जबलपुर हाईकोर्ट ने डीआरटी के पूर्व पीठासीन अधिकारी (जज) सीके सोलंकी की निन्दा की है। उन पर आरोप था कि जज की हैसियत से उन्होंने एक बंधक रखी गई सम्पत्ति की नीलामी कराई, जो उनके बेटे ऋषि कुमार ने खरीद ली। यह षड्यंत्र रिकवरी ऑफीसर के साथ मिलकर रचा गया था। जस्टिस अरुण मिश्रा और जस्टिस सुषमा श्रीवास्तव की युगलपीठ ने न सिर्फ जज सीके सोलंकी के इस कृत्य की निन्दा की, बल्कि तत्कालीन रिकवरी ऑफीसर (वर्तमान में रजिस्ट्रार) बीएम शर्मा के खिलाफ विभागीय कार्रवाई के आदेश दिए हैं। युगलपीठ ने नीलामी की पूरी कार्रवाई खारिज कर दी है।
इन्दौर में रहने वाले रामलाल गौंड़ व उनके पुत्र प्रदीप कुमार ने हाईकोर्ट में यह याचिका वर्ष 2002 में दायर की थी। उनका आरोप था कि प्रदीप कुमार ने अपनी इन्दौर की सम्पत्ति बैंक ऑफ बड़ौदा में गिरवी रखकर लोन लिया था। लोन की रकम समय पर न चुकाए जाने पर बैंक ने एक प्रकरण ऋण वसूली अधिकरण (डीआरटी) में दायर किया गया था। डीआरटी ने उक्त सम्पत्ति नीलाम करने की डिक्री पारित की थी।
याचिका में आरोप था कि नीलामी की डिक्री की जो कार्रवाई सितम्बर 2002 में की गई, वह पूरी तरह से फर्जी थी। इस प्रक्रिया को इस ढंग से अंजाम दिया गया, ताकि कोई अन्य व्यक्ति उसमें शामिल न हो सके और सम्पत्ति डीआरटी जज सोलंकी के बेटे ऋषि कुमार सोलंकी को मिल जाए। नीलामी में 8 लाख कीमत वाली सम्पत्ति मात्र साढ़े तीन लाख रुपए में खरीदी गई।
आवेदकों का आरोप था कि नीलाम की गई सम्पत्ति को खरीदने के लिए जो रकम चुकाई गई, वह खुद जज सीके सोलंकी की थी। आवेदकों का दावा था कि सीके सोलंकी के बेटे ऋषि कुमार सोलंकी की आय का कोई जरिया नहीं था और वो पूरी तरह से अपने पिता पर ही निर्भर थे।
आवेदक के अधिवक्ता आलोक पाठक ने वर्ष 2002 में यह याचिका दायर की, तब डीआरटी जज सोलंकी ने उनके अलावा चार अन्य वकीलों को अवमानना का नोटिस थमा दिया, ताकि मोलभाव के जरिए अवमानना की कार्रवाई से बचने के लिए वकील हाईकोर्ट से इस मामले को वापस ले सकें।
इस मामले में हाईकोर्ट बार एसोसिएशन ने भी एक याचिका हाईकोर्ट में दायर की। बार की याचिका में डीआरटी जज पर कई सनसनीखेज आरोप लगाते हुए उनके खिलाफ कार्रवाई की मांग की थी।
इस मामले पर हुई सुनवाई के बाद युगलपीठ ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि चूंकि डीआरटी जज सोलंकी जनवरी 2003 में रिटायर हो चुके हैं, इसलिए उनके खिलाफ कोई कार्रवाई के निर्देश नहीं दिए जा रहे हैं। इस पूरे मामले में उनकी भूमिका की निन्दा करते हुए युगलपीठ ने रजिस्ट्रार बीएम शर्मा के खिलाफ कार्रवाई के आदेश दिए हैं। मामले पर युगलपीठ द्वारा सुनाए गए विस्तृत आदेश की फिलहाल प्रतीक्षा है।
इन्दौर में रहने वाले रामलाल गौंड़ व उनके पुत्र प्रदीप कुमार ने हाईकोर्ट में यह याचिका वर्ष 2002 में दायर की थी। उनका आरोप था कि प्रदीप कुमार ने अपनी इन्दौर की सम्पत्ति बैंक ऑफ बड़ौदा में गिरवी रखकर लोन लिया था। लोन की रकम समय पर न चुकाए जाने पर बैंक ने एक प्रकरण ऋण वसूली अधिकरण (डीआरटी) में दायर किया गया था। डीआरटी ने उक्त सम्पत्ति नीलाम करने की डिक्री पारित की थी।
याचिका में आरोप था कि नीलामी की डिक्री की जो कार्रवाई सितम्बर 2002 में की गई, वह पूरी तरह से फर्जी थी। इस प्रक्रिया को इस ढंग से अंजाम दिया गया, ताकि कोई अन्य व्यक्ति उसमें शामिल न हो सके और सम्पत्ति डीआरटी जज सोलंकी के बेटे ऋषि कुमार सोलंकी को मिल जाए। नीलामी में 8 लाख कीमत वाली सम्पत्ति मात्र साढ़े तीन लाख रुपए में खरीदी गई।
आवेदकों का आरोप था कि नीलाम की गई सम्पत्ति को खरीदने के लिए जो रकम चुकाई गई, वह खुद जज सीके सोलंकी की थी। आवेदकों का दावा था कि सीके सोलंकी के बेटे ऋषि कुमार सोलंकी की आय का कोई जरिया नहीं था और वो पूरी तरह से अपने पिता पर ही निर्भर थे।
आवेदक के अधिवक्ता आलोक पाठक ने वर्ष 2002 में यह याचिका दायर की, तब डीआरटी जज सोलंकी ने उनके अलावा चार अन्य वकीलों को अवमानना का नोटिस थमा दिया, ताकि मोलभाव के जरिए अवमानना की कार्रवाई से बचने के लिए वकील हाईकोर्ट से इस मामले को वापस ले सकें।
इस मामले में हाईकोर्ट बार एसोसिएशन ने भी एक याचिका हाईकोर्ट में दायर की। बार की याचिका में डीआरटी जज पर कई सनसनीखेज आरोप लगाते हुए उनके खिलाफ कार्रवाई की मांग की थी।
इस मामले पर हुई सुनवाई के बाद युगलपीठ ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि चूंकि डीआरटी जज सोलंकी जनवरी 2003 में रिटायर हो चुके हैं, इसलिए उनके खिलाफ कोई कार्रवाई के निर्देश नहीं दिए जा रहे हैं। इस पूरे मामले में उनकी भूमिका की निन्दा करते हुए युगलपीठ ने रजिस्ट्रार बीएम शर्मा के खिलाफ कार्रवाई के आदेश दिए हैं। मामले पर युगलपीठ द्वारा सुनाए गए विस्तृत आदेश की फिलहाल प्रतीक्षा है।
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