सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा मुख्यमंत्री मायावती और अन्य दलित नेताओं की मूर्तियां लगाने और स्मारक बनाने पर रोक लगा दी है. अदालत ने कहा है कि करदाताओं के पैसे को इस तरह ख़र्च नहीं किया जा सकता। उत्तर प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को वचन दिया है कि वह बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक कांशीराम, मुख्यमंत्री मायावती तथा अन्य दलित नेताओं के सम्मान में बन रहे स्मारकों और पार्कों का निर्माणकार्य तत्काल रोक देगी। इन स्मारकों और पार्कों पर 2,600 करोड़ रुपये खर्च किए जा रहे हैं। जस्टिस बी एन अग्रवाल और जस्टिस आफताब आलम की सदस्यता वाली खंडपीठ ने उत्तर प्रदेश सरकार से पूछा कि वह स्मारकों आदि पर इतने भारी खर्च का औचित्य किस तरह सिद्ध कर सकती है जबकि राज्य का सकल घरेलू उत्पाद केवल दो प्रतिशत ही है। अदालत ने राज्य सरकार के इस तर्क को नहीं माना कि खर्च संवैधानिक दृष्टि से सही है क्योंकि राज्य सरकार के मंत्रिमंडल ने इसे विधिवत मंजूरी दी है। जस्टिस अग्रवाल और जस्टिस आलम ने कहा कि जनता के धन को मनमाने ढंग से खर्च नहीं किया जा सकता।
सुप्रीम कोर्ट के सख्त रुख को देखते हुए बीएसपी नेता और उत्तर प्रदेश सरकार के वकील सतीश मिश्र ने अनुरोध किया कि स्मारकों और पार्कों निर्माणकार्य को रोकने के लिए औपचारिक रूप से स्थगनादेश न दिया जाए क्योंकि सरकार स्वयं ही इसे रोक देगी और जब तक उसे अदालत की अनुमति नहीं मिल जाती, फिर से शुरू नहीं करेगी लेकिन इसके साथ ही मिश्र ने यह दावा भी किया कि स्मारकों का विरोध केवल राजनीतिक कारणों से किया जा रहा है जबकि एक ही परिवार के तीन पूर्व प्रधानमंत्रियों के स्मारक भी हजारों करोड़ रुपये खर्च करके बनाए गए हैं इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह इनकी जांच भी करेगा।
सुप्रीम कोर्ट के सख्त रुख को देखते हुए बीएसपी नेता और उत्तर प्रदेश सरकार के वकील सतीश मिश्र ने अनुरोध किया कि स्मारकों और पार्कों निर्माणकार्य को रोकने के लिए औपचारिक रूप से स्थगनादेश न दिया जाए क्योंकि सरकार स्वयं ही इसे रोक देगी और जब तक उसे अदालत की अनुमति नहीं मिल जाती, फिर से शुरू नहीं करेगी लेकिन इसके साथ ही मिश्र ने यह दावा भी किया कि स्मारकों का विरोध केवल राजनीतिक कारणों से किया जा रहा है जबकि एक ही परिवार के तीन पूर्व प्रधानमंत्रियों के स्मारक भी हजारों करोड़ रुपये खर्च करके बनाए गए हैं इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह इनकी जांच भी करेगा।
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