सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि मुख्यमंत्रियों या मंत्रियों को संवैधानिक नियमों को नजरअंदाज कर किसी व्यक्ति को राहत देने का कोई अधिकार नहीं है। सर्वोच्च अदालत ने कहा कि अगर कोई संवैधानिक प्रावधान लागू है तो मुख्यमंत्रियों और अन्य अधिकारियों को उसका अनुसरण करना होगा, वे नियमों का उल्लंघन कर कोई आदेश जारी नहीं कर सकते।
कर्नाटक के कुछ भूस्वामियों की अपील पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति बी.एन. अग्रवाल और जी.एस. सिंघवी की पीठ ने कहा, 'मुख्यमंत्री को किसी संवैधानिक प्रावधान में हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं है। वह फाइल में ऐसी टिप्पणी और भूमि आवंटन का निर्देश कैसे दे सकते हैं।' यह अपील पर्वतम्मा और 43 दावेदारों ने दायर की है। इसमें उन्होंने अक्टूबर 1979 को उन्हें किए गए आवंटन रद करने के फैसले को चुनौती दी है। अक्टूबर 1979 में प्रखंड विकास अधिकारी [बीडीओ] ने 79 बेघर और भूमिहीन किसानों को जमीन आवंटन पत्र जारी किए थे।
इस भूमि आवंटन के संबंध में आरोप लगाए गए थे कि कुछ लोगों ने धोखाधड़ी से जमीन हासिल की है क्योंकि बीडीओ ने 22 दिसंबर 1979 को आवंटन पत्र पर हस्ताक्षर किए जबकि सरकार ने बीडीओ को हस्ताक्षर के लिए अधिकृत करने का पत्र 28 दिसंबर 1979 को जारी किया था।
कर्नाटक के कुछ भूस्वामियों की अपील पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति बी.एन. अग्रवाल और जी.एस. सिंघवी की पीठ ने कहा, 'मुख्यमंत्री को किसी संवैधानिक प्रावधान में हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं है। वह फाइल में ऐसी टिप्पणी और भूमि आवंटन का निर्देश कैसे दे सकते हैं।' यह अपील पर्वतम्मा और 43 दावेदारों ने दायर की है। इसमें उन्होंने अक्टूबर 1979 को उन्हें किए गए आवंटन रद करने के फैसले को चुनौती दी है। अक्टूबर 1979 में प्रखंड विकास अधिकारी [बीडीओ] ने 79 बेघर और भूमिहीन किसानों को जमीन आवंटन पत्र जारी किए थे।
इस भूमि आवंटन के संबंध में आरोप लगाए गए थे कि कुछ लोगों ने धोखाधड़ी से जमीन हासिल की है क्योंकि बीडीओ ने 22 दिसंबर 1979 को आवंटन पत्र पर हस्ताक्षर किए जबकि सरकार ने बीडीओ को हस्ताक्षर के लिए अधिकृत करने का पत्र 28 दिसंबर 1979 को जारी किया था।
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