
संविधान की धारा 142 के तहत किसी व्यक्ति या पार्टी के प्रति न्याय करने के लिए उच्चतम न्यायालय के पास कोई भी आदेश, निर्देश या फैसला करने की असाधारण शक्ति है। इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने यह जानने के बाद तलाक का फैसला दिया कि पूर्व पत्नी माया जैन इस शर्त पर पहले तलाक को राजी हो गई कि उसे अपने पति की कुछ संपत्ति मिल जाएगी। लेकिन जैसे ही उसके नाम पर संपत्ति हस्तांतरित हो गई उसने अपनी सहमति वापस ले ली और इस तरह तलाक लेने के अपने पति के प्रयासों को आघात पहुँचाया। पत्नी ने रूख अपनाया कि न तो वह तलाक चाहती है और न ही पति के साथ रहने की उसकी इच्छा है और फिर जोर दिया कि वह उन्हें आपसी सहमति से तलाक नहीं देगी। जबकि संपत्ति के हस्तांतरण से पहले वह आपसी सहमति से तलाक को राजी थी।
साथ ही सर्वोच्च न्यायालय ने दंपति के कड़वे वैवाहिक रिश्ते को इस आधार पर भी अमान्य करार दिया है कि दोनों लंबे समय से एक-दूसरे से अलग रह रहे थे और इनमें किसी एक पक्ष की असहमति के कारण कानूनन तलाक नहीं हो पा रहा था।
न्यायालय ने अपने फैसले में कहा है कि कानून इसकी इजाजत नहीं देता कि पति-पत्नी लंबे समय तक एक-दूसरे से अलग रहे और किसी एक पक्ष के अडिय़ल रुख के कारण दूसरा पक्ष तलाक लेने की स्थिति में नहीं हो। न्यायालय ने कहा कि दोनों पक्षों के बीच तलाक के लिए आपसी सहमति के लिए हद से ज्यादा लंबा इंतजार नहीं किया जा सकता।
न्यायमूर्ति अल्तमस कबीर और न्यायमूर्ति सायरियाक जोसेफ की खंडपीठ ने मध्य प्रदेश में छिंदवाड़ा के रहने वाले अनिल जैन की अर्जी पर यह फैसला सुनाया। जैन ने अपनी पत्नी माया जैन से तलाक के लिए अर्जी दी थी। दोनों की शादी 1985 में हुई थी, पर बाद में उनके रिश्ते में कड़वाहट आ गई। दोनों गत सात साल अलग-अलग रह रहे थे।
दंपति ने पहले हिंदू विवाह कानून की धारा 13 बी, जो दंपति को आपसी सहमति से तलाक की अनुमति देती है, के तहत छिंदवाड़ा की अदालत का दरवाजा खटखटाया था।
पति-पत्नी ने छिंदवाड़ा की अदालत में तलाक के लिए संयुक्त अर्जी दाखिल किया था। अदालत ने तलाक पर सुनवाई करने से पहले दंपति से छह महीने के लिए रूकने के लिए कहा था।
इसी बीच पत्नी ने छह महीने के पहले ही तलाक के लिए दी गई अपनी सहमति वापस ले ली, जिसके बाद अदालत ने दंपति की तलाक की अर्जी खारिज कर दी। बाद में पति ने मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया, लेकिन वहां भी उसकी अर्जी खारिज कर दी गई।
जैन ने अंत में सर्वोच्च न्यायालय में अर्जी दी। न्यायालय ने संविधान की धारा 142 के आधार पर इस जटिल मामले की सुनवाई की। न्यायालय ने जैन के पक्ष में फैसला सुनाते हुए कहा, ''महिला का यह रुख कि वह पति से अलग भी रहेगी और तलाक भी नहीं देगी, अदालत को स्वीकार्य नहीं है।''
न्यायालय ने अपने फैसले में कहा है कि कानून इसकी इजाजत नहीं देता कि पति-पत्नी लंबे समय तक एक-दूसरे से अलग रहे और किसी एक पक्ष के अडिय़ल रुख के कारण दूसरा पक्ष तलाक लेने की स्थिति में नहीं हो। न्यायालय ने कहा कि दोनों पक्षों के बीच तलाक के लिए आपसी सहमति के लिए हद से ज्यादा लंबा इंतजार नहीं किया जा सकता।
न्यायमूर्ति अल्तमस कबीर और न्यायमूर्ति सायरियाक जोसेफ की खंडपीठ ने मध्य प्रदेश में छिंदवाड़ा के रहने वाले अनिल जैन की अर्जी पर यह फैसला सुनाया। जैन ने अपनी पत्नी माया जैन से तलाक के लिए अर्जी दी थी। दोनों की शादी 1985 में हुई थी, पर बाद में उनके रिश्ते में कड़वाहट आ गई। दोनों गत सात साल अलग-अलग रह रहे थे।
दंपति ने पहले हिंदू विवाह कानून की धारा 13 बी, जो दंपति को आपसी सहमति से तलाक की अनुमति देती है, के तहत छिंदवाड़ा की अदालत का दरवाजा खटखटाया था।
पति-पत्नी ने छिंदवाड़ा की अदालत में तलाक के लिए संयुक्त अर्जी दाखिल किया था। अदालत ने तलाक पर सुनवाई करने से पहले दंपति से छह महीने के लिए रूकने के लिए कहा था।
इसी बीच पत्नी ने छह महीने के पहले ही तलाक के लिए दी गई अपनी सहमति वापस ले ली, जिसके बाद अदालत ने दंपति की तलाक की अर्जी खारिज कर दी। बाद में पति ने मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया, लेकिन वहां भी उसकी अर्जी खारिज कर दी गई।
जैन ने अंत में सर्वोच्च न्यायालय में अर्जी दी। न्यायालय ने संविधान की धारा 142 के आधार पर इस जटिल मामले की सुनवाई की। न्यायालय ने जैन के पक्ष में फैसला सुनाते हुए कहा, ''महिला का यह रुख कि वह पति से अलग भी रहेगी और तलाक भी नहीं देगी, अदालत को स्वीकार्य नहीं है।''
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