशुदा है। इस परिसर की अवाप्तशुदा भूमि से अतिक्रमण हटाने को लेकर उच्च न्यायालय में कुमार संजय त्यागी व अन्य की लम्बित याचिका में जेडीए के तत्कालीन उपायुक्त इन्द्र सिंह सोलंकी ने डेढ़ साल पहले शपथ पत्र दिया था कि खाली भूमि के साथ जिस भूमि पर निर्माण हैं, वह भी अवाप्तशुदा है और जेडीए इसका मालिक है।
साढ़े तीन दशक पहले अवाप्ति की प्रकिया शुरू होने के साथ निचली अदालत से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक चले मामलों में जेडीए व राज्य सरकार का यही जवाब रहा था कि पूरी 322 बीघा भूमि अवाप्त की गई है। इसके बावजूद लिलीपूल परिसर में पिछले दिनों दीवार निर्माण व तारबंदी हटाने के मामले में केवल खाली भूमि को ही अवाप्तशुदा बताया गया है।
उच्च न्यायालय में कुमार संजय त्यागी की लम्बित याचिका में पहले जेडीए ने यह जवाब दे दिया था कि भूमि पर निर्मित क्षेत्र की अवाप्ति नहीं की गई।
याचिकाकर्ता के वकील ने जवाब पर आपत्ति की तो न्यायालय ने वस्तुस्थिति स्पष्ट करने के लिए राज्य सरकार को शपथ पथ प्रस्तुत करने के आदेश दिए। इस पर जेडीए के तत्कालीन उपायुक्त इन्द्र सिंह सोलंकी ने अपने शपथ पत्र में पहले दिए जवाब को गलत स्वीकार करते हुए पूरी भूमि को अवाप्तशुदा बताया।
साढ़े तीन दशक पहले अवाप्ति की प्रकिया शुरू होने के साथ निचली अदालत से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक चले मामलों में जेडीए व राज्य सरकार का यही जवाब रहा था कि पूरी 322 बीघा भूमि अवाप्त की गई है। इसके बावजूद लिलीपूल परिसर में पिछले दिनों दीवार निर्माण व तारबंदी हटाने के मामले में केवल खाली भूमि को ही अवाप्तशुदा बताया गया है।
उच्च न्यायालय में कुमार संजय त्यागी की लम्बित याचिका में पहले जेडीए ने यह जवाब दे दिया था कि भूमि पर निर्मित क्षेत्र की अवाप्ति नहीं की गई।
याचिकाकर्ता के वकील ने जवाब पर आपत्ति की तो न्यायालय ने वस्तुस्थिति स्पष्ट करने के लिए राज्य सरकार को शपथ पथ प्रस्तुत करने के आदेश दिए। इस पर जेडीए के तत्कालीन उपायुक्त इन्द्र सिंह सोलंकी ने अपने शपथ पत्र में पहले दिए जवाब को गलत स्वीकार करते हुए पूरी भूमि को अवाप्तशुदा बताया।
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