पढ़ाई और जीवन में क्या अंतर है? स्कूल में आप को पाठ सिखाते हैं और फिर परीक्षा लेते हैं. जीवन में पहले परीक्षा होती है और फिर सबक सिखने को मिलता है. - टॉम बोडेट

Tuesday, September 29, 2009

कोर्ट मार्शल के पहले चार दिन का समय तो दें- उच्चतम न्यायालय


उच्चतम न्यायलय ने व्यवस्था दी है कि कोर्ट मार्शल कार्यवाही के गंभीर नतीजे निकलते हैं लिहाजा सेना के जवान पर किसी अपराध का अरोप लगाये जाने के बाद मुकदमा चलाये जाने से पहले उसे 96 घंटे का अनिवार्य समय दिया जाना चाहिए।
उच्च न्यायालय की पीठ ने 12 कार्प सिग्नल रेजीमेंट के एके पांडेय को बरी करने के खिलाफ केन्द्र सरकार की अपील को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की। पांडेय को कोट मार्शल कारवाई के बाद छह नवंबर को सुनाये गये फैसले में सेवा से बख्रास्त कर दिया गया और तीन साल की सजा सुनायी गयी।
न्यायमूर्ति बी एन अग्रवाल, न्यायमूर्ति आफताब आलम और न्यायमूर्ति आर एम लोढ़ा की तीन सदस्यीय पीठ ने कहा, ‘‘ जनरल कोर्ट मार्शल : सैन्य अदालत : में मुकदमे के गंभीर परिणाम निकलते हैं। आरोपी को जेल की सजा सुनायी जा सकती है। उसे सेवा से बख्रास्त किया जा सकता है। नियम 34 में समयावधि का पालन नहीं करने के नतीजे गंभीर और कठोर हो सकते हैं। हमारा मानना हे कि उक्त प्रावधान पूर्ण और अनिवार्य हैं।’’
पांडेय ने आरोप लगाया गया था कि उसने देश में बनी पिस्तौल और एक चक्र कारतूस अपनी ही यूनिट के सिंग्नलमैन जे एन नरसिम्लु को गैर कानूनी रूप से बेच दिये। बहरहाल, पांडेय ने राजस्थान उच्च न्यायालय में अपनी बख्रास्तगी और दोषी साबित करने को इस आधार पर चुनौती दी कि ऐसा करना गैर कानूनी है क्योंकि 1954 के सेना निमयों के नियम 34 के तहत आरोप लगाये जाने के समय और वास्तविक मुकदमे के समय में 96 घंटे के अंतराल का पालन नहीं किया गया।
राजस्थान उच्च न्यायालय ने पांडेय के तर्क को सही ठहराया और सजा को खारिज कर दिया । इसके बाद केन्द्र ने उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ शीर्ष न्यायालय में अपील की।
मामले में केन्द्र का तर्क था कि नियम 34 अनिवार्य न होकर महज निर्देशात्मक है।


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