बच्चों की कस्टडी व तलाक के मामलों में अब दंपती को वर्षो तक भटकना नहीं पड़ेगा। सरकार वैवाहिक मुकदमे जल्दी निपटाने के लिए पारिवारिक न्यायालयों की संख्या बढ़ाने पर विचार कर रही है। कानून मंत्री वीरप्पा मोइली ने बताया कि इन मुकदमों में एक वर्ष में फैसला करने की अनिवार्यता भी लागू की जा सकती है।
इसके लिए संबंधित कानून में संशोधन करना पड़ेगा। मोइली ने कहा कि मुकदमा लड़ रहे दंपती को जल्द से जल्द इससे निजात दिलाना जरूरी है ताकि वे एक नई शुरुआत कर सकें। तलाक के मामलों को वर्षो तक लटकाने की कोई जरूरत नहीं है। यही बात बच्चों की कस्टडी के मामलों पर भी लागू होती है। इन्हें भी तय समय सीमा में ही निपटाया जाना चाहिए ताकि बच्चों के भविष्य को लेकर अनिश्चितता खत्म की जा सके।
मोइली ने कहा कि सबसे पहले शादी बचाने के प्रयास जरूरी हैं। इसके लिए पति-पत्नी में मध्यस्थता कराने वाले प्रकोष्ठ की संख्या बढ़ाने की योजना है। ये प्रकोष्ठ दंपती की काउंसिलिंग करके उन्हें साथ रहने के लिए प्रेरित करेंगे। सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ अधिवक्ता प्रिया हिंगूरानी ने कहा कि काम के लिए स्टाफ का अनुभवी होना जरूरी है।
इसके लिए संबंधित कानून में संशोधन करना पड़ेगा। मोइली ने कहा कि मुकदमा लड़ रहे दंपती को जल्द से जल्द इससे निजात दिलाना जरूरी है ताकि वे एक नई शुरुआत कर सकें। तलाक के मामलों को वर्षो तक लटकाने की कोई जरूरत नहीं है। यही बात बच्चों की कस्टडी के मामलों पर भी लागू होती है। इन्हें भी तय समय सीमा में ही निपटाया जाना चाहिए ताकि बच्चों के भविष्य को लेकर अनिश्चितता खत्म की जा सके।
मोइली ने कहा कि सबसे पहले शादी बचाने के प्रयास जरूरी हैं। इसके लिए पति-पत्नी में मध्यस्थता कराने वाले प्रकोष्ठ की संख्या बढ़ाने की योजना है। ये प्रकोष्ठ दंपती की काउंसिलिंग करके उन्हें साथ रहने के लिए प्रेरित करेंगे। सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ अधिवक्ता प्रिया हिंगूरानी ने कहा कि काम के लिए स्टाफ का अनुभवी होना जरूरी है।
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