पढ़ाई और जीवन में क्या अंतर है? स्कूल में आप को पाठ सिखाते हैं और फिर परीक्षा लेते हैं. जीवन में पहले परीक्षा होती है और फिर सबक सिखने को मिलता है. - टॉम बोडेट

Sunday, September 6, 2009

हिंदी के समर्थन में आए तीन हजार से ज्यादा वकील।

दिल्ली हाईकोर्ट में अंग्रेजी के साथ हिंदी में बहस के विकल्प की मांग करने वालों में अब सिर्फ वकील ही नहीं, दिल्ली देहात की ग्रामीण समितियां भी जुट गई हैं। ऑल इंडिया लॉयर्स यूनियन की दिल्ली इकाई की अगुवाई में हाईकोर्ट परिसर में चलाए गए हस्ताक्षर अभियान में सैकड़ों वकीलों ने हिस्सा लिया। यूनियन पदाधिकारियों का कहना है कि बहुत जल्द ही पांच हजार से ज्यादा अधिवक्ताओं के हस्ताक्षर कराने के बाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस के समक्ष मांग रखी जाएगी कि हिंदी को हाईकोर्ट की वैकल्पिक भाषा के रूप में मान्यता दी जाए। हाईकोर्ट में हिंदी के समर्थन का बिगुल फूंकने वाली ऑल इंडिया लॉयर्स यूनियन की दिल्ली इकाई के अध्यक्ष एवं अधिवक्ता अशोक अग्रवाल का कहना है कि अंग्रेजी के साथ हिंदी में बहस के विकल्प की मांग को लेकर हस्ताक्षर अभियान शुरू कर दिया गया है। पिछले डेढ़ हफ्ते के भीतर तीन हजार से ज्यादा वकीलों ने हिंदी के समर्थन में हस्ताक्षर किए हैं। इसी कड़ी में शुक्रवार को हाईकोर्ट परिसर में करीब साढ़े तीन सौ वकीलों ने अभियान से जुड़ते हुए हस्ताक्षर किए। यह अभियान अगले हफ्ते तक चलना है। योजना है कि राजधानी के पांच हजार से ज्यादा वकीलों के हस्ताक्षर कराने के बाद चीफ जस्टिस एपी.शाह से अनुरोध किया जाएगा कि अंग्रेजी के अलावा हिंदी में भी बहस के विकल्प पर सहानुभूतिपूर्वक विचार करें। अग्रवाल ने उम्मीद जताई है कि चीफ जस्टिस श्री शाह हिंदीभाषियों की इस मांग को अवश्य मानेंगे। यूनियन के सचिव अनिल चौहान का कहना है कि दिल्ली के वकील हस्ताक्षर अभियान के जरिए अपना पक्ष रखने की कोशिश कर रहे हैं। पूर्ण विश्वास है कि चीफ जस्टिस हिंदी बोलने-समझने वालों की मांग को अनसुना नहीं करेंगे। इसी कड़ी में दिल्ली सीमावर्ती ग्रामीण विकास समिति के महासचिव डॉ.नरेश त्यागी ने कहा कि निचली अदालतों में हिंदी में बहस करने का विकल्प है, यदि हाईकोर्ट में भी ऐसा हो जाए तो अंग्रेजी न जानने वाले भी जान सकेंगे कि अदालत में क्या बहस हो रही है। उन्होंने कहा कि ऐसे लोग जो अंग्रेजी समझ ही नहीं पाते उन्हें मजबूरन लिखी इबारत पर भरोसा करते हुए हस्ताक्षर करने पड़ते हैं, जबकि उसे पता ही नहीं होता कि कागजों में क्या लिखा गया है।

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